प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने साफ कर दिया है कि अगले कुछ सालों में कड़े कदमों के लिए देश को तैयार रहना चाहिए। केवल इसी तरह देश की अर्थव्यवस्था की हालत को सुधारा जा सकता है।
सवाल यह है कि ये कड़े कदम किसके लिए कड़े होंगे ? किसको इनसे कष्ट होगा जिसके लिये तैयार रहने के लिए मोदी कर रहे हैं ?
क्या इन कदमों से पूंजीपतियों का मुनाफा कम होगा ? क्या इनसे उनकी पूंजी में वृद्धि में कमी होगी ? क्या इससे शेयर बाजार के सट्टेबाजों को नुकसान होगा ? क्या इससे जमाखोरों को परेशानी होगी?
नहीं ऐसा नहीं होगा। इसके उलट इन सबका व्यवसाय चमकेगा। इनका मुनाफा बढ़ेगा। इस आर्थिक संकट में भी पूंजीपतियों का मुनाफा कम नहीं हो रहा है। इसका एक प्रमाण तो कुलांचे भरता शेयर बाजार है। इन कदमों से इनके बल्ले-बल्ले होंगे।
तब फिर ये कदम किसके लिए कष्टदायक होंगे ? असल में ये कदम मजदूर वर्ग के लिए, देश की मेहनतकश आबादी के लिए कष्टदायक होंगे। ये भुखमरी की रेखा के नीचे रहने वाली तीन चैथाई आबादी के लिए कष्टदायक होंगे।
कड़े कदम का नारा असल में निजीकरण-उदारीकरण-वैश्वीकरण के पिछले चार दशकों के दौर में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक तथा बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और साम्राज्यवादी सरकारों का नारा है। इसका मतलब है मजदूर-मेहनतकश आबादी के पहले से बदहाल जीवन स्तर में और कटौती कर पूंजीपतियों का मुनाफा बढ़ाना। इसी के फलस्वरूप समूची दुनिया में मजदूर-मेहनतकश जनता का जीवन रसातल में चला गया है जबकि पूंजीपति अकूत मुनाफा कमा रहे हैं।
भारत में मोदी सरकार इसको और आगे बढ़ाने जा रही है। गुजरात माडल की यही सच्चाई है। यही मोदी के अच्छे दिनों का सच है। अच्छे दिन आ गये हैं। पर वे उन्हीं के लिए आये हैं हे। जो पहले से ही आसमान पर हैं। वे दस हजार करोड़ रुपये के ‘अटिल्ला’ मकान वाले मुकेश अंबानी के लिए अच्छे हैं।
जो लोग ‘कड़े कदमों’ को चुपचाप स्वीकार नहीं करेंगे उनके लिए मोदी सरकार आई बी की रिपोर्ट के जरिये तैयारी कर रही है।
पर मोदी तो हिटलर व मुसोलिनी के पांव की जूती भी नहीं है।
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