Sunday, June 1, 2014

अबकी बार बन गयी मोदी सरकार

      आखिर मोदी दिल्ली की गद्दी पर सत्ताशीन हो ही गये या यूं कहें कि बड़े पूंजीपति वर्ग ने उन्हें उस गद्दी पर बैठा ही दिया। इस ताजपोशी को खुद अपनी आंखों से देखने के लिए अंबानी और अदानी वहां सशरीर मौजूद थे। 
साथ ही मौजूद थे कमण्डल और त्रिशूलधारी यानी तथाकथित साधू-सन्त, महात्मा और भगवाधारी जिन्होंने एक लम्बे समय से राजनीति को ही अपना पेशा बना रखा है। ये धर्म का लबादा ओढ़े विशुद्ध राजनीतिक लोग हैं जिन्हें राजनीति के लिए धर्म का इस्तेमाल करने में जरा भी हिचक नहीं है। वास्तव में ये ही वे पैदल सैनिक थे जिन्होंने बड़े पूंजीपति वर्ग के पैसे को जमीनी स्तर पर वोटो में तबदील किया था।
     और अब दिल्ली की गद्दी पर सत्ताशीन मोदी की सरकार इन्हीं दोनों के सहयोग से व इन्हीें दोनों के लिए चलेगी। मोदी निजिकरण-उदारीकरण-वैश्वीकरण के रथ को बड़े पूंजीपतियों के हित में तेज से तेजतर दौड़ायेंगे और इनसे कुचले जाने वाले लोग आह भी न भरें इसका इंतजाम ये कमण्डल और त्रिशूलधारी करेंगे। ऐसा वे धर्म की घुट्टी पिलाकर नहीं बल्कि साम्प्रदायिकता का जहर फैलाकर करेंगे। नब्बे साल बाद संघ के दिन फिरे हैं तो वह कुछ न कुछ कीमत भारतीय समाज से वसूलेगा। वैसे भी कहावत है कि हर कुत्ते के दिन फिरते हैं। 
अपना देश भी अजीबोगरीब देश है। 1947 में जब देश बेहद पिछड़ा था और ज्यादातर लोग अनपढ़ थे तथा जनतंत्र का मतलब भी नहीं समझते थे तब नेहरू जैसे ‘काॅस्मोपालिटन’ व्यक्ति दिल्ली की गद्दी पर बैठा। पिछड़ेपन की उस हालत में तब संघी कूपमंडूकता समाज में एक किनारे पड़ी रही और दिल्ली की गद्दी की आस-पास भी नहीं फटकी।        
        अब जबकि भरतीय समाज काफी आगे बढ़ चुका है और देहातों की सबसे पिछड़ी आबादी भी इस समाज में वोट ताकत  पहचान चुकी है तब दिल्ली की गद्दी पर एक ‘प्राविंसियल’ व्यक्ति सवार हो गया है तथा संघी कूपमंडूकता दिल्ली की सत्ता के गलियारों में अपना अपना शंखनाद कर रही है।
इतिहास का यह व्यंग्य है कि घोर जहालत ने एक ‘कास्मोपालिटन’ को दिल्ली की गद्दी पर बैठना संभव बनाया जबकि इस जहालत की टूटन से पैदा हुयी देहाती और कस्बाई कूपमंडूकता ने एक ‘प्रोविंसियल’ को। संघ के दिन फिरे हैं तो यूं ही नहीं। 
       छप्पन इंच के सीने वाला और अहं का स्वामी जो अपन गुणगान करते नहीं थकता, दिल्ली की सरकार को एक सल्तनत की तरह चलायेगा जैसे कि अभी हाल तक गुजरात की रियासत चलती रही है। इसमें वह भाजपा या संघ का हस्तक्षेपर बर्दाश्त नहीं करेगा। इसका एक नमूना तब देखने को मिला जब भाजपा अध्यक्ष के रहते हुए भाजपा महासचिवों की बैठक इन श्रीमान ने बुलाई। मजे बात है इस पर भाजपा में किसी ने चूं नहीं की, स्वयं भाजपा अध्यक्ष और वर्तमान गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी नहीं। 
     स्मृति ईरानी जैसी शख्सियत को मानव संसाधन विकास मंत्री बनाना भी बहुत कुछ संकेत कर जाता है। संघी कूपमंडूकता और छिछोरापन अपन उठान पर होगा। वैसे यदि मोदी प्रधानमंत्री पद के लिए उपयुक्त हो सकते हैं तो स्मृति ईरानी भी शिक्षा मंत्री पद के लिए। दोनों सारतत्व में एक ही परिघटना है। 
      आज से सत्तर साल पहले नेहरू ने अपने ‘भारत की खोज’ की थी और अब मोदी और संघी अपने भारत की खोज कर रहे हैं। इसे वही हर तरीके से प्रसारित भी करेंगे और उसी खांचे में भारत को ढालने का प्रयास भी करेंगे। तब नेहरू की सोच पर डी.डी.कौशाम्बी ने कहा था कि भारतीय पूंजीपति वर्ग प्रौढ़ हो गया है। अब मोदी व संघ की सोच को देखते हुए कहना पड़ेगा भारतीय पूंजीपति वर्ग बुढ़ा और सठिया गया है। 
     वक्त आ गया है कि भारत का मजदूर वर्ग अपने भारत ही खोज करे। कहने की बात नहीं कि यह उसकी अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी का हिस्सा भर होगा और जो बुढ़ाये व सठियाये पूंजीपति वर्ग को जहन्नुम रसीद कर ही चरितार्थ होगा।

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