Tuesday, March 19, 2013

श्रीलंकाई तमिलों की लाशों को नोचते गिद्ध

श्रीलंका के तमिलों की त्रासदी पर साम्राज्यवादियों की कुटिल चालों में अब भारत के पूंजीवादी शासक भी शामिल हो गये हैं। जब श्रीलंका की सिंहली सरकार 2008-09 में तमिलों का नरसंहार कर रही थीं तब ये सब उसका इस कुकृत्य में समर्थन कर रहे थे। अब वे अपने संकीर्ण समीकरणों के तहत नया खेल खेल रहे हैं। 
श्रीलंका में तमिल अपनी राष्ट्रीय आकांक्षाओं के लिए लम्बे समय से संघर्ष करते रहे हैं। उनका बाद में प्रमुख संगठन लिट्टे था। लिट्टे के प्रति साम्राज्यवादियों और भारतीय शासकों ने हमेशा अपने समीकरणों के तहत ही व्यवहार किया। भारतीय शासकों ने कभी उसको प्रोत्साहन दिया तो कभी उसका दमन किया। एक ओर वे श्रीलंका सरकार को परेशान कर उसे दबोचना चाहते थे तो दूसरी ओर बृहत्तर तमिल देश की मांग से भयभीत भी थे। 
2008 में श्रीलंका सरकार ने लिट्टे के खिलाफ एक व्यापक युद्ध छेड़ दिया। उद्देश्य लिट्टे का पूर्ण सफाया करना था। इसके लिए तमिलों के नरसंहार में सिंहली सरकार ने कोई गुरेज नहीं किया। अंततः सरकार कामयाब हो गई और मई 2009 में प्रभाकरण की मौत के साथ लिट्टे का खत्मा हो गया। तमिलों की राष्ट्रीय आकांक्षायें संगीनों से कुचल दी गयीं। 
यह तभी स्पष्ट था कि सिंहली सरकार की सेना युद्ध में बड़े नरसंहार को अंजाम दे रही है। पर तब साम्राज्यवादियों सहित भारतीय शासकों ने भी चुप्पी साध ली। तब डी एम के ने भी जुबानी विरोध के अलावा कुछ नहीं किया। 
अब जब सिंहली सरकार सुरक्षित है तब साम्राज्यवादी और भारतीय शासक अपनी-अपनी खींच-तान में लग गये हैं। लिट्टे के खिलाफ युद्ध में सिंहली सरकार का भरपूर समर्थन करके चीन ने श्रीलंका में अपनी स्थिति काफी मजबूत की है। इससे पश्चिम साम्राज्यवादियों को परेशानी है तो भारतीय शासकों को भी। इसीलिए वे अब 2008-09 के युद्ध में मानवाधिकार के उल्लंघन का मसला उठाकर श्रीलंका सरकार से सौदेबाजी करना चाहते हैं। तमिलों के नरसंहार का इस तरह घृणित सौदेबाजी के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। 
साम्राज्यवादियों और भारतीय शासकों के इस घृणित खेल में भारत की अंदरूनी राजनीति के समीकरण भी घुल-मिल गये हैं। तमिलनाडु की राजनीति से लेकर केन्द्र की राजनीति में शामिल सभी खिलाड़ी अपनी-अपनी गोट बैठाने में जुटे हुए हैं। इनमें से किसी का भी वास्तव में श्रीलंका के तमिलों से कुछ भी लेना-देना नहीं है। 
आज दुनिया भर की पूंजीवादी राजनीति इसी तरह लाशों पर चल रही है। इराक-अफगानिस्तान, लीबिया-सीरिया से लेकर श्रीलंका तक यह चल रही है। साथ ही यक कश्मीर से लेकर उत्तर-पूर्व भारत तक चल रही है। 
इस घृणित पूंजीवादी राजनीति की घृणित चालों का पर्दाफाश करना होगा। 

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