मोदी सरकार ने अपने बजट मेें पूंजीपति वर्ग को खुश करने की पूरी कोशिश की पर पूंजीपतियों का पेट इतना बड़ा हो गया है कि वे खुश नहीं हुए। दिन का अंत होते-होते मुंबई का शेयर बाजार (सेनसेक्स) 75 अंक के गोते लगा गया।
जैसा कि पहले ही सारे संकेत थे, इस बजट में विदेशी पूंजी को भरपूर छूट मिली। बीमा क्षेत्र में विदेशी पूंजी निवेश की सीमा बढ़ाकर 49 प्रतिशत कर दी गयी। रक्षा उपकरणों के क्षेत्र में भी विदेशी पूंजी निवेश को 49 प्रतिशत तक छूट मिली। इसके साथ ही मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट ‘स्मार्ट सिटी’ में विदेशी पूंजी का रास्ता सुगम बनाया।
विदेशी पूंजी को छूट के साथ इस बजट में वित्तीय क्षेत्र में निजीकरण और उदारीकरण को भी बढ़ावा दिया गया। सरकार की ओर से कहा गया कि बैसेल-III के मानदंडो को पूरा करने के लिए सार्वजनिक बैंकों को फुटकर ग्राहकों को शेयर जारी कर पूंजी इकटठी करनी होगी। यह प्रकारान्तर से सार्वजनिक बैंकों के ‘कन्सोलिडेशन’ की पक्षधर है यानी ढेर सारे बैंकों के बदले बस थोड़े से बैंक रह जायें। यह याद रखने की बात है कि अभी कुछ दिन पहले ही बैंक कर्मचारी निजिकरण के विरोध में हड़ताल पर गये थे।
हद तो तब हो गयी जब चल रहे विश्व आर्थिक संकट के सबकों को दरकिनार कर सट्टेबाजी को नये क्षेत्रों को अनुमति देने की बात इस बजट में की गयी। यह किया गया इस तथ्य को रेखांकित हुए कि भारत के वित बाजार में विदेशी पूंजी के 130 अरब डालर सट्टेबाजी में लगे हुए हैं। इसी के साथ सट्टेबाजों को आश्वस्त किया गया कि उन पर कोई नये कर नहीं लगाये जायेंगे।
विदेशी पूंजी और सट्टेबाजों को यह सौगात देते हुए सरकार ने कहा कि व जनता को दी जाने वाली सब्सिडी पर पुनर्विचार करेगी। इसके लिए बाकायदा एक आयोग का गठन कर साल भर के अंदर फैसला लिया जायेगा। वित्त मंत्री के अनुसार लोकरंजकवाद से मुक्ति पानी होगी।
वित्त मंत्री ने बिना किसी शरम के यह बात कही, इस तथ्य को नजरअंदाज करते हुए कि उनके इसी बजट में यह बताया गया है कि वर्ष 2012-2013 में साढ़े पांच लाख और वर्ष 2013-2014 में पौने छः लाख करोड़ सरकार ने पूंजीपतियों के ऊपर करों में राहत के रूप में लुटा दिये। यहां जरा भी संकेत नहीं कि इस वित्त वर्ष में इससे कुछ भिन्न होगा। इस बजट वक्तव्य में पहले ही प्रत्यक्ष करों में 22200 करोड़ रुपये की छूट का ऐलान कर दिया गया है।
सरकार द्वारा जनता को दी जाने वाली राहत में कटौती की जानी है क्योंकि वित्तीय घाटे को अगले दो सालों में 4.1 से 3.0 प्रतिशत (सकल घरेलु उत्पाद का) तक ले आना है। क्यों ? इसलिए कि पूंजीपति वर्ग को और छूट दी जा सके।
चुनावों में वृद्धि दर के गिरने को लेकर कांग्रेस पार्टी को कोसने वाली भाजपा ने अपने इस बजट में यह स्वीकार किया कि वैश्विक आर्थिक हालात खराब हैं और वृद्धि जल्दी से ऊपर नहीं उठने वाली। वह दो-तीन साल बाद ही 7-8 प्रतिशत वृद्धि दर होने की बात कर रही है। इस सबको देखते हुए भाजपा द्वारा दिखाये गये सब्जबाग कहां हैं ? ‘अच्छे दिन’ इस बजट में कहां हैं ?
इस बजट में ‘अच्छे दिन’ वहीं हैं जहां भाजपा सरकार ने पहले ही घोषण कर दी थी। ‘अच्छे दिन’ भविष्य के लिए टाल दिये थे और कहा गया था कि उन्हें लाने के लिए फिलहाल तो कड़वी घूंट पीनी होगी। कड़वी घूंट की एक डोज इस बजट में है, बाकी आगे दी जायेगी।
इस बजट में बहुत कुछ पाकर भी पूंजीपति वर्ग निराश हुआ है। वह इससे बहुत ज्यादा कि उम्मीद कर रहा था। उसने पिछले चुनावों में भाजपा पर यूं ही तो नहीं इतना बड़ा दांव लगाया था। पूंजीपतियों की इस भावना को स्वर देते हुए भाजपा के नये प्रतिद्वन्द्वी आम आदमी पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल ने तो कह भी दिया कि इस बजट में पूंजीपतियों के लिए कुछ नहीं है।
लेकिन पूंजीपति वर्ग को निराश होने की जरूरत नहीं है। जैसे रेल बजट के पहले सरकार ने किराया बढ़ाया था वैसे ही आम बजट के बाद सरकार पूंजीपतियों के लिए और तोहफे लेकर आयेगी।
रही मजदूर वर्ग की बात तो उसे अपने ऊपर होने वाले और हमलों के लिए तैयार रहना होगा। रेल और आम बजट तो शुरुआत है।
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