नरेन्द्र मोदी सरकार के सौ दिन पूरे हो गये हैं और इस अवसर पर पूंजीवादी प्रचार माध्यम इसकी चर्चाओं से भरे पड़े हैं। सभी मोदी की तारीफ करने में एक-दूसरे से बाजी मार ले जाना चाहते हैं। यहां तक कि योगेन्द्र यादव जैसे आलोचकों की भी हिम्मत तीखी आलोाचना की नहीं पड़ती।
पूंजीवादी प्रचार माध्यमों को तारीफ करनी भी चाहिए क्योंकि इस सरकार ने पिछले सौ दिनों में पूंजीपतियों के लिए बहुत कुछ किया है। इसने लम्बे समय से पूंजीपतियों द्वारा मांगे जा रहे श्रम कानूनों में बदलाव की प्रक्रिया शुरु कर दी है। इसने पर्यावरण और अन्य कानूनी बाधाओं के कारण रूकी परियोजनाओं की शुरु करने की अनुमति दे दी है। इसने मध्य भारत में आदिवासियों के प्रतिरोध को पूर्णतया कुचल डालने की तैयारी शुरु कर दी है। इसने बीमा, रेलवे और रक्षा जैसे क्षेत्रों में विदेशी पूंजी के आगमन के लिए दरवाजा और चैड़ा कर दिया है। इसने शहर और देहात के गरीब लोगों को भी कर्ज के जाल में फंसाकर चूसने की योजना (जनधन योजना) को अमली रूप दे दिया। सौ दिन भला पूंजीपति वर्ग को और क्या चाहिए !
यही नहीं बाहरी मोर्चे पर भी इसने वह तत्परता दिखायी है जो भारत का विस्तारवादी पूंजीपति वर्ग चाहता है। मोदी ने चीन की घेराबंदी करने के लिए आनन-फानन में भूटान, नेपाल और जापान की यात्राएं कर डाली हैं। जहां भूटान नेपाल की यात्राएं वहां की बढ़ती घुसपैठ को रोकने के लिए कीं, वहीं जापान की यात्रा जापान, आस्ट्रेलिया और स.रा. अमेरिका की चीन विरोधी धुरी में भारत का कंधा मिलाने के लिए। हां, इस सबसे चीन कहीं भड़क न जाय इसलिए आगे चीन के राष्ट्रपति को भी आमंत्रित कर लिया गया है। अलबत्ता पाकिस्तान के खिलाफ धौंसपट्टी बदस्तूर जारी है और मई में नवाज शरीफ को दिल्ली में आवभगत कब की भुलाई जा चुकी है। कहना नहीं होगा कि पूंजीपति वर्ग के अच्छे दिन आ गये हैं। पर जनता के ? उसके बुरे दिन न केवल जारी हैं बल्कि वे और भी बुरे हुए हैं। मंहगाई डायन पहले की तरह थोड़ी सी कमाई को निगल जा रही है। पूंजपतियों द्वारा लूटपाट और धौंसपट्टी बढ़ गयी है। जमाखोर और काला बाजारिये बेतरह खुश हैं।
बुरे दिनों के इस तरह और बुरे होने से मेहनतकश जनता की नाराजगी स्वाभाविक है। इसका परिणाम हाल के विधान सभा उपचुनावों में देखने को मिला जिसमें भाजपा केवल एक तिहाई सीटें ही जीत पायी।
इस परिणाम से बौखला कर मोदी और उसके सहयोगी संघी बहुत नंगे तौर पर साम्प्रदायिक उन्माद फैलाने पर उतर आये हैं। वे अब किसी तरह का दुराव-छिपाव नहीं कर रहे हैं। वे मध्यम वर्गीय जनमानस की जरा भी चिंता नहीं कर रहे हैं। तड़ीपार अमित शाह को भाजपा अध्यक्ष बनाकर और उत्तर प्रदेश उपचुनाव में प्रचार की कमान बदनाम योगी आदित्यनाथ को सौंपकार मोदी ने इसे संस्थागत भी कर दिया है। यह केवल मुसलमानों के लिए ही भयानक नहीं है यह स्वयं हिन्दु मेहनतकश जनता के लिए भी भयानक है। बुरे दिन और भयानक तौर पर बुरे होंगे।
यदि पूंजीपति वर्ग खुश है कि मोदी सरकार के सौ दिन आगे आने वाले अच्छे दिनों के संकेत हैं तो यह मजदूर वर्ग एवं अन्य मेहनतकश जनता के लिए आगे आने वाले और बुरे दिनों के संकेत हैं। इसीलिए इस सरकार के खिलाफ चैतरफा संघर्ष के लिए कमर कसनी होगी और इसमें किसी तरह की ढील नहीं देनी होगी।
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