बांग्लादेश में इस समय राजनीतिक सरगर्मियों ने हिंसक रूप धारण कर रखा है। और नौजवान हैं जो 1971 के युद्ध अपराधियों को मौत की सजा की मांग करते हुए सड़कों पर उतरे हुए हैं तो दूसरी ओर जमात-ए-इस्लामी पार्टी और उसका छात्र संगठन इस्लामी छात्र शिविर है जो हिंसक वारदातों में लिप्त है। पिछले करीब महीने भर में पचास से ज्यादा लोग मारे गये हैं।
इस सब की शुरुआत तब हुयी जब कुछ मध्यवर्गीय नवयुवकों ने 5 फरवरी को ढाका के शाहबाद मोड़ पर प्रदर्शन का इंटरनेट के जरिये आह्वान किया। प्रदर्शन जमात-ए-इस्लामी के सेक्रेटरी जनरल अब्दुल कादरी मुल्ला को 1971 के युद्ध अपराधियों के लिए गठित अंतर्राष्टरीय
अपराध ट्रिब्यूनल द्वारा महज आजीवन कारावास की सजा सुनाने के विरोध में आयोजित किया गया। जमाते-ए-इस्लामी के नेता 1971 में उन रजाकारों (स्वयं सेवक) के दल में थे जिन्होंने बांग्लादेश की आजादी की मांग करने वाले लोगों का कत्लेआम किया था। इसमें बहुत बड़ी संख्या में महिलाओं के साथ बलात्कार भी शामिल था। इन्हें अपने कुकृत्य के लिए कभी सजा नहीं मिली। बाद में उन्होंने जमाते-ए-इस्लामी नामक पार्टी बना ली। पिछले चुनाव में उन्होंने संसदीय चुनावों में दो सीटें हासिल कीं। ये कट्टरपंथी हैं और विपक्षी बांग्लादेश नेशनल पार्टी के नेतृत्व वाले गठबंधन के हिस्से हैं।
मुल्ला ने आजीवन कारावास की सजा सुनाये जाने के बाद विजय का संकेत किया। यह 1971 के कत्लेआम और बलात्कार के शिकार लोगों का खुला अपमान था। साथ ही यह भी है कि पिछले सालों में बांग्लादेश में दक्षिणपंथी इस्लामी बेहद क्षुब्द हैं। इसीलिए इस फैसले के तुरंत बाद लोगों का अक्रोश फूट पड़ा। इंटरनेट के माध्यम से मध्यमवर्गीय नवयुवकों द्वारा विरोध प्रदर्शन के लिए आह्वान के बाद देखते ही देखते कुछ दिनों में लोग शाहबाद मोड़ पर लाखों की संख्या में जमा हो गये। इसे तहरीर चौक की तर्ज पर नयी पीढ़ी चौक का नाम दे दिया गया। देश के अन्य हिस्सों में भी लोग विरोध-प्रदर्शन करने लगे।
इन विरोध प्रदर्शनों से बौखलाकर जमाते-ए-इस्लामी और उसका छात्र संगठन इस्लामी छात्र शिविर सड़क पर उतर आये। उन्होंने विरोध प्रदर्शन करने वालों को निशाना बनाया। उनकी हिंसक वारदातों के चलते कुछ पुलिस वालों सहित अब तक पचास से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं।
जमाते-ए-इस्लामी के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के सैलाब से शासक पूंजीवादी पार्टी अवामी लीग को भी इसके समर्थन में आना पड़ा। यहां तक कि जमाते-ए-इस्लामी की साझेदार बांग्लोदश नेशनल पार्टी को भी अपना शुरुआती विरोध का रुख त्याग कर शाहबाद प्रदर्शन के प्रति सहानुभूति जतानी पड़ी हालांकि उसने यह आरोप लगाया कि अवामी लीग की सरकार इस मुकदमें का राजनीतिक इस्तेमाल कर रही है।
विरोध प्रदर्शनों के बढ़ते ज्वार के कारण 15 फरवरी को 1971 के कत्ले आम और बलात्कार के शिकार लोगों की याद में तीन मिनट के मौन को संसद तक में रखा गया। पूरा बांग्लादेश इस मौन में शामिल था।
विरोध प्रदर्शनों के दबाव में अंततः 28 अप्रैल को जमाते-ए-इस्लामी के एक अन्य नेता सईदी को मौत की सजा सुना दी गयी। इसके बाद जमाते-ए-इस्लामी के कारकून और भी हिंसक तरीके से सड़क पर उतर आये । लगातार दो दिन तक उनका तांडव चलता रहा।
बांग्लादेश में 1971 से संबधित यह संघर्ष इस समय बहुत तीखा हो गया है। इसमें एक ओर है 1971 के कत्लेआम और बलात्कार के शिकार लोग तथा धर्मनिरपेक्षता की हामी नयी पीढ़ी तो दूसरी ओर हैं 1971 के मुजरिम और उनको बचाने वाले या उनके साथ सुलह समझौता और साठ-गांठ करने वाले। इसमें अवामी लीग और बांग्लादेश नेशनल पार्टी दोनों शामिल हैं।
एक पुराने ऐतिहासिक न्याय की मांग के आंदोलन ने बांग्लादेश को, खासकर उसके नवयुवकों को उन देशों की श्रेणी में ला खड़ा किया है जहां आज भांति-भांति के बड़े पैमाने के विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं-कहीं ‘असली जनतंत्र’ के लिए तो कहीं ‘सामाजिक न्याय’ के लिए।
यह आंदोलन उत्साहवर्धक है क्योंकि इसे आगे बढ़कर आज के भांति-भांति के अन्यायों, अत्याचारों को निशाना बनाना चाहिए। बांग्लादेश के मजदूर वर्ग की इसमें विशेष भूमिका बनती है।
No comments:
Post a Comment