मिश्र में ढाई साल से चल रहे विद्रोह को हथियाने के प्रयास में लगे हुए शासक वर्ग के दो धड़ों के आपसी संघर्ष में करीब पांच सौ से ज्यादा लोग मारे गये हैं। दो दिनों से जारी यह खूनी संघर्ष अभी रुका नहीं है।
यह तात्कालिक संघर्ष सैनिक शासन द्वारा मुस्लिम ब्रदरहुड के खिलाफ छेड़ा गया। 3 जुलाई को तख्तापलट कर सेना ने जब मुस्लिम ब्रदरहुड के राष्ट्रपति मोरसी को हटा दिया तथा उसके स्थान पर न्याय और विकास पार्टी के शासन का अंत कर दिया तभी से इसके समर्थक मोरसी की बहाली की मांग करते हुए चौक में जमा थे। सुलह-समझौते की कई दौर की वार्ताओं के बाद भी जब दोनों के बीच कोई समझौता नहीं हो पाया तब सैनिक शासन ने मुस्लिम ब्रदरहुड से संगीनों से निपटने की सोची। अपनी बारी में मुस्लिम ब्रदरहुड ने ईसाइयों पर हमला कर इसे साम्प्रदायिक रूप देने का प्रयास किया।
सैनिक शासन द्वारा यह कार्रवाई मुस्लिम ब्रदरहुड के साथ विद्रोह के पूरे ढाई साल में ताल-मेल बैठाने के बाद की गई है। मुस्लिम ब्रदरहुड मुबारक शासन के दौरान उसका विरोध करते हुए भी सत्ता के भागीदारों में था। मुबारक के पतन के बाद उसके नजदीकी लोगों तथा उसकी पार्टी के खिलाफ तो लोगों का गुस्सा फूटा पर सेना मुबारक की बलि चढ़ाकर पहले जैसी स्थिति में बनी रही। मुबारक के बाद करीब एक साल तक उसी ने शासन किया फिर चुनाव हुए। चुनाव में मुस्लिम ब्रदरहुड की जीत (करीब एक चैथाई मत हासिल करने के द्वारा) के बाद सैनिक नेतृत्व और मुस्लिम ब्रदरहुड में तालमेल की कोशिशें हुयीं। लेकिन बाद में मुस्लिम ब्रदरहुड की महत्वकांक्षाओं के कारण यह तालमेल टूट गया जब मुस्लिम ब्रदरहुड ने सत्ता पर एकाधिकार करने को सोची। इस बीच अपने जीवन में कोई मूलभूत परिवर्तन न होता देख मिश्र की विद्रोही जनता धैर्य खोने लगी। मुस्लिम ब्रदरहुड के हेकड़ी भरे शासन और उसकी तानाशाही प्रवृत्तियों ने लोगों के गुस्से को भड़काया ही। यह मोरसी के इस्तीफे के ज्ञापन तथा 30 जून को विशाल प्रदर्शन के रूप में फूट पड़ा।
सैनिक नेतृत्व तथा मुबारक के पुराने समर्थकों ने इसका फायदा उठाया। अंततः सेना ने 3 जुलाई को तख्तापलट सत्ता पर कब्जा कर लिया। हालांकि एक नागरिक मंत्रिमण्डल का गठन किया गया तथा चुनाव कराने की घोषणा की गई पर यह सैनिक तख्तापलट के वास्तविक चरित्र को नहीं छिपा सका। इस तख्तापलट को अमेरिकी साम्राज्यवादियों तथा सऊदी शासकों का पूरा समर्थन था।
हालांकि मिश्र की विद्रोही जनता ने मुस्लिम ब्रदरहुड के शासन का अंत होने पर चैन की सांस ली पर असल में और भी बड़ा शैतान सत्ता में काबिज हो गया। सैनिक तख्ता पलट और उसे अमेरिकी साम्राज्यवादियों और सऊदी शासकों के समर्थन का असली कारण यही था कि मुस्लिम ब्रदरहुड के शासन की हेकड़ी तथा नाकाबिलियत की वजह से चीजें हाथ से निकल रही थीं। मामला पूंजीवादी व्यवस्था के ही खिलाफ जाता दीख रहा था। पूंजीपति वर्ग के शासन को खतरा पैदा हो रहा था।
सैनिक नेतृत्व द्वारा तख्तापलट तथा मुस्लिम ब्रदरहुड के खिलाफ वर्तमान कार्रवाई वर्तमान विद्रोह को ठंडा कर पूंजीवादी व्यवस्था को बचाने की कार्रवाई है। इसके लिए वह किसी भी दमन से नहीं हिचकेगा। लेकिन मिश्र की विद्रोही जनता के तेवरों को देखते हुए उसके आसानी से सफल हो जाने की गुंजाईश कम है।
यह याद रखने की बात है कि जब 2011 में जनता के विद्रोह के बाद सैनिक नेतृत्व ने मुबारक की छुट्टी कर जनता को शांत करने तथा पुराने शासक को बेहद थोड़े कतर-ब्योंत के साथ बचाने की सोची तो वह सफल नहीं हुआ। खासकर 2011 के अंत में व्यापक पैमने पर जनता सड़कों पर आई और उसकी सेना से झड़पें हुईं। महत्वपूर्ण बात यह है कि तब मुस्लिम ब्रदरहुड सेना के साथ मिलकर दमन में अपना हाथ बंटा रहा था।
पिछले ढाई सालों के घटनाक्रम को देखते हुए यह स्पष्ट है कि एक प्रबल जन-ज्वार सैनिक शासन के खिलाफ जल्द ही फूट पड़ेगा। पिछले ढाई सालों में जन विद्रोह लहरों के रूप में चलता रहा है। एक बड़ी लहर जल्दी ही उठेगी जो सैनिक शासन को सत्ता छोड़ने को मजबूर कर देगी। सैनिक शासन की आड़ में अपनी पूंजीवादी व्यवस्था को बचाने की उम्मीद करने वाला मिश्र का पूंजीपति वर्ग अभी सुरक्षित नहीं है।
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