Thursday, August 1, 2013

समाधान वास्तविक संघीय ढांचे में है

अलग तेलांगाना प्रदेश की घोषणा के बाद ठीक वही हुआ जिससे कांग्रेस पार्टी भयभीत थी जिस कारण वह इस प्रदेश के निर्माण को लगातार टालती जा रही थी। तेलांगाना प्रदेश के निर्माण की घोषणा के साथ ही देश के कई हिस्सों में अलग प्रदेश की मांग के आंदोलन फिर मुखर हो गये हैं। गोरखालैंड की मांग वाले इलाकों में तो पिछले तीन दिनों से बंद है। 
पिछले दो साल से ही यह स्पष्ट है कि तेलांगाना प्रदेश के निर्माण को बहुत दिनों तक टाला नहीं जा सकता। भाषावार प्रदेशों के निर्माण के समय से ही तेलांगाना की मांग उठती रही है। उस समय इस मांग को दरकिनार कर आंध्र प्रदेश का गठन कर दिया गया। इस बार जब यह मांग फिर से उठी तो उसने स्थानीय कांग्रेस पार्टी में विभाजन कर दिया। हालात यहां पहुंच गये कि कांग्रेस पार्टी के साथ वाले नेताओं को भी इस मांग के समक्ष झुकना पड़ा। कांग्रेस पार्टी और बहुत सारी क्षेत्रीय पार्टियों के लिए नये प्रदेशों की मांग इस वजह से परेशानी का कारण बनती है कि उनके ढेरों राजनीतिक समीकरणों को गड़बड़ाती है। आम तौर पर सभी पार्टिर्यों के लिए यह परेशानी का इसलिए कारण बनती है कि ये सभी पूंजीवादी पार्टियां भारत में एक वास्तविक संघीय ढांचे से घबराती हैं। एक केन्द्रीकृत ढांचा ही उन्हें अपनी पूंजीवादी व्यवस्था के लिए ज्यादा सुरक्षित लगता है।
         यह याद रखने की बात है कि कांग्रेस पार्टी ने आजादी के पहले ही भाषावार प्रदेशों का गठन और उन पर आधारित एक संघीय ढांचे का वादा किया था। इसी के चलते संविधान में औपचारिक तौर पर संघीय ढांचे की बात दर्ज की गई।
लेकिन वास्तव में कांग्रेस सरकार इस वादे से मुकर गयी। संविधान वास्तव में संघीय के बदले एक केन्द्रीकृत ढांचे को पुख्ता करता है। भाषावार प्रदेशों के गठन के लिए 1950 के दशक की शुरुआत में तीखे आंदोलन हुए तब कहीं जाकर प्रदेशों के पुनर्गठन के लिए आयोग का गठन किया। इसके बाद धीमे-धीमे करीब डेढ़ दशक में भाषावार प्रदेश गठित किये गये। 
इसके बाद भी कई प्रदेशों की मांग बनी रही और कालांतर में नयी मांगे भी उठ खड़ी हुयीं। अपने  केन्द्रीयकृत चरित्र के अनुरूप ही देश की सभी पूंजीवादी पार्टियों  और सरकारों ने इन मांगो के साथ आंख-मिचौनी  का खेल खेला। यह खेल अभी भी जारी है और आगे भी जारी रहेगा। 
भारत में राष्ट्रीयताओं और क्षेत्रीय स्वायत्ता समेत अलग प्रदेशों की सभी मांगो का समाधान केवल एक वास्तविक संघीय ढांचे में ही हो सकता है। लेकिन भारत का पूंजीपति वर्ग इसे होने नहीं देगा। इसीलिए अलग प्रदेशों की मांग समेत राष्ट्रीयताओं और स्वायत्ता की सारी समस्यायें इसी तरह उलझी रहेंगी। 

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