नेल्सन मंडेला का कल रात को निधन हो गया। वे 95 साल के थे।
नेल्सन मंडेला दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन के नेताओं में थे। 1963 में उनकी गिरफ्तारी के बाद इस राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन ने सचेत तौर पर उन्हें एक प्रतीक के तौर पर स्थापित करना शुरु किया और वक्त के साथ वे इसी रूप में स्थापित हो गये। 27 साल लंबी उनकी गिरफ्तारी ने इस आंदोलन को प्रेरणा भी प्रदान की और साथ ही दुनिया भर से इस आंदोलन ने समर्थन हासिल किया।
दक्षिण अफ्रीका के गोरे नस्ल भेदी शासन के खिलाफ अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस ने 1961 में सशस्त्र संघर्ष छेड़ा। वह सशस्त्र संघर्ष मंडेला की रिहाई तक चलता रहा। अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस के राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष (जिसमें वहां की कम्युनिस्ट पार्टी और ट्रेड यूनियनें भी शामिल थीं।) ने देश में ही नहीं दुनिया भर में समर्थन हासिल किया। केवल ब्रिटेन और अमेरिका के साम्राज्यवादी ही इस गोरे नस्ली शासन के पक्ष में थे। अब तक दुनिया भर के लगभग सारे औपनिवेशिक देश आजाद हो गये थे और सभी के लिए स्पष्ट था कि दक्षिण अफ्रीका का गोरा नस्लभेदी औपनिवेशिक शासन बहुत दिनों तक नहीं चल सकता।
लेकिन 1980 के दशके में सोवियत संघ में गोर्बाचोव के आगमन के साथ सोवियत साम्राज्यवादियों ने अमेरिका व पश्चिमी साम्राज्यवादियों के सामने आत्मसमर्पण करना शुरु कर दिया । इसी प्रक्रिया में उन्होंने अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस को दी जाने वाली सहायता बन्द कर दी (जो वे अमेरिकी साम्राज्यवादियों से प्रतियोगिता के कारण कर रहे थे)। इसके विपरीत अमेरिकी साम्राज्यवादी हावी हुये। ऐसी अवस्था में गोरे शासन ने पश्चिमी (खासकर अमेरिकी) साम्राज्यवादियों की शह पर मंडेला से 1986 में वार्ता शुरु की। यह वार्ता एक समझौते तक पहुँची और मंडेला 1990 में रिहा कर दिये गये। अंततः 1993 में औपचारिक तौर पर दक्षिण अफ्रीका में गोरे नस्लभेदी शासन का अंत हो गया।
इसी के तहत जब 1994 में चुनाव हुए तो अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस ने सरकार बनायी और मंडेला राष्ट्रपति चुने गये। 1999 में अपना कार्यकाल पूरा होने पर वे राजनीति से औपचारिक तौर पर सेवा निवृत्त हो गये हालांकि एक वरिष्ठ राजनेता के तौर पर उनकी भूमिका बनी रही।
जब मंडेला दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन में शामिल हुए थे तो दुनिया राष्ट्रीय मुक्ति युद्धों के झंझावत से गुजर रही थी। इसी झंझावत में मंडेला भी सशस्त्र संघर्ष तक पहुंचे। लेकिन 1990 के दशक तक दुनिया बदल चुकी थी। राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन एक मुकाम तक पहुंच चुके थे। वहां का पूंजीपति वर्ग अब सत्तानशीन होकर प्रतिक्रियावादी हो चुका था। पश्चिमी साम्राज्यवादी हावी थे और वे अपने देशों समेत सारी दुनिया में उदारीकरण-निजीकरण-वैश्वीकरण की नीतियां थोप रहे थे। पहले के गुलाम देशों के शासक भी अब इन्हीं नीतियों पर चल रहे थे।
ऐसे में जब मंडेला ने गोरे नस्ली शासकों से रंगभेद वाला औपनिवेशिक शासन समाप्त करने के लिए समझौता किया तो यह मूलतः उन्हीं की और साम्राज्यवादियों की शर्तो पर ही था। उन्होंने भी यासर अराफात की तरह आत्म समर्पण कर दिया था। इसका परिणाम यह निकला कि वहां औपचारिक तौर पर रंगभेदी शासन तो समाप्त हो गया पर मजदूर वर्ग और मेहनतकश जनता की जिन्दगी में कोई परिवर्तन नहीं आया। सम्पत्ति पहले की तरह मुट्ठी भर गोरे शासकों के हाथों में बनी रही। हां, यह जरूर हुआ कि वक्त के साथ काले लोगों में भी एक सम्पत्तिशाली वर्ग पैदा हो गया।
दशकों तक चले एक उग्र राष्ट्रीय आंदोलन का यह बेहद निराशाजनक अंत था। इसीलिए दुनिया भर के साम्राज्यवादियों और प्रतिक्रियावादी शासकों ने इसको सराहा। अब मंडेला के निधन पर सब उन्हें बढ़-चढ़कर श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं।
जहां तक दक्षिण अफ्रीका के मजदूर वर्ग का सवाल है उसने पिछले दो सालों में बखूबी प्रदर्शित कर दिया है कि वह राष्ट्रीय मुक्ति के बाद के अपने देश के बारे में क्या सोचता है। उसके लिए स्पष्ट है कि कोई भी मुक्ति केवल वहां के काले पूंजीपति वर्ग को मिली। मजदूर वर्ग की हालत में कोई बेहतरी नहीं आयी है। हां, अब उसे गोरे पूंजीपति के साथ काले पूंजीपति भी लूट रहे हैं।
नेल्सन मंडेला के निधन के अवसर पर मजदूर वर्ग उन्हें इसी दृष्टिकोण से देखता है। राष्ट्रीय मुक्ति युद्ध के दौरान उनके शानदार संघर्ष के लिए वह उन्हें याद करता है लेकिन यह रेखांकित करते हुए कि अंत समय में उन्होंने स्थानीय गोरे शासकों और साम्राज्यवादियों के सामने आत्म समर्पण कर दिया। काले पूंजीपति वर्ग के एक समय के इस जुझारू नेता ने अंत में जो समझौता किया उससे काले पूंजीपतियों को तो शासन और सम्पत्ति हासिल हुयी पर मजदूर वर्ग की स्थिति में कोई बुनियादी परिवर्तन नहीं आया।
मजदूर वर्ग को अपनी मुक्ति की लड़ाई नये सिरे से लड़नी पड़ेगी। इसमें नेल्सन मंडेला के पुराने जुझारू संघर्षों की याद तो रहेगी पर उससे ज्यादा इस बात की चेतना कि उनके समझौतापरस्त चरित्र का अंत क्या था।
No comments:
Post a Comment