मजमेबाज हों तो ऐसे! ऐसे मजमेबाज कम ही होंगे जो कठिन मुसीबत में फंस जाने को भी अवसर बना लें और अपने विरोधियों पर हावी होने का प्रयास करें।
अरविन्द केजरीवाल सरकार के छुटभैये मंत्री कुर्सी पर बैठते ही कांग्रेसियों-भाजपाइयों को मात देने दौड़ पड़े। कानून मंत्री सोमनाथ भारती दिल्ली के खिड़की इलाके में उन अफ्रीकी महिलाओं को सबक सिखाने की हड़बड़ी में तुरत-फुरत वहां पहुंच गये जिनका बरसों से वहां स्थित उनके व्यवसायी संबंधियों से रगड़ा चल रहा था। जाने से पहले उन्होंने टी वी वालों को भी बुला लिया और पुलिस को भी। वहां उन्होंने पुलिस पर दबाव बनाया कि वे रात में अफ्रीकी महिलाओं के घर पर छापा मारें क्योंकि वे नशीली दवाओं और वेश्यावृत्ति में शामिल हैं। जब पुलिस वालों ने रात में महिलाओं से पूछताछ में अपनी कानूनी असमर्थता जाहिर की तो वे पुलिस वालों पर भड़क गये। उन्हें बुरा-भला कहा। इतना ही नहीं उनकी पार्टी की कार्यकताओं ने कुछ महिलाओं को पकड़ा और उनकी जबरन जांच कराई हालांकि जांच में कुछ नहीं निकला। मंत्री जी ने इन महिलाओं के खिलाफ नस्ली भाषा का भी इस्तेमाल किया।
बाद में अपने मंत्री की इसी हरकत को लेकर (साथ ही एक अन्य मंत्री की इसी तरह की हरकत को लेकर) केजरीवाल सरकार पूरी की पूरी धरने पर बैठ गई। उनकी मांग थी कि संबंधित पुलिस थानों के प्रभारियों को निलंबित किया जाये। दो दिन के नाटक और दो पुलिस प्रभारियों को छुट्टी पर भेजे जाने के केन्द्रीय सरकार के फैसले के बाद अब यह धरना समाप्त कर दिया गया है।
इस धरने के साथ इन मजमेबाजों ने एक साथ कई चीजें हासिल करने की कोशिश की। इसके द्वारा उन्होंने अपने उन वादों से जनता का ध्यान हटाना चाहा जिन्हें वे पूरा नहीं कर सकते और जिसके लिए जनता पहले ही आंदोलन पर उतर चुकी है। सैकड़ों-हजारों लोग रोज उन वादों की याद दिलाने के लिए सरकार के पास पहुंच रहे हैं। केवल यही एक चीज अगले लोक सभा चुनावों तक इनकी मिट्टी पलीद कर देगी। इससे बचना जरूरी है।
लेकिन साथ ही यह भी था कि इन छुटभैयों के भीतर अभी ही अपनी छूद्र आकांक्षाओं के चलते जूतम-पैजार शुरू हो चुकी थी। विधान सभा चुनावों में इनकी सफलता के बाद ऐसा न होना अस्वाभाविक होता। इस जूतम-पैजार से हाल-फिलहाल ध्यान हटाना जरूरी है।
इस सबके साथ मजमेबाजों की अपनी पिछली सफलतायें उन्हें चैन से नहीं बैठने दे रही हैं। वे दिल्ली तक पहुंचने के लिए बहुत जल्दी में हैं और उन्हें लगता है कि मजमेबाजी सबसे अच्छा रास्ता है।
पर इस बार पूंजीपति वर्ग और उसके प्रचार तंत्र को लगा कि ये मजमेबाज तो कुछ ज्यादा ही आगे जा रहे हैं और उसकी व्यवस्था के प्रति जन आक्रोश को उस हद तक भड़का रहे हैं जो घातक हो सकता है। वे इन मजमेबाजों को आक्रोशित करने के लिए विकल्प के तौर पर पेश करना चाहते हैं पर इस घातक स्थिति को पैदा नहीं होने दे सकते। इसीलिए इस बार ज्यादातर प्रचार तंत्र इनके प्रति आलोचनात्मक हो गया। यहां तक की केजारीवाल पर ‘अराजकता’ फैलाने का आरोप लगा गया।
अंत में इस बार फिर सब कुछ खुशी-खुशी निपट गया। केजरीवाल ने इसे अपनी जीत घोषित कर दिया। उनके हिसाब से उनका मजमा सफल रहा। लौट कर वे नये मजमे का तैयारी में लग गये होंगे।
लेकिन यह स्पष्ट है कि इस तरह का हर मजमा इनकी हकीकत को और ज्यादा उजागर करता जायेगा। प्रतिक्रिया में वे और ज्यादा भौंड़ी हरकतों पर उतरेंगे।
Aur appki bhondi harkate
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