इस बार के बजट को पूंजीवादी प्रचारकों ने कुछ इस तरह पेश किया मानो वित्त मंत्री ने चुनाव जीतने के लिए देश की मजदूर मेहनतकश जनता पर सौगतों की बौछार कर दी हो। कम से कम कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ताओं ने तो इसे इसी रूप में प्रचारित किया।
सच्चाई यह है कि इस बार के बजट में सब्सिडी में कटौति के जरिये गरीब जनता के पेट पर लात मारी गयी है। यह कटौति एक लाख करोड़ रुपये से ऊपर है। महत्वपूर्ण बात यह है कि पिछले सालों की तरह इस साल भी करीब साढ़े चार लाख करोड़ रुपये पूंजीपतियों पर लुटाये गये हैं - प्रोत्साहन के नाम पर। बजट घाटे को नियंत्रित करने के लिए गरीब जनता की सब्सिडी में कटौति, जबकि ठीक उसी समय उससे चार गुना ज्यादा पूंजीपतियों पर लुटाया जाना! यह है जनता के लिए लोक लुभावन बजट।
वित्त मंत्री ने देश के अति अमीरों पर कर में अधिभार लगाया है-10 प्रतिशत का। ये अति अमीर वे हैं जिनकी सालाना आय एक करोड़ रुपये से ज्यादा है। वित्त मंत्री के अनुसार देश में ऐसे अमीरों की संख्या महज 42,800 है। किसी ने ठीक ही टिप्पणी की है कि अकेले दिल्ली में ही इससे ज्यादा अति अमीर होंगे। लेकिन जिस देश में सबसे ज्यादा कर चुकाने वाले व्यक्ति अंबानी जैसे उद्योगपति नहीं बल्कि मुम्बईया अभिनेता हों उसके वित्त मंत्री की अमीरों के प्रति दृष्टि को बखूबी समझा जा सकता है।
पिछले साल सालाना वृद्धि दर पांच प्रतिशत रही। अब इस साल वित्त मंत्री 6.4 प्रतिशत का लक्ष्य रख रहे हैं। लेकिन इसी के साथ उन्होंने योजनागत व्यय में तीखी कटौति कर दी। वृद्धि दर बढ़ाने के इस अमरीकी नुस्खे से वही परिणाम निकलने वाला है जो यूरोप-अमेरिका में निकल रहा है यानी आर्थिक संकट का गहराना।
इसी तरह वित्त मंत्री ने वित्तीय घाटे को पूरा करने के लिए सार्वजनिक उद्यमों में पचास हजार करोड़ रुपये के विनिवेश का लक्ष्य रखा है। एक ओर पूंजीपतियों पर साढ़े चार लाख करोड़ लुटाने और फिर इससे होने वाले घाटे की पूर्ति के नाम पर सरकारी उद्यमों को उन्हीं पूंजीपतियों को कौडि़यों के दाम बेच दो। अच्छा धन्धा बना रखा है पूंजीपति वर्ग के चाकरों ने।
इस सब पर भी पूंजीपति वर्ग बहुत खुश नहीं है। बजट के दिन शेयर बाजार करीब तीन सौ अंक (सेनसेक्स) गिर गया। मूल वजह यह थी कि शेयर बाजार के सट्टेबाजों को लगा था कि मारीशस के फर्जी रास्ते से होने वाले निवेश पर कुछ अतिरिक्त कर लगने वाला है। बाद में वित्त मंत्रालय ने स्पष्टीकरण दिया कि सरकार का ऐसा कोई इरादा नहीं है । सरकार का चाहे जो इरादा रहा हो, इस प्रकरण ने एक बार फिर सरकार और पूंजीपतियों के वास्तविक रिश्ते को उजागार किया।
शेयर बाजार का तो हाल यह है कि पिछले साल अर्थव्यवस्था रसातल में चलती गयी पर शेयर बाजार उछलता गया। पिछले साल वृद्धि दर पिछले दशक भर में सबसे कम वृद्धि दर रही। पर शेयर बाजार उछलकर बीस हजार (सेनसेक्स) से ऊपर चला गया। यह हुआ शेयर बाजार में करीब एक अरब डालर के पूंजी निवेश के कारण। दुनिया के सभी शेयर बाजारों कर तरह भारत के शेयर बाजार ने भी वास्तविक अर्थव्यवस्था की हालत को प्रतिबिंबित करना बंद कर दिया है। वास्तविक अर्थव्यवस्था (उत्पादन और वितरण) अधिकाधिक संकटग्रस्त हो रही है जबकि शेयर बाजार छलांग मार रहा है।
लेकिन इस सबसे पूंजीपति वर्ग को कोई परेशानी नहीं है क्योंकि वह इस संकट के समय में भी मजदूर मेहनतकश जनता को और ज्यादा चूस कर अपना मुनाफा बढ़ाने में कामयाब है। पिछले अन्य बजट की तरह यह बजट भी इसी श्रृंखला में एक और कड़ी है।
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