उस व्यक्ति के बारे में क्या कहा जायेगा जो डायबटीज से पैदा होने वाली समस्याओं के हल के लिए खूब शुगर खाना शुरु कर दे? परले दरजे का बेवकूफ! पर उस भारत सरकार के बारे में क्या कहा जाये जो अर्थव्ययवस्था की सेहत सुधारने के लिए ऐसे ही कदम उठा रही है?
16 जुलाई को भारत सरकार ने विदेशी पूंजी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए कई क्षे़त्रों में इसकी सीमा बढ़ाई तथा कई में इसे नियंत्रण से बाहर करने की घोषणा की। इसमें दूरसंचार, बीमा, रक्षा, खुदरा व्यापार इत्यादि क्षेत्र हैं जिनमें विदेशी पूंजी निवेश को लेकर लम्बे समय से घमासान मचा हुआ है।
कहा जा रहा है कि इस कदम से देश में विदेशी पूंजी को आकर्षित करने में मदद मिलेगी। इससे एक तो औद्योगिक उत्पादन की हालत सुधरेगी, दूसरे रुपये की गिरावट में कमी आयेगी। इस कदम का तात्कालिक कारण रुपये की गिरती सेहत ही बताया जा रहा है।
लेकिन पिछले कुछ महीनों में और खासकर जून से रुपये में गिरावट क्यों हुयी! एक तो इसलिए कि व्यापार घाटे के बढ़ने से चालू खाता खासा ऋणात्मक हो गया जिससे विदेशी मुद्रा देश से बाहर जाने लगी और उसकी मांग बढ़ गई जबकि उसी अनुपात में रुपये की मांग कम हो गई। दूसरे, अमेरिकी बाजार में डालर की इफरात में कमी आई (क्योंकि सरकार ने बाजार में डालर डालना बंद कर दिया है) इसलिए विदेशी निवेशक भारत से डालर खींच रहे हैं। सट्टेबाजों का रुख भारत से बाहर की ओर है।
स्वभावतः ही रुपये की यह खस्ता हालत देश की अर्थव्यवस्था के वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ ज्यादा एकाकार होने तथा खासकर सट्टेबाज पूंजी के देश में खुले विचरण की छूट देने के कारण हुई है। ऐसे में स्वतः ही यह नतीजा निकलता है कि रुपये को मजबूत करने के लिए इसके उल्टे कदम उठाये जायें। पर सरकार तो सट्टेबाज पूंजी को और ज्यादा आमंत्रित कर रही है।
भारत सरकार के शीर्ष पर विराजमान मनमोहन सिंह, पी. चिदंबरम व मोन्टेक सिंह अहलूवालिया की तिकड़ी पिछले बीस-बाईस सालों से यह कर रही है तथा इसमें यह अब और आगे बढ़ रही है। वह इसमें किसी भी हद तक आगे जाना चाहती है। वास्तव में इस सरकार को चलाने वाला पूंजीपति वर्ग यही चाहता है। वह यूरोपीय-अमेरीकी साम्राज्यवादियों की तर्ज पर संकट के समय में भी उदारीकरण-वैश्वीकरण की नीतियों को और आगे बढ़ाना चाहता है क्योंकि उसके मुनाफे को बढ़ाने का उसे यही रास्ता दीख रहा है। इससे पूरी अर्थव्यवस्था डूब जाये या मजदूर-मेहनतकश जनता तबाह हो जाये तो हो जाये।
मनमोहन सिंह एण्ड कम्पनी की इस हेकड़ी को केवल मजदूर वर्ग और व्यापक मेहनतकश जनता के एकजुट संघर्षों से ही चुनौती दी जा सकती है। अन्यथा वे इसी रास्ते पर बढ़ते जायेंगे।
No comments:
Post a Comment