16वें लोकसभा चुनावों में भाजपा की विजय के साथ भारत में छुट्टे और लम्पट पूंजीवाद के पूरी तरह से हावी होने का रास्ता साफ हो गया है। इसके लिए देश का बड़ा पूंजीपति वर्ग पिछले तीन-चार सालों से प्रयास कर रहा था और इन चुनावों में देश के पूंजीवादी प्रचार माध्यमों में नरेन्द्र मोदी और भाजपा के धुरंधर प्रचार से लेकर हजारों करोड़ खर्च करने तक का काम बड़े पूंजीपति वर्ग ने किया। अनुमान है कि इन चुनावों में भाजपा ने पन्द्रह से तीस हजार करोड़ रुपये खर्च किये। यह अभूतपूर्व है लेकिन पूंजीपतियों की कृपा से भाजपा को कोई दिक्कत नहीं हुई।
खुद भाजपा ने इन चुनावों में जीत के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। उसने जाति, धर्म, क्षेत्र हर चीज का जमकर इस्तेमाल किया। एक ओर इसमें उत्तर प्रदेश, बिहार, असम इत्यादि में मुस्लिम विरोधी दंगों को भड़का कर हिन्दू मतों को अपनी ओर किया तो दूसरी ओर दलितों-पिछड़ों को साथ लेने के लिए भी हर तरह का तीन-तिकड़म किया और यह करते हुए उसने सपा-बसपा, राजद, जद (यू) सरीखी पार्टियों को उनके ही खेल में मात दे दी। हालत यह हो गई जाट बहुल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अजीत सिंह की फजीहत हो गई तो बसपा शून्य पर पहुंच गई।
इन चुनावों में इस तरह यह साम्प्रदायिक हिन्दू फासीवादी भाजपा और बड़ी पूंजी का गठजोड़ था जो सफल हुआ और नतीजतन ‘मोदी सरकार’ यथार्त बन गया। लेकिन इतिहास में मुसोलिनी और हिटलर के रूप में इस तरह का गठबंधन पहले ही देखा जा चुका है और उसकी परिणाम भी। दुनिया तथा खासकर इटली और जर्मनी की जनता इसे भुगत चुकी है।
जहां तक इन चुनावों में कांग्रेस की हार का सवाल है वह अपेक्षित था। उसके दस साल के भयंकर कुशासन के खिलाफ जनता का भयंकर गुस्सा था और उसे चुनावों में अभिव्यक्त होना ही था। आश्चर्यजनक उसकी इन चुनावों में हार नहीं है, आश्चर्यजनक तो 2009 में उसकी जीत थी। तब भाजपा की अपनी घटिया हालत ने ही उसे जीतने में मदद की। लेकिन अगले पांच सालों में उसके पापों का घड़ा इस कदर भर चुका था कि वह बिना फूटे रह ही नहीं सकता था। रही-सही कसर बड़े पूंजीपति वर्ग की उससे नाराजगी ने पूरी कर दी। उसे लगने लगा कि कांग्रेस छुट्टे पूंजीवाद को और छूट देने के लिए साहस नहीं जुटा पा रही है जबकि मोदी की भाजपा सरकार यह कर रही थी। और यहीं से इन चुनावों में कांग्रेस का भविष्य तय हो गया।
अब मोदी, भाजपा, संघ परिवार और देश के पूंजीपति वर्ग के लिए अच्छे दिन आ गये हैं। ठीक इसी कारण मजदूर वर्ग, दलितों, आदिवासियों, गरीब किसानों, महिलाओं तथा अल्पसंख्यकों के लिए बुरे दिन आ गये हैं। इनके शोषण-उत्पीड़न की मात्रा में तीव्र वृद्धि होगी। अपने शोषण-उत्पीड़न के विरूद्ध संघर्षों का भयंकर दमन होगा। देश में मौजूद आधे-अधूरे जनवादी अधिकारों में और कटौती होगी तथा जेलें वामपंथी कार्यकर्ताओं तथा शोषित-उत्पीडि़त लोगों से भरी जायेंगी। मध्य भारत में रुका हुआ ‘आपरेशन ग्रीन हंट’ तेजी से आगे बढ़ेगा। कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर तक उत्पीडि़त राष्ट्रीयताओं का भी इसी तरह दमन बढ़ेगा।
पिछले तीन-चार दिनों में शेयर बाजार ने उछाल लगाकर पूंजीपति वर्ग की खुशी को जाहिर कर दिया है। अब देश के मजदूर वर्ग और क्रांतिकारी संगठनों के सामने यह कठिन कार्यभार आ गया है कि वे इस खुशी के स्रोत छुट्टे पूंजीवाद और हिन्दू फासीवाद के गठबंधन के द्वारा पैदा की जाने वाली चुनौतियों का मुकाबला करें। इसकी शुरुआत अभी से कर देनी होगी।
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