Sunday, July 6, 2014

मंहगाई और मोदी सरकार

      सबके लिए ‘अच्छे दिन’ का वायदा कर सत्ता में आई मोदी सरकार यह दिखाने का पुरजोर प्रयास कर रही है कि वह मंहगाई की बढ़ती दर को कम करना चाहती हैै। वास्तव में वह ठीक इसी समय वे सारे कदम उठा रही है जिससे मंहगाई बढ़े।
      रेलभाड़े, डीजल, रसोई गैस, चीनी इत्यादि के दामों में वृद्धि वे वास्तविक कदम हैं जिससे मंहगाई बढ़ती है। ये कदम उठाने के बाद सरकार बैठकों का दौर चला रही है और इस तरह इसे रोकने के लिए भारी चिंतित होने का दिखावा कर रही है। 
     इसका सबसे मजेदार कारनामा तो खाद्य पदार्थो को लेकर इसकी कवायद है। अब देश को बताया जा रहा है कि खाद्य पदार्थो के मामले में जमाखोरी रोकने का कानून बहुत लचर है क्योंकि इसमें आलू-प्याज जैसी चीजें आती ही नहीं। सरकार दिखा रही है कि जमाखोरों पर लगाम लगाकर इन वस्तुओं के दाम नियंत्रित करेगी।
      पर ये जमाखोर कौन हैं ? ये जमाखोर वही हैं जिन्होंने पिछले साल चुनावों में भाजपा को पैसे दिये थे और उसे जितााने के लिए पूरा जोर लगाया था। ये जमाखोर भाजपा के परंपरागत समर्थक हैं। क्या भाजपा वास्तव में इन पर लगाम कसेगी ? हरगिज नहीं। बात ठीक इसकी उल्टी है-सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का।
     सरकार की वास्तविक मंशा क्या है वह इस बात से प्रकट होती है कि गैस के दाम बढ़ाने को उसने महज तीन महीने टाला है-आने वाले विधान सभा चुनावों के मददेनजर। मुकेश अंबानी को होने वाले फायदे की इतनी सारी बदनामी के बाद भी यदि सरकार गैस के दाम बढ़ाने की सोचे तो इससे केवल उसका असली चरित्र ही उजागार होता है। 
    मंहगाई का वास्तविक मतलब होता है मजदूर मेहनतकश जनता के जीवन स्तर को गिराकर पूंजीपतियों का मुनाफा बढ़ाना। पूंजीपति वर्ग ने अपना मुनाफा बढ़ाने के उम्मीद से ही इन चुनावों में मोदी और भाजपा को दिल्ली की गद्दी पर बैठाया। ऐसे में मोदी एण्ड कंपनी और क्या करेंगे ? 
   अन्य मामलों की तरह मंहगाई के मामले में भी मजदूर वर्ग एवं अन्य मेहनतकश जनता  का संगठित, जुझारू संघर्ष ही सरकार को मंहगाई कम करने की ओर पीछे ढकेल सकता है।

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