संघी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले से अपने संबोधन में एक ही महत्वपूर्ण बात कही और वह थी योजना आयोग के विसर्जन की बात। इसके जरिए वे पूंजीपतियों से किए गए अघोषित वायदों को पूरा करने में एक कदम और आगे बढ़े।
नरेंद्र मोदी की लाल किले से देश को संबोधित करने की लम्बे समय से तमन्ना थी। पिछले साल तो एक नकली लाल किले से उन्होंने यह किया भी था। इस साल उन्हें पूंजीपतियों की कृपा से यह मौका मिल गया और कोई दुर्घटना नहीं घटी तो अगले चार साल तक मिलता रहेगा।
लाल किले से उन्होंने उसी अंदाज में देश को संबोधित किया जो उनका ट्रेडमार्क है और जिसे सभ्य भाषा में लफ्फाजी कहते हैं। उसमें काम की बात एक को छोड़कर कोई नहीं थी। लेकिन वह एक बात पूंजीपति वर्ग के बहुत फायदे की थी। यह बात योजना आयोग से संबंधित थी।
मोदी ने कहा कि योजना आयोग अब बदले जमाने में उपयुक्त नहीं रह गया है इसलिए इसे भंग कर एक नई संस्था का गठन किया जाएगा। इस नई संस्था की बनावट और उद्देश्य एकदम भिन्न होंगे। लेकिन उन्होंने इस पर कोई प्रकाश नहीं डाला।
1991 में निजीकरण-उदारीकरण-वैश्वीकरण की नीतियों को बड़े.बड़े पैमाने पर लागू करने के साथ ही योजना आयोग निरर्थक हो गया था। उसकी कोई निर्देशक भूमिका नहीं रह गई थी जो उसके पहले हुआ करती थी।
लेकिन उसके बावजूद किसी भी सरकार की हिम्मत नहीं पड़ रही थी कि योजना आयोग को भंग कर दे। इसका कारण न केवल योजना आयोग से जुड़ा अतीत था बल्कि यह भी था कि इससे यह संदेश जाता कि अब अर्थव्यवस्था का संचालन सरकार के हाथों से निकलकर पूर्णतया पूंजीपतियों के हाथों में चला गया है। यही सच्चाई भी है। पर किसी भी सरकार की इस सच्चाई पर मुहर लगाने की हिम्मत नहीं पड़ रही थी चाहे वह कांग्रेस की सरकार हो, संयुक्त मोर्चे की सरकार हो या फिर बाजपेयी के नेतृत्व वाली राजग की सरकार। पर नरेंद्र मोदी की बात कुछ और है। वे पूंजीपतियों के सच्चे सेवक हैं और उनकी सेवा में वे कुछ भी कर सकते हैं। आखिर उन्हें पूंजीपतियों ने दिल्ली की गद्दी पर यूं ही तो नहीं बैठाया। अब मोदी ने वह कदम उठा लिया जिसकी हिम्मत बाजपेयी नहीं जुटा सके थे।
योजना आयोग पुराने जमाने में भारत के पूंजीपति वर्ग के लिए बनाया गया था। यह समाजवादी देशों के योजनाबद्ध विकास की नकल पर किया गया था। एक समय उसने यह भूमिका निभाई भी। पर जब इसी सब के कारण पूंजीपति वर्ग फल-फूल कर पर्याप्त मजबूत हो गया तो वह अर्थव्यवस्था पर सरकारी नियंत्रण को अपने और आगे विकास के लिए बाधा समझने लगा। तभी से वह योजना आयोग को भंग करने की मांग करने लगा। अब उसके पसंदीदा सेवक नरेंद्र मोदी ने उसकी यह मांग पूरी कर दी है।
भारत का पूंजीपति वर्ग वाकई एक नए युग में प्रवेश कर गया है। यह युग है छुट्टे पूंजीवाद का और पूंजीपति वर्ग की बेलगाम लूट का। अब सरकार दिखावे के लिए भी अर्थव्यवस्था को नियंत्रित नहीं करेगी।
अलविदा योजना आयोग !
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