संघ के भूतपूर्व प्रचारक और देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को आमंत्रित कर कई भोले-भाले लोगों को चकित कर दिया था और उनमें यह उम्मीद जगा दी थी कि मोदी शायद संघ से और चुनाव प्रचार के दौरान अपनी अंध राष्ट्रवादी चिंघाड़ से उबर जायें। पर तीन महीने भी नहीं गुजरने पाये थे कि हवा बिल्कुल उल्टी दिशा में चल पड़ी है और सरकार, संघ परिवार सहित समूचा पूंजीवादी प्रचारतंत्र एक बार फिर पाकिस्तान के खिलाफ अंध राष्ट्रवादी उन्माद फैलाने में जुट गया है।
आज यानी 25 अगस्त को दोनों देशों के अधिकारियों के बीच वार्ता होनी थी पर भारत सरकार ने एक सप्ताह पहले इसे इस बहाने रद्द कर दिया कि पाकिस्तानी दूतावास ने हुर्रियत कान्फ्रेन्स के नेताओं से बुलाकर बात की और इस तरह भारत के आंतरिक मामलों में दखल दिया।
इसी के साथ अचानक ये खबरें प्रमुखता से आने लगीं कि पाकिस्तानी सेना युद्ध विराम का उल्लंघन कर भारत में गोलाबारी कर रही है और भारत के सैनिक मारे जा रहे हैं। स्वयं नरेन्द्र मोदी ने कड़ा जवाब देने की बात की।
भारत का पूंजीवादी प्रचारतंत्र चीख-चीख कर यह प्रचार कर रहा है कि पाकिस्तान भारत से शांतिपूर्ण संबंध नहीं चाहता, कि नवाज शरीफ सरकार इमरान खान और कादरी के विरोधे से घबराकर ध्यान बाहर बांटना चाहती है, कि पाकिस्तानी सेना सरकार के ऊपर हावी होकर युद्ध विराम का उल्लंघन कर रही है, इत्यादि-इत्यादि।
लेकिन ये उन्मादी देशभक्त से नहीं बताना चाहते कि भारत सरकार क्या कर रही है, कि भारत की ओर से क्या उकसावे की कार्रवाइयां हो रही हैं, कि भाजपा की आज क्या मजबूरियां और जरूरतें हैं ? क्यों आज भयानक जोर-शोर से मुसलमान विरोधी माहौल बनाया जा रहा है ? क्यों साम्प्रदायिक दंगे फैलाये जा रहे हैं ?
उत्तर इतना मुश्किल नहीं है। अभी आज ही घोषित विधान सभा उप चुनावों के परिणाम इस ओर पर्याप्त इशारा करते हैं। इन चुनावों में भाजपा की कतई वह स्थिति नहीं है जो तीन महीने पहले थी। यही आशंका भाजपा को उत्तर प्रदेश के उपचुनावों और बिहार तथा महाराष्ट्र के उप चुनावों को लेकर है। वह अपनी जीत के प्रति आश्वस्त नहीं है, खासकर उत्तर प्रदेश व बिहार में।
इसीलिए वह एक बार फिर मुस्लिम विरोधी माहौल बनाने में जुट गई है जिससे हिन्दू मतों का ध्रुवीकरण हो सके। पाकिस्तान के खिलाफ अंध राष्ट्रवादी उन्माद इसी का हिस्सा है।
नरेन्द्र मोदी सरकार का विकास का नारा इसी रूप में फलीभूत होगा। पूंजीपतियों को हर तरह की छूुट और सुविधायें तथा जनता के लिए दंगे-फसाद व धार्मिक-राष्ट्रवादी उन्माद। मोदी-शाह जोड़ी का यही व्यवहारिक मतलब है।
मोदी-शाह की इस खूंखार जोड़ी का हर तरह से और हर कीमत पर विरोध करना होगा।
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