Thursday, November 28, 2013

नेपाल में सविंधान सभा के चुनाव: यथास्थिति को संवैधानिकता

        नेपाल में 19 नवंबर को हुए संविधान सभा  चुनावों में पिछली बार के नतीजों को उलटते हुए नेपाली कांग्रेस और नेपाल की कम्युनिस्ट  पार्टी (एमाले) क्रमशः पहले और दूसरे स्थान पर आ गये जबकि  नेपाल की एकीकृत कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) तीसरे स्थान पर। 240 सीटों के लिए हुए सीधे चुनावों में तो इनका अंतर काफी रहा - क्रमशः 105, 91 और 26 सीटें। 335 सीटों के लिए आनुपातिक चुनावों में पहले दो के  मतों का प्रतिशत लगभग एक जैसा ही है जबकि माओवादी  इनके करीब दो तिहाई हैं।  इसके फलस्वरूप नेपाली कांग्रेस और एमाले कुल मिलाकर दो तिहाई बहुमत के करीब पहुंच जाते हैं। 
2008 के चुनावों में सभी लोगों को आश्चर्य में डालते हुए माओवादी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। तब नेपाली कांग्रेस और एमाले मिलकर भी इससे पीछे थे। इन दोनों पार्टियों ने अपनी हार को सहजता से स्वीकार नहीं किया था। 
पिछली संविधान सभा दो साल के लिए चुनी गयी थी लेकिन वह चार  बार समय विस्तार पाकर चार साल तक खिंचती रही। इसके बावजूद वह संविधान नहीं बना पायी। माओवादी पार्टी द्वारा बहुत ज्यादा समझौते के बाद भी संविधान निर्माण अंततः संघीय ढांचे के सवाल पर अटक गया। नेपाली कांग्रेस और एमाले किसी भी तरह संघीय ढांचे को स्वीकार करने को तैयार नहीं थे। 

      पिछली संविधान सभा के भंग हो जाने के बाद नयी संविधान सभा के चुनाव पर भी पर्याप्त रगड़ घिस्स होती रही। जो खींचतान पिछली संविधान सभा में थी वह जारी रही। अंततः 19 नवंबर को नयी संविधान सभा के लिए चुनाव हुए। इस बीच माओवादी पार्टी स्वयं विभाजित हो चुकी थी। उसका करीब एक तिहाई हिस्सा अलग होकर एक अलग पार्टी बना चुका था: नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी-माओवादी। इस हिस्से ने इन चुनावों का बहिष्कार किया हालांकि इसके बावजूद इस बार चुनावों का प्रतिशत पिछली बार के 61 प्रतिशत के मुकाबले 70 प्रतिशत से ज्यादा चला गया। 
माओवादी पार्टी की हार का प्रमुख कारण तो इसमें हुआ विभाजन है। यदि इसके एक तिहाई मत अभी भी इसके पास होते तो स्थिति मोटा-मोटी पिछली बार की तरह होती। लेकिन साथ ही यह बात भी है कि किसी हद तक मजदूर-मेहनतकश जनता का इस पार्टी से मोहभंग हुआ है। इसके स्थानीय नेताओं से तो यह मोहभंग और भी ज्यादा है जो सीधे और आनुपातिक चुनावों में इस पार्टी  के प्रदर्शन में फर्क  से नजर आता है। आनुपातिक मतों में यह बाकी दोनों पार्टियों से बहुत दूर नहीं है पर सीधे चुनावों में वह उनकी एक-चैथाई सीटों तक ही पहुंच पायी है।
      वर्तमान चुनावों का राजनीतिक निहितार्थ यह है कि अब नेपाल उसी पूंजीवादी जनतांत्रिक व्यवस्था में स्थिर हो जायेगा जो 2008 में राजशाही की औपचारिक समाप्ति के साथ स्थापित हुआ था। जो संविधान बनेगा वह इसी को संवैधानिकता प्रदान कर देगा। इस जनतंत्र को प्रगतिशील दिशा में थोड़ा ढकेलने की वह गुंजाइश भी अब खत्म हो गयी है जो पहली संविधान सभा के दौरान माओवादी पार्टी की प्रमुख स्थिति के कारण थी। पिछली संविधान सभा के दौरान इस दिशा में सबसे बड़ी बाधा नेपाली कांग्रेस व एमाले थे और अब ये ही बहुमत में हैं। 
       कुल मिलाकर नेपाली क्रांति के आगे बढ़ने की फिलहाल अब कोई संभावना नहीं रह गयी है। भविष्य में यह क्रांति नये सिरे से ही शुरु होगी। लेकिन इस बीच दोनों माओवादी पार्टियों की जो राजनीतिक-सांगठनिक स्थिति बनी है वह क्रांति के लिहाज से बेहद दिक्कततलब है। केवल विचारधारात्मक-राजनीतिक तौर पर फिर से नयी जमीन ग्रहण करने पर ही इस दिशा में कोई संभावना बनती है। 
       इस बीच नेपाली कांग्रेस और एमाले के पिछले रिकार्ड को देखते हुए यह जरूरी है कि संविधान सभा के बाहर जुझारु संघर्ष चलाया जाय अन्यथा वे और भी पीछे जा सकते हैं। नेपाल की मजदूर-मेहनतकश जनता को इस मामले में विशेष सजग रहने की आवश्यकता है। 

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