Saturday, September 14, 2013

एक भष्मासुर की ताजपोशी

यह एक बेहद प्रतीकात्मक बात है कि भाजपा ने नरेन्द्र मोदी को ठीक उसी दिन प्रधानमंत्री पद का अपना उम्मीदवार घोषित किया जिस दिन 16 दिसम्बर के बलात्कार के मामले में चार अभियुक्तों को फांसी की सजा सुनाई गई। इन अभियुक्तों को फांसी चढ़ाने की मांग करने वालों में भाजपाई सबसे आगे थे। इन दोनों बातों से मानो देश एक झटके से नये चरण में प्रवेश करता दिखा- एक क्रुर फासीवादी समाज की ओर। 
नरेन्द्र मोदी को लेकर भाजपा में एक लम्बे समय से उठा-पटक चल रही थी। इसके दो कारण थे। एक तो नरेन्द्र मोदी की धुर साम्प्रदायिक छवि के चलते भाजपा को खतरा था, दूसरे भाजपा के अन्य नेता प्रधानमंत्री पद की अपनी उम्मीदवारी नहीं त्यागना चाहते थे। लालकृष्ण आडवानी में ये दोनों बातें एक साथ समाहित हो गयीं थीं। मजे की बात यह है कि आडवानी ही ठीक वह व्यक्ति थे जिन्होंने 1980 व 90 के दशक में साम्प्रदायिक धु्रवीकरण के चलते भाजपा को सत्ता के नजदीक पहुंचाया था तथा उन्होंने ही 2002 के गुजरात दंगों के बाद नरेन्द्र मोदी को बचाया था। अब नरेन्द्र मोदी उनके लिए भष्मासुर साबित हुए।  
नरेन्द्र मोदी को लेकर भाजपा की इस अन्दरूनी उठा-पटक का समाधान नेताओं की किसी आपसी समझदारी या सहमति से नहीं हुआ। इसके ठीक विपरीत भाजपा की मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने हस्तक्षेप किया तथा भाजपा को नरेन्द्र मोदी की ताजपोशी के लिए आदेश दिया। साथ ही उसने यह भी कहा कि भाजपा को धारा 370, समान आचार संहिता तथा राम मन्दिर का पुराना मुद्दा वापस लाना चाहिये। संघ का रुख स्पष्ट है: भाजपा को अगला चुनाव हिन्दू साम्प्रदायिक धु्रवीकरण के बल पर लड़ना और जीतना चाहिए।
यह अचानक या संयोगवश नहीं है कि पिछले कुछ महिनों में जगह-जगह साम्प्रदायिक दंगे होने लगे हैं। हाल के मुजफ्फर नगर के दंगों में तो संघ परिवार का हाथ दिन के उजाले की तरह स्पष्ट था। यहां अमित शाह ने अपने गुजरात अनुभव का भरपूर इस्तेमाल किया। 
नरेन्द्र मोदी को इस समय देश के बड़े पूंजीपतियों के एक हिस्से का समर्थन हासिल है। मोदी ने उन्हें गुजरात में जो लूट की छूट दी है उसे वे देश के पैमाने पर पाने की उम्मीद करते हैं। नरेन्द्र मोदी के तथाकथित गुजरात माडल का यही मतलब है। इस लूट से कुछ जूठन हासिल कर रहे सवर्ण मध्यम वर्ग को भी नरेन्द्र मोदी भा रहे हैं। फांसी-फांसी चिल्लाने वालों में यही मध्यम वर्ग सबसे आगे था। उसे एक ही दिन दो तोहफे मिले। 
जहां तक मजदूर वर्ग एवं अन्य मेहनतकश जनता की बात है वह किसी मुगालते में नहीं है। वह हिटलर के इन नवीन संस्करणों से उत्पन्न खतरों को भली-भांति पहचानता है। ठीक इसीलिए वह इनका दृढ़ता से मुकाबला करेगा। 

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