Sunday, August 10, 2014

अमित शाह की ताजपोशी: साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की पुरजोर मुहिम

     कल भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में अमित शाह की भाजपा के अध्यक्ष के पद पर औपचारिक ताजपोशी कर दी गई। भाजपा के सारे नेताओं ने गुजरात से तड़ीपार किये गये इस व्यक्ति की शान में खूब कसीदे पढ़े।
      और ऐसा हो भी क्यों न? अमित शाह ने उत्तर प्रदेश में अपना गुजरात माडल लागू करते हुए केवल एक साल के भीतर भाजपा को लोक सभा चुनावों में अप्रत्याशित जीत दिला दी। कांग्रेस, सपा-बसपा सब देखते रह गये।
      यह कमाल उन्होंने हासिल किया जाटों, गैर जाटव-चमार दलितों तथा गैर यादव पिछड़ों को मुसलमानों के खिलाफ खड़ा करके। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटव भी भाजपा के साथ चले गये थे। खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तो यह चरम पर जा पहुंचा जब इसके लिए पिछले साल मुजफ्फर नगर और आस-पास के इलाकों में सुनियोजित तरीके से दंगों को अंजाम दिया गया।
       ठीक इस समय उत्तर प्रदेश में अमित शाह की यह मुस्लिम विरोधी ध्रुवीकरण की रणनीति बड़े पैमाने पर लागू की जा रही है। यह खासकर 12 विधान सभा सीटों के आगामी चुनाव के मद्देनजर किया जा रहा है और ये क्षेत्र इसके लिए विशेष निशाने पर हैं। इसके लिए जान-बूझकर साम्प्रदायिक विवाद खड़े किये जा रहे हैं। इसमें भी दलितों को विशेष तौर पर मुसलमानों के खिलाफ भड़काने की कोशिश की जा रही है जिससे बसपा का आधार सिमट जाये। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की हालिया विस्तृत रिपोर्ट के अनुसार 16 मई के लोकसभा परिणामों के बाद उत्तर प्रदेश में छः सौ से ज्यादा साम्प्रदायिक विवाद हो चुके हैं और इन सबमें भाजपाई सक्रिय रहे हैं।
    मोदी-अमित शाह की जोड़ी और भाजपा की यह नीति उस आम नीति की ही व्यवहार में पुष्टि है जिसके तहत एक ओर भाजपा सरकार पूंजीपतियों पर सारी दौलत लुटायेगी और उन्हें लूट की खुली छूट देगी (बजट और श्रम कानूनों में प्रस्तावित परिवर्तन इसके प्रमाण हैं) और दूसरी ओर इससे त्रस्त जनता का ध्यान हटाने के लिए या उन्हें भयभीत कर चुप कराने के लिए साम्प्रदायिक दंगों तथा दमन का सहारा लेगी। भाजपा के नरम फासीवाद का यही मतलब होगा।
     अभी केवल दो महीने के भाजपा के शासन के बाद ही जनता के इससे मोह भंग का यह आलम है कि भाजपा दिल्ली में विधानसभा चुनाव कराने की हिम्मत नहीं कर पा रही है और उत्तर प्रदेश की अपनी दो सीट बचाने के लिए साम्प्रदायिक दंगों का सहारा ले रही है (ये सीटें भाजपा के विधायकों के सांसद चुने जाने से खाली हुई हैं)। उत्तराखण्ड में वह पहले ही तीन विधान सभा सीटों के उप चुनावों में हार चुकी है।
     भाजपा की इससे उपजी छटपटाहट इससे भी समझी जा सकती है कि अमित शाह की ताजपोशी वाली राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में नेताओं ने अपनी सरकार की दो महीनों की उपलब्धियों को गिनाने के बदले हार से त्रस्त कांगे्रस पर ही प्रहार करने में अपनी निजात देखी। यह देखना निहायत दिलचस्प था कि गुजरात नरसंहार के संगठनकर्ताओं ने कांग्रेस पर साम्प्रदायिकता फैलाकर देश के ताने-बाने को तोड़ने का आरोप लगाया।
      भाजपा की छटपटाहट आगे आने वाले दिनों में और बढ़ेगी और ठीक इसी कारण वह देश में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की ओर बढ़ेगी। अमित शाह के रूप में उन्हें इसका एक कुशल संगठनकर्ता भी मिल गया है।   
     ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि तेजी बढ़ते इस साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का मुकाबला किया जाये। इसके खिलाफ मजदूर-मेहनतकश जनता को गोलबंद किया जाये। मजदूर वर्ग और उसके सचेत तत्वों की इसमें अग्रणी भूमिका बनती है।

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