
आपदा प्रभावित क्षेत्र तक पहुंचने वाले मार्ग- रुद्रप्रयाग जिले में आपदा का मुख्य केन्द्र केदारघाटी व रामबाड़ा था। कुछ एक अपवादों को छोड़कर लगभग सभी मौतें इन्हीं जगहों पर हुईं। इसके अतिरिक्त नदियों में आई बाढ़ के कारण तोड़-फोड़ संबंधी तबाही जिले के कई इलाकों में हुई।
केदारघाटी पहुँचने के दो प्रमुख प्रवेश द्वार ऋषिकेश व कोटद्वार हैं। ऋषिकेश से देवप्रयाग होते हुए श्रीनगर पहुंचा जाता है। दूसरी तरफ कोटद्वार से सतपुली, पौड़ी होते हुए श्रीनगर पहुंचा जाता है। पहले रास्ते की दूरी लगभग 110 किमी. और दूसरे रास्ते की दूरी लगभग 130 किमी. है।
श्रीनगर के आगे यात्रा का मुख्य मार्ग रुद्रप्रयाग, तिलवाडा, अगस्तमुनि, ऊखीमठ, गुप्तकाशी, सोनप्रयाग होते हुए गौरीकुंड तक है। यह दूरी लगभग 140 किमी है। गौरीकुंड से 14 किमी की पैदल चढ़ाई के बाद केदारघाटी पड़ती है। इस पैदल मार्ग के ठीक बीच में रामबाडा पड़ता है।
मौजूदा समय में रुद्रप्रयाग के आगे यह मुख्य मार्ग जगह-जगह पर सड़कें टूट जाने के कारण बाधित है। इस मार्ग पर बसें व ट्रक नहीं चल रहे हैं। छोटी-छोटी दूरियों के लिए छोटी सवारी गाडि़यां उपलब्ध हैं। रुद्रप्रयाग से तिलवाड़ा और अगस्तमुनि से फलई बैंड तक पैदल जाना पड़ रहा है। यह दोनों दूरी मिलाकर लगभग 8 किमी. पडेगी। इस मार्ग से ऊखीमठ जाने का मार्ग पूरी तरह बंद है। हालांकि इस मार्ग पर कुछ जगह काम चलाऊ मोटर मार्ग खोलने का काम चल रहा था। फ्लई बैंड से गुप्तकाशी तक के लिए मोटर मार्ग खुला हुआ है। उससे आगे सोनप्रयाग तक गाडि़यां जा रही हैं।
गुप्तकाशी तक पहुंचने का इस समय मुख्य वैकल्पिक मार्ग ऋषिकेश से टिहरी, घनसाली, बिनोई बैंड होते हुए बना हुआ है। इस मार्ग से गुप्तकाशी तक की दूरी मुख्य मार्ग की तुलना में लगभग दुगुनी हो गयी है।
इसके अतिरिक्त श्रीनगर से गोपेश्वर, गौचर होते हुए भी ऊखीमठ पहुंचा जा सकता है। ऊखीमठ से फिर लगभग 8-9किमी. पैदल चलकर गुप्तकाशी पड़ता है।
आपदा प्रभावित क्षेत्र का वर्गीकरणः रुद्रप्रयाग जिले को आपदा से हुए नुकसान के चरित्र व लोगों को हो रही परेशानियों की तीव्रता के आधार पर तीन क्षेत्रों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
1) श्रीनगर से ऊखीमठ तक का क्षेत्र- बाढ़ से हुई तबाही के मंजर श्रीनगर से दिखाई दे रहे हैं। कीर्तिनगर से श्रीनगर को जोड़ने वाले मार्ग पर मलबे के ढे़र लगे हैं। इस मार्ग से अलकनंदा नदी की तरफ में इमारतों को भारी नुकसान हुआ है। खासकर एस.एस.बी.ट्रेनिंग सेंटर व पोलीटेक्निक की इमारतें बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई हैं। सड़क से मलबा बार-बार हटाया जा रहा है, किन्तु बारिश होते ही किनारे जमा मलबा पुनः सड़क पर इकट्ठा हो जा रहा है।
श्रीनगर से रुद्रप्रयाग के बीच कोई विशेष नुकसान नहीं हुआ है। किन्तु रुद्रप्रयाग से आगे पड़ने वाले तिलवाड़ा, सुभाड़ी, अगस्तमुनि, विजयनगर, जवाहरनगर, गंगानहर और ऊखीमठ तक मंदाकिनी नदी में आई बाढ़ ने दोनों जगह सड़कें तोड़ दी हैं। साथ ही नदी के दोनों ओर 20-20 मीटर तक भवनों को ढहा दिया है। नदी के दोनों ओर बसे इलाकों को जोड़ने वाले कई पुलों को भी बहा दिया है। अगस्तमुनि में पांच स्कूलों के भवन बह गये।
उपरोक्त सबके बावजूद भी इस पूरे इलाकेमें जनहानि नहीं हुई है। इसकी मुख्य वजह बाढ़ का दिन के समय आना था। लेकिन फिर भी लोगों को अपना सामान निकाल पाने का अवसर नहीं मिल पाया।
यह क्षेत्र केदारनाथ यात्रा के मुख्य मार्ग पर पड़ता है, फिर भी यहां के लोगों की आजीविका व व्यवसाय उस हद तक यात्रा सीजन पर निर्भर नहीं हैं, जितना कि बाकी दो क्षेत्रों के लोगों की है। सीजन में इस क्षेत्र में केदारघाटी में कमाई के लिए भी लोग उतनी बड़ी संख्या में नहीं जाते, जितनी कि बाकी दो क्षेत्रों से जाते हैं(ऊखीमठ को छोड़कर)। इसलिए इस क्षेत्र से वहां मरने वालों की संख्या भी नगण्य ही है। (हमें इस क्षेत्र से ऐसे मृतकों के बारे में सुनने को नहीं मिला, फिर भी संभव है कि कुछ लोग यहां से भी हताहत हुए होंगे।)
मुख्य मार्ग के टूट जाने से इस क्षेत्र के बाजारों में आवश्यक मालों के पहुंचने की समस्या मौजूद है। साथ ही गांवों से बाजारों को जोड़ने वाले पुलों व सड़कों के टूट जाने से ग्रामीणों के लिए आवश्यक मालों व चिकित्सा सुविधाओं की आपूर्ति बाधित है। इसलिए इस क्षेत्र में भी वाहन सामग्रियों की आवश्यकता बनी हुई है। राहत सामग्री वितरण का काम इस क्षेत्र में जारी था। इस क्षेत्र में भी ऊखीमठ व उसके आस-पास की स्थिति ज्यादा खराब है।
2) गुप्तकाशी के आस-पास व यहां से लेकर केदारघाटी तक का क्षेत्र- ऊखीमठ के सामने मंदाकिनी नदी के पार गुप्तकाशी बसा हुआ है। इन दोनों कस्बों को जोड़ने वाला केवल एक पुल बाढ़ की तबाही से बचा रह गया है। गुप्तकाशी से केदारनाथ 48 किमी. दूर है। गुप्तकाशी के आस-पास व केदारनाथ मार्ग पर पड़ने वाले क्षेत्र के लोगों की आजीविका व व्यवसाय अधिकांशतः केदारनाथ यात्रा पर निर्भर है। इस पूरे ही क्षेत्र से सीजन के दौरान भारी संख्या में लोग रामबाड़ा व केदारघाटी में कमाई के लिए जाते हैं। इसमें पंडिताई के काम से लेकर, छोटी-मोटी दुकानें लगाने वाले, घोड़े-खच्चर वाले, डंडी-कंडी वाले, कुली आदि लोग शामिल हैं।
इस क्षेत्र में इस समय तक गुप्तकाशी से सोनप्रयाग तक और सोन प्रयाग के ऊपर (मुख्य मार्ग से हटकर) स्थित त्रियुगीनारायण गांव तक मार्ग खुल गया है। सोनप्रयाग के आगे गौरीकुंड तक का मोटरमार्ग व उसके आगे का पैदल मार्ग(कुल दूरी 19 किमी) पूर्णतः क्षतिग्रस्त हो चुका है। इस समय वहां पैदल जाना भी बेहद दुसाध्य व जोखिम भरा है। हालांकि अब यहां कोई लोग नहीं रह गये हैं। जिंदा बचे सभी तीर्थयात्री निकाले जा चुके हैं। गौरीकुंड के पास स्थित एकमात्र गौरी गांव के भी कमोबेश खाली हो जाने की सूचना है। (गौरतलब है कि आम तौर पर भी गौरीकुंड के आगे लोग केवल यात्रा सीजन के दौरान ही रहा करते थेे।)
इस इलाके में बाढ़ द्वारा तोड़फोड़ रामपुर, सीतापुर, सोनप्रयाग, रामबाडा और केदारघाटी में हुई है। यह रिहायशी इलाके गुप्तकाशी से लगभग 20 किमी. बाद पड़ने शुरू होते हैं। ज्यादा तबाही सोनप्रयाग, रामबाड़ा व केदारनाथ में हुई है। जहां सोनप्रयाग लगभग आधा बह गया है, वहीं रामबाड़ा व केदारनाथ पूरी तरह तबाह हो गये हैं। लगभग सभी मौतों का घटनास्थल यही रहा है।
मरने वालों में बड़ी संख्या तीर्थयात्रियों की रही है। लेकिन इस क्षेत्र में पड़ने वाले ल्वारा, लमगौंडी, पिथौड़ा, शेखाणी, गुप्तकाशी, फाटा, बडांसू, रामपुर, सीतापुर, त्रियुगीनारायण, गौरी आदि गांवों व कस्बों के भी कई दर्जन स्थानीय लोग सोनप्रयाग, रामबाड़ा व केदारघाटी में मारे गये।
इस क्षेत्र में स्थानीय लोगों के आजीविका के साधन बहुत बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। गनीमत यह है कि इस क्षेत्र में संपर्क मार्गों के सलामत रहने के कारण राहत कार्यों व चिकित्सा सुविधाओं का काम थोड़ा ठीक स्थिति में है। किन्तु रोजगार के चैपट हो जाने के कारण आम तौर पर जन-जीवन अस्त-व्यस्त और अनिश्चित है। बाजारों में पूर्णतः मायूसी पसरी हुई है।
3) कालीमठ क्षेत्र- यह क्षेत्र केदारनाथ के मार्ग से हटकर किन्तु उसी दिशा में पड़ता है। गुप्तकाशी से एक मोटरमार्ग (लगभग 30 किमी लम्बा) इस पूरे क्षेत्र को गुप्तकाशी व ऊखीमठ से जोड़ता है। लगभग 30 किमी. का पैदल रास्ता तय करके यहां से भी केदारघाटी पहंुचा जा सकता है। इस क्षेत्र के भी लोगों की निर्भरता केदारयात्रा पर अच्छी-खासी निर्भर करती है। इस क्षेत्र से भी यात्रा सीजन में लोग केदारघाटी में कमाई के लिए जाते हैं। इस क्षेत्र में स्थित लगभग दर्जन भर गांवों से भी लगभग सौ-डेढ़ सौ लोग हताहत हुए हैं।
इस समय इस क्षेत्र की स्थिति सबसे विकट है। गुप्तकाशी व ऊखी मठ दोनों जगहों से इस क्षेत्र का मोटर मार्ग संपर्क सड़कों व पुलों के टूट जाने से पूरी तरह कट चुका है। स्थानीय लोग 10 से लेकर 30 किमी. तक पैदल चलकर गुप्तकाशी व ऊखीमठ पहुंच पा रहे हैं। राहत सामग्री भी इस क्षेत्र में सीधे नहीं पहुंच पा रही है। राहत सामग्री के लिए लोग कई किमी. पैदल चलकर गुप्तकाशी पहंुच रहे हैं और वहां से भी वे रास्ते की दुर्गमता व दूरी के कारण 6-8 किलो सामग्री ही ले जा पा रहे हैं। बाद के समय में हेलीकाप्टरों से इस क्षेत्र के गांवों में राहत सामग्री पहुंचाई गयी, जोकि एक-आध हफ्ते तक ही चल पायेगी। इस क्षेत्र में मेडिकल सुविधा पूरी तरह से नदारद है। जब तक संपर्क मार्ग नहीं जुड़ते हैं (जिनके जल्द जुड़ने की संभावना कम ही है।) इस क्षेत्र में विशेष संकटपूर्ण स्थिति बनी रहेगी।
आपदा जनित नुकसान व समस्याओं की समग्रता में तस्वीर- उपरोक्त तीनों क्षेत्रों को मिलाकर आपदा से जान-माल का व्यापक नुकसान हुआ है। यूं तो मरने वालों में बड़ी संख्या तीर्थयात्रियों की है। किन्तु मरने वालों में स्थानीय लोगों की संख्या भी अनुमानतः 500 के आस-पास है। उस दिन घटनास्थल पर मौजूद लोगों से बातचीत के दौरान कम से कम 10 हजार और ज्यादा से ज्यादा 25 हजार लोगों के मारे जाने के अनुमान सामने आये। निश्चित तौर पर सरकारी आंकड़ों के विपरीत वास्तविक मृतकों की संख्या इसी न्यूनतम महत्तम के बीच कहीं होगी। स्थानीय मृतकों में किशोरवय लड़कों की संख्या भी काफी है। स्कूलों में अवकाश होने के कारण बहुत से बच्चे भी केदारघाटी में अभिभावकों के साथ अथवा स्वतंत्र रूप से कमाई के लिए गये हुए थे।
केदारघाटी व रामबाड़ा पूरी तरह तबाह हो गये हैं। सोनप्रयाग भी आधा तबाह हो चुका है। बाकी इस पूरे क्षेत्र में सैकड़ों इमारतें, दर्जनों स्थानों पर मोटरमार्ग, बहुत से पुल नष्ट हो चुके हैं। नदियों पर बने कई पाॅवर प्रोजेक्ट भी अंशतः या पूर्णतः नष्ट हुए हैं।
तात्कालिक राहत संबंधी समस्याओं के इतर रोजगार, संपर्क मार्ग और अभिभावक विहीन हो चुके परिवारों के रूप में ज्यादा गंभीर व दीर्घकालिक समस्यायें खड़ी हो चुकी हैं।
राहत कार्यों की स्थिति- घटना के बाद गुजरे लगभग 10 दिनों तक पूरे ही क्षेत्र में राहत कार्यों की स्थिति ज्यादा बदतर रही है। उस समय शासन-प्रशासन का एकमात्र जोर फंसे हुए यात्रियों को निकालने पर रहा। यह प्राथमिकता भी बनती थी। लेकिन इस काम में भी लापरवाही व पर्याप्त संसाधन न लगाना जैसी समस्यायें रहीं। इस कारण घटना के दिन के बाद भी केदारघाटी व उसके आस-पास फंसे लोग विभिन्न कारणों से मरते रहे।
इतनी व्यापक आपदा के समय शासन-प्रशासन को अपने महत्तम संसाधन लगाकर तुरंत ही सभी महत्वपूर्ण मोर्चों पर बचाव व राहत कार्यों को शुरू करना चाहिए था, लेकिन सरकारी अमला पूर्णतः फंसे लोगों को निकालने व तीर्थयात्रियों की राहत संबंधी जरूरतों में ही फंसा रहा है। हालांकि इस काम में भी अगर स्थानीय लोग पूरी मुस्तैदी से न जुटे होते तो शासन-प्रशासन की लचरता व निकम्मापन सबसे भद्दे रूप में सामने आ गया होता।
आपदा के कारण अलग-थलग पड़ चुके क्षेत्रों की सुध सरकार ने कहीं जाकर जून माह के अंत में लेनी शुरू की। शुरूआत में राहत सामग्रियों का वितरण सड़की की पहुंच वाले क्षेत्रों तक ही सीमित रहा। कालीमठ व अन्य संपर्क से कट चुके क्षेत्रों में जुलाई के शुरू में एक-दो बार खाद्य सामग्री गिराई गयी। यह खाद्य व राहत सामग्री आवश्यक वस्तुओं की अनिश्चितता को देखते हुए इतनी अपर्यापत है कि ग्रामीण हेलीकाप्टरों से गिराई गयी सामग्री के बावजूद लंबी-लंबी दूरियां पैदल चलकर गुप्तकाशी राहत सामग्री लेने नियमित आ रहे हैं।
राहत सामग्री वितरण में विसंगतियां- सर्वेक्षण टीम के निरीक्षण अवधि तक भी राहत सामग्री के वितरण में बहुत सी विसंगतियां थीं। सड़क से दूर व कट चुके क्षेत्रों में पर्याप्त राहत सामग्री नहीं पहुंच रही है। गांवों के रसूखदार व राजनीतिक पार्टियों से जुड़े लोग सामग्री अपने कब्जे में रख ले रहे हैं। फिर अपने मनमाफिक उनका वितरण कर रहें हैं। ऐसे में उनके निकटवर्ती लोगों को तो कुछ मिल जा रहा है, किन्तु बहुत से लोग छूट जा रहे हैं। रोड हेड से दूर स्थित गांवों के लोगों को जब तक सामग्री वितरण की जानकारी मिल रही है, उनके पहुंचने तक सामग्री समाप्त हो जा रही है।
सामग्री वितरण में जातिवादी समीकरण भी अपनी भूमिका निभा रहे हैं। ल्वारा-लमगौंडी गांव रोड हेड पर है। इन गांवों में ब्राह्मणों की बहुलता है। जिस कारण इसके ऊपर स्थित पिथौड़ा व शिरवाणी गांव, जोकि दलितों के हैं, उनकी न तो कोई चर्चा है और न ही वहां तक पर्याप्त राहत सामग्री पहुंच रही है। यही स्थिति अन्य गांवों की है।
इसके अलावा विभिन्न धार्मिक व गैर सरकारी संस्थायें भी (जो सीधे स्वयं वितरण नहीं कर रही हैं) जो सामग्री स्थानीय प्रभुत्वशाली लोगों के जिम्मे छोड़ दे रही हैं, उसका भी यही हाल हो रहा है।
शासन-प्रशान की भूमिका- इस आपदा के समय उत्तराखण्ड शासन-प्रशासन का निकम्मापन खुलकर सामने आ चुका है। पहले 2-3 दिन तक तो इनके हाथ-पैर इतने फूल गये कि इन्हें कुछ सूझा ही नहीं। मौजूदा आपदा बहुत चैतरफा और व्यापक थी। इसने एक ही झटके में कई मोर्चों पर गंभीर समस्या खड़ी कर दी- फंसे लोगों को निकालना, निकाले गये लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाने, उनके रहने-खाने-पीने की व्यवस्था करना, संपर्क से कट चुके ग्रामीण क्षेत्रों तक राहत पहुंचना, संपर्क जोड़ने के कम से कम अस्थायी प्रबंध करना, मृतकों-लापता लोगों का उचित सूचीकरण, इत्यादि। लेकिन शासन-प्रशासन ने अभी तक भी इनमें से कुछ ही कामों में हाथ डाला है और उन्हें भी बेहद लचर ढंग से अंजाम दिया है।
बचाव कार्य में पर्याप्त संसाधन व लोग नहीं लगाये गये। बचाकर लाये जा रहे लोगों के रहने-खाने की व्यवस्था भी मुख्यतः स्थानीय लोग व संस्थायें कर रही थीं।
गुप्तकाशी आपदा केन्द्र पर एकत्रित सामग्री का बहुत समय तक वितरण ही नहीं हुआ। यही स्थिति हरिद्वार स्थित आपदा राहत केन्द्र की भी रही। शासन-प्रशासन के लोग केवल हवाई दौरों व केवल शक्ल दिखा भर देने तक ही सीमित रहे हैं। पीडि़त जनता की समस्याओं को इत्मीनान से जानने-समझने के लिए उन्होंने उनके बीच पर्याप्त अंतर्किया नहीं की।
राहत कार्य में लगे संगठनों-संस्थाओं के साथ शासन-प्रशासन का कोई तालमेल नहीं था। इस कारण पक्षपातविहीन वितरण की व्यवस्था की जानी चाहिए थी, वह नहीं हुई। घटना के तीन हफ्ते बाद तक भी मृतकों व नुकसान को सूचीबद्ध करने के लिए प्रशासन के लोग गांवों-कस्बों में नहीं पहुंचे हैं।
शासन-प्रशासन की हीला-हवाली देखते हुए कहा नहीं जा सकता कि संपर्क मार्गों को पूरी तरह जोड़ने में कितने महीने लग जायें।
सुझाव- 1) आपदाग्रस्त क्षेत्रों में राहत कार्र्याे को तेज करने के लिए केन्द्र व राज्य सरकारों पर जनदबाव बनाने के लिए काम करना होगा।2) आपदाग्रस्त क्षेत्र के लिए विशेष राहत पैकेजों के तहत बुनियादी जरूरतों के लिए होने वाले खर्चों में पूर्ण छूट घोषित करने की मांग की जाए।
3) केदारनाथ यात्रा पर निर्भर परिवारों व व्यक्तियों के लिए विशेष रोजगार भत्तों की मांग की जाए।
4) प्रत्येक किस्म के मुआवजों को दुगुना करने की मांग की जाए।
5) अभिभावकविहीन हो चुके परिवारों के बच्चों के लालन-पालन की जिम्मेदारी सरकार द्वारा लेने की मांग की जाए।
6) सड़क मागों को जल्द से जल्द जोड़े जाने की जरूरत बनती है।
7) संपूर्ण राहत कार्याें का प्रबंध जनता व प्रशासन की संयुक्त समितियों द्वारा किया जाए। जिसकी निगरानी के लिए गांवों में आम सभा आयोजित हों।
8) राहत कार्यों की सर्वाधिक जरूरत संपर्क मार्गों से कट चुके क्षेत्रों में बनती है।
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