इराक में इस्लामिक स्टेट आव इराक एण्ड लेवान्ट (आई एस आई एल) नामक मुस्लिम कट्टरपंथी लड़ाकू दल ने बढ़त हासिल करते हुए इराक के कई महत्वपूर्ण शहरों- किरकित, फजुल्ला और मोसुल पर कब्जा कर लिया है और राजधानी की ओर बढ़ रहा है। बगदाद स्थित अल मलाकी की अमेरिकी कठपुतली सरकार कुछ नहीं कर पा रही है।
इराक पर 2003 में अमेरिकी हमले और कब्जे के बाद से ही इराक भीषण तबाही से गुजर रहा है। 2009 में अमेरिकी सेनाओं की वहां से औपचारिक वापसी के बाद भी हालात नहीं बदले हैं। वास्तविकता में वहां अभी भी करीब तीस हजार अमेरिकी सैनिक तैनात हैं। इराक अभी अमेरिका के कब्जे में है।
पर पड़ोसी देश ईरान और सऊदी अरब तथा तुर्की इत्यादि वहां अपना खेल खेलने में लगे हुए हैं। ईरान शिया अल मलाकी के जरिये वहां प्रभाव जमाना चाहता है तो सऊदी अरब सुन्नी असंतोष का फायदा उठाकर। सीरिया से लेकर इराक तक आई एस आई एल की बढ़त वास्तव में सऊदी अरब की ही बढ़त है। वह सऊदी पैसे और हथियार से ही आगे बढ़ रहा है।
अमेरिकी साम्राज्यवादियों के पुराने हथकण्डों को देखते हुए इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि आई एस आई एल की बढ़त में अमेरिकी साम्राज्यवादियों का भी हाथ हो, ठीक उसी तरह जैसे उन्होंने तालिबान को 1990 के दशक में पाकिस्तान के जरिये अफगानिस्तान में सत्तारूढ़ होने में मदद की थी। इसमें उनके हित हो सकते हैं, खासकर ईरान के प्रभाव को समाप्त करना।
इन सब साम्राज्यवादी और स्थानीय शासकों के कुचक्रों के बीच एक बात तय है। वह यह कि इराक का पिछले ढ़ाई दशकों का हश्र यह दिखाता है कि साम्राज्यवादी और स्थानीय शासक अपने हितों के लिए कहीं तक भी जा सकते हैं। वे देशों को तबाह कर सकते हैं और लाखों-करोड़ों लोगों की हत्या कर सकते हैं।
भयानक तबाही से गुजर रही इराक जनता ने इन सबका बहादुरी से सामना किया है। उसने अमेरिकी साम्राज्यवादियों को पीछे हटने को मजबूर किया। इसका संघर्ष जारी है और इन कुचक्रों के समूल नाश तक जारी रहेगा।
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