Monday, April 29, 2013

आधुनिक ठगों का और बड़ा कारोबार

      पश्चिम बंगाल में  सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के सहयोग से शारदा समूह के मालिकों  ने जो लूट मचाई वह चमकते भारत में  पूंजीवादी लूट-पाट का आईना है। अनुमान है कि सुदीप्तो सेन एंड कंपनी ने छोटे निवेशकों की  बाइस हजार करोड़ रूपये की बचत पर हाथ साफ किया। अपनी पार्टी के नेताओं की लूट -पाट में संलिप्तता से उपजे आक्रोश को ठंडा  करने के लिए ममता बनर्जी सरकार ने छोटे निवेशकों को सरकारी कोश से पांच सौ करोड़ रूपये लौटाने की घोषणा की है।
      पिछले दो दशकों के उदारीकरण के दौर में इस तरह की चिट फंड कंपनियों की बाढ़ सी आ गई है जो नेटवर्किंग के माध्यम से काम करती है। इनके एक के बाद एक घोटालों के बावजूद सरकार वास्तव में इन पर लगाम लगाने को तैयार नहीं है।  पूंजीवादी लूट-पाट के वर्तमान दौर में वास्तव में यह छोटी सम्पत्ति वालों की छोटी सम्पत्ति हड़पने का तरीका है। यदि शेयर बाजार इसका अपेक्षाकृत परिष्कृत तरीका है तो यह सीधे-सीधे ठगी वाला।
      शारदा समूह जैसी सभी नेटवर्किंग निवेशक चिट फंड कंपनियों के काम करने का हमेशा एक ही तरीका होता है। वे बहुत जल्दी पैसा बढ़ाने का लालच देकर छोटे निवेशकों को आकर्षित करती हैं। साथ ही वे एजेन्टों के नेटवर्क पर अपने को आधारित करती हैं जिसमें  ऊपरी एजेन्टों का कमीशन इस पर निर्भर करता है कि उनके नीचे कितने एजेन्ट हैं। ऐसी किसी भी योजना में एजेन्टों का जाल एक न एक समय जाकर अवरूद्ध हो जाता है। और फिर सारा ताश का महल भहरा कर गिर जाता है लेकिन तब तक मालिक बड़ी राशि  अपनी जेब में डाल कर चम्पत हो चुके होते हैं।
      शारदा समूह ने भी अपने निवेशकों को केवल पन्द्रह महीनों में पैसा दुगुना  करने का लालच दिया। साथ में एजेन्ट कमीशन का लालच तो था ही। इस लालच के चक्कर में लाखों लोग आ गये। पूंजीपति वर्ग पूरे समाज में आम तौर पर लालच का जो विस्तार करने में लगा हुआ है उसके चलते छोटे निवेशकों का इसका शिकार हो जाना स्वाभाविक है। जब छोटी सम्पत्ति वालों और मजदूरों का जीवन इस कदर कठिन होता चला जा रहा हो, तब इस तरह के लालच की संभावना बहुत बढ़ जाती है। सीधे-सीधे मजदूर मेहनतकश इन ठगों का आसान सा शिकार बन जाते हैं।
      जैसा कि पहले कहा गया है पूंजीवाद के वर्तमान लूट-पाट के दौर में मजदूरों-मेहनतकशों की छोटी बचत पर हाथ साफ करने का यह ठगों  वाला तरीका  है। पूंजीपति वर्ग को इस तरीके से तब तक दिक्कत नहीं है, जब तक इसे कानूनों के छेदों से निकाला जा सके तथा जब तक मजदूर मेहनतकशों के भयंकर विस्फोट न होने लगें। सरकारों की ओर से सारी कार्रवाइयां दिखावे की होती हैं। कुछ साल बाद ही ये ठग अपना ठगी का धंधा नये रूप में नयी जगह कर रहें होंगे।
       मजदूर वर्ग और छोटी सम्पत्ति वाले मेहनतकशों का जीवन आज बहुत कठिन है। आज न्यूनतम स्तर पर जिन्दा रहना भी मुश्किल होता जा रहा है। तब भी मजदूरों - मेहनतकशों को पूंजीपति वर्ग द्वारा फैलाए जा रहे ठगी के इस जाल से खुद को दूर रखना होगा। उन्हें पूंजीवादी लालच का शिकार हो जाने के बदले अपनी हालत को बेहतर बनाने के लिए पूंजीपति वर्ग के खिलाफ एकताबद्ध संघर्ष का ज्यादा कठिन तरीका अपनाना होगा। केवल यही एक सही रास्ता है।

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