मुजफ्फरनगर दंगों के बारे में अब यह अधिकाधिक स्पष्ट होता जा रहा है कि इसमें पूंजीवादी राजनीतिक पार्टियों ने अत्यन्त घृणित भूमिका निभायी है, बल्कि यह उन्हीं का काम है। प्रमुखतः इसमें भाजपा और सपा का हाथ है।
मुजफ्फरनगर और आस-पास के जिलों के गांवों में जिस तरह के दंगे हुए वे अभूतपूर्व थे। इस तरह के दंगे इन गांवों में आजादी के बाद कभी नहीं हुए। इस समय भी इन दंगों के होने की कोई वजह नहीं थीं। इस तरह यह दंगे पूर्व नियोजित थे। बस इसके लिए किसी घटना का इंतजार किया जा रहा था।
यह काबिले गौर है कि इन दंगों के बाद करीब चालीस हजार मुसलमान अपने गांवों को छोड़कर पलायन कर गये हैं। वे दिल्ली के पास लोनी से लेकर कैंपों और पुलिस थानों में शरण लिए हुए हैं। मुसलमानों का इस तरह से अपने गांवों से पलायन उसी तरह का है जैसे 2002 के नरसंहार के बाद गुजरात में हुआ था।
जब से गुजरात नरसंहार में बदनाम अमित शाह उत्तर प्रदेश भाजपा के प्रभारी हुए हैं तब से इस तरह के दंगों की आशंका बढ़ गयी थी और वक्त के साथ वह आशंका सच भी साबित हुयी। महत्वपूर्ण बात यह है कि ये दंगे ठीक उसी समय हुये जब नरेन्द्र मोदी को भाजपा का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने की प्रक्रिया चरम पर पहुच रही थी। अमित शाह ने अपने संरक्षक नेता को बहुत अच्छा उपहार दिया। इसमें उन्होंने गुजरात के अनुभवों का भरपूर इस्तेमाल किया होगा।
जहां तक सपा की बात है, वह अयोध्या में पंच कोसी परिक्रमा के समय से ही एक खास चाल चल रही है। वह भाजपाइयों और संघियों को साम्प्रदायिक माहौल बनाने दे रही है जिससे आतंकित मुसलमान उसके नजदीक आ जायें। लेकिन उसकी यही चाल मुजफ्फरनगर दंगो में उसके गले पड़ गयी। यहां संघी सभी सीमाएं तोड़कर आगे निकल गये और परिणामस्वरूप मुसलमान सपा से बेहद नाराज हैं।
जैसा कि सारे पूंजीवादी अखबारों में आ रहा है, इस जाट बाहुल क्षेत्र में ये दंगे जो साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण पैदा कर रहे हैं, उसका सबसे ज्यादा नुकसान अजीत सिंह की पार्टी रालोद और सपा को होगा। इसका सबसे ज्यादा फायदा भाजपा को होगा। जाट अपनी पुरानी पार्टी को छोड़कर भाजपा की ओर जा सकते हैं।
ठीक यही चीज गंभीर खतरा पैदा करती है। भाजपा की यह सफलता संघ परिवार को प्रेरित करेगी कि इसी तरह का साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण उत्तर प्र्रदेश के अन्य हिस्सों और सारे देश में पैदा किया जाय। पिछले छः महीनों में जगह-जगह दंगे इसी दिशा में संकेत हैं। मुजफ्फरनगर दंगे इसकी नवीनतम कड़ी हैं।
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