Wednesday, February 12, 2014

अंबानी, केजरीवाल और छुट्टा पूंजीवाद

        केजरीवाल एण्ड कम्पनी ने अपनी स्टंटबाजी जारी रखते हुए मुकेश अंबानी तथा केन्द्रीय मंत्रियों मुरली देवड़ा और वीरप्पा मोइली के खिलाफ जांच के लिए अपने भ्रष्टाचार विरोधी ब्यूरो को आदेश दिये हैं। आरोप है कि इन सबने मिली भगत करके गैस के दाम बहुत बढ़ा दिये हैं और 1 अप्रैल से उसे और भी बढ़ाने की योजना है।
        इस स्टंटबाजी के बाद कुछ लोग खुश हैं कि केजरीवाल सरकार ने देश के सबसे बड़े पूंजीपति के खिलाफ मोर्चा खोला है। इसके मुकाबले कुछ लोग दिल्ली सरकार की इस मामले में क्षमता पर सवाल उठा रहे हैं। उनके अनुसार दिल्ली सरकार की किसी एजेन्सी के पास केन्द्रीय सरकार के मंत्रियों और उनके फैसलों पर जांच का अधिकार नहीं है। जो भी हो इस स्टंटबाजी के द्वारा केजरीवाल एण्ड कम्पनी एक बार फिर काफी चर्चा बटोर ले गये हालांकि प्रेस कान्फ्रेंस के दौरान अरविन्द केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के चेहरे पर घबराहट साफ दीख रही थी। 
       केजरीवाल एण्ड कम्पनी तथा उनके समर्थक यह स्थापित करना चाहते हैं कि मुकेश अंबानी और उनकी रिलायंस कम्पनी द्वारा की जा रही लूट नेताओं द्वारा किये जा रहे भ्रष्टाचार का मामला है जिसमें कुछ भ्रष्ट पूंजीपति भी शामिल हैं। इसे वे ‘क्रोनी कैपिटलिज्म’ का नाम देते हैं। 
       असल में यह कुछ पूंजीपतियों के भ्रष्टाचार और उनके क्रोनी कैपिटलिज्म का मामला नहीं है। यह आज के उदारीकृत पूंजीवाद यानी छुट्टे पूंजीवाद का मामला है। इस उदारकृत पूंजीवाद में कुछ पूंजीपति नहीं बल्कि समूचा पूंजीपति वर्ग ही बेतहाशा लूट-पाट में लगा हुआ है। इसके लिए न केवल नियमों-कानूनों को तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है बल्कि कानून को ही बदलवा रहे हैं। इनकी सरकारें यह कर रही हैं और इसे ‘विशेषज्ञों’ की राय का पालन बता रही हैं।
        स्पष्ट ही है कि यह भ्रष्टाचार का मामला नहीं है। यह पूंजीपति वर्ग के मुनाफे को बेतहाशा बढ़ाने की नीति का मामला है। सारी दुनिया में पिछले दो-तीन दशकों से लागू निजीकरण-उदारीकरण-वैश्वीकरण की नीति का यही मतलब है। इसे दुनिया की सारी सरकारें लागू कर रही हैं। इन नीतियों के खिलाफ संघर्ष का मतलब आज के छुट्टा पूंजीवाद के खिलाफ संघर्ष है। यह समूची पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष के बिना संभव नहीं। केवल इस तरह का क्रांतिकारी संघर्ष ही पूंजीपति वर्ग को छुट्टे पूंजीवाद की स्थिति से पीछे धकेल सकता है। 
       इसके मुकाबले इस पूरे मामले को कुछ मंत्रियों और कुछ पूंजीपतियों के भ्रष्टाचार का परिणाम बताना अज्ञानता नहीं बल्कि हद दर्जे की धूर्तता है। इस धूर्तता का असली मकसद है पूंजीवादी व्यवस्था की रक्षा। त्रस्त जनता में यह भ्रम पैदा करना कि इस पतित पूंजीवादी व्यवस्था को सुधारा जा सकता है। 
      केजरीवाल एण्ड कम्पनी की इस स्टंटबाजी का तात्कालिक लक्ष्य लोकसभा चुनाव हैं। देश में अंबानी ग्रुप की साख एक लम्पट ग्रुप की साख है। केजरीवाल एण्ड कम्पनी इस साख को अपने लिए भुनाना चाहते हैं। इनके पीछे अन्य पूंजीवादी घरानों का भी हाथ हो सकता है। 
      जो भी हो, इन मजमेबाजों और स्टंटबाजों को तात्कालिक शोहरत भले मिल जाये पर दूरगामी तौर पर वे औंधे मुंह गिरने के लिए अभिशप्त हैं।

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