मिश्र की विद्रोही जनता ने एक और शासन का अंत कर दिया है हालांकि पहले की तरह इस बार भी एक लम्बे समय तक सत्तारूढ़ रही सेना अपना खेल खेलने तथा पूंजीवादी व्यवस्था को बचाने में लगी हुयी है। इसी क्रम में सेना ने तखतापलट करते हुए मुस्लिम ब्रदरहुड के राष्ट्रपति मोरसी के शासन का अंत कर दिया है और प्रधान न्यायाधीश अदली मंसूर के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार का गठन किया है। इसी के साथ वर्तमान संविधान को निलंबित कर दिया गया है। सेना की ओर से कहा गया है कि संविधान में परिवर्तन करके जल्दी ही चुनाव कराये जायेंगे।
मोरसी की सरकार का यह पतन लगातार तीन दिनों के व्यापक विरोध प्रदर्शनों के बाद हुआ। अप्रैल से ही मोरसी के इस्तीफे की मांग को लेकर तमराद (विद्रोह) नाम का एक अभियान चलाया जा रहा था जिसमें भांति-भांति के सरकार विरोधी लोग शामिल थे। इसमें करीब 2.2 करोड़ लोगों के हस्ताक्षर इकटठे किये गये। अंत में 30 जून को पूरे देश में विरोध का आयोजन किया गया।
इसे बड़े विरोध प्रदर्शन के आयोजन को देखते हुए मोरसी समर्थकों ने 28 जून से सरकार समर्थक विरोध प्रदर्शन करने शुरु कर दिये। तब से सरकार के समर्थकों और विरोधियों में हिंसक झड़पें भी होने लगीं जिसमें अब तक 50 से ज्यादा लोग मारे गये हैं। 30 जून को मिश्र में सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन हुआ। स्पष्ट हो गया कि मोरसी की सरकार नहीं चलने वाली। इन्हीं स्थितियों में सेना ने 1 जुलाई को मोरसी सरकार को 48 घंटे का अल्टीमेटम दिया कि वह कोई रास्ता निकाले नहीं तो सेना कार्यवाही करेगी। मोरसी सरकार का रुख न झुकने वाला बना रहा और 3 जुलाई की रात को रक्षा मंत्री तथा सेना प्रमुख आदिल सीसी ने मोरसी सरकार की बर्खास्तगी की घोषणा कर दी।
यह गौर करने की बात है कि जनवरी 2011 तक मुबारक के शासन काल में सेना ही सत्ता में थी। तब इस सरकार के खिलाफ जो विद्रोह शुरु हुआ उसमें कट्टरपंथी मुस्लिम ब्रदरहुड किनारे ही खड़ा था। अब जब मोरसी की ब्रदरहुड सरकार के खिलाफ विद्रोह हुआ तो सेना ने किनारे से इसे समर्थन दिया और अंत में तखता पलट ही कर डाला।
लेकिन मिश्र में विद्रोह के जो हालात हैं उसमें सेना बहुत दिनों तक सत्ता अपने हाथ में नहीं रख सकती। यदि लोगों को मुस्लिम ब्रदरहुड का शासन स्वीकार नहीं था तो सेना का शासन और भी कम स्वीकार होगा क्योंकि इसी के खिलाफ तो जनवरी 2011 में विद्रोह हुआ था।
जनवरी 2011 के विद्रोह को पूंजीवादी प्रचारतंत्र ने क्रांति का नाम दिया था। कुछ मासूम नौजवानों ने भी सोचा था कि मुबारक के सत्ता छोड़ने से क्रांति हो गयी है। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ था और जल्दी ही यह स्पष्ट होने लगा।
जनवरी 2011 का विद्रोह नवयुवकों द्वारा शुरु किया गया था जिसमें जल्दी ही मजदूर वर्ग शामिल हो गया। लेकिन मिश्र के पूंजीपति वर्ग तथा अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने पूरी कोशिश की कि मिश्र में वास्तव में कुछ न बदले और जब करीब एक साल बाद चुनाव हुए तो मुस्लिम ब्रदरहुड सत्तारूढ़ हो गया जिसे सारे शासकों ने अपने लिए सबसे अच्छा विकल्प माना।
तब नौजवानों और मजदूरों ने पाया कि मिश्र के और उनके अपने जीवन में कुछ नहीं बदला है। सत्तातंत्र में ज्यादातर पुराने लोग मौजूद हैं। ऊपर से मुस्लिम कट्टरपंथी उसमें और आ गये। बेरोजगारी, मंहगाई, गरीबी की समस्याएं जस की तस बनी रहीं।
वैसे यह शानदार बात है कि मिश्र के नौजवान और मजदूर जनवरी 2011 से ही कभी शान्त नहीं बैठे। पहले उन्होंने मुबारक के पतन के बाद अंतरिम सैनिक शासन के खिलाफ संघर्ष जारी रखा और और फिर ब्रदरहुड के शासन के खिलाफ। इस रूप में ढाई साल पहले विद्रोह कभी खत्म नहीं हुआ बल्कि वह ज्वार-भाटे के रूप में जारी रहा।
पिछले कुछ महीनों में यह एक बार फिर बहुत उग्र हो गया जब नौजवानों और मजदूरों ने अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए मोरसी सरकार के खिलाफ करो या मरो का संघर्ष छेड़ दिया। इसका अंत 3 जुलाई के तखता पलट में हुआ।
स्पष्ट है कि मिश्र में ढाई साल से चल रहा विद्रोह जारी है। 3 जुलाई के घटनाक्रम से यह शान्त नहीं होगा बल्कि बढ़ेगा ही। मिश्र के शासक, स्थानीय अरब शासक तथा साम्राज्यवादी इससे भयभीत हैं। वे एक नये चुनाव के झुनझुने से विद्रोही जनता को बहलाने की कोशिश करेंगे। लेकिन पिछले ढाई सालों के अनुभव से समृद्ध हो चुकी विद्रोही जनता को अब यूं ही बहलाया-फुसलाया नहीं जा सकता। विद्रोही जनता आगे बढ़ेगी। सारी दुनिया की मजदूर-मेहनतकश जनता के लिए यह बेहद खुशी की बात है और वह मिश्र की विद्रोही जनता का अभिनंदन करती है।
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