आज से दस साल पहले 20 मार्च, 2003 को अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने झूठे बहाने बनाकर इराक पर कब्जा करने के लिए हमला बोला था। इस हमले के लिए उन्होंने झूठ-फरेब की सारी हदें पार कर दी थीं।
इराक पर अमेरिकी साम्राज्यवादियों के इस हमले का तब जबर्दस्त विरोध हुआ था। 15 फरवरी, 2003 का दिन तो ऐतिहासिक ही बन गया जब सारी दुनिया में 1 करोड़ से ज्यादा लोगों ने विरोध प्रदर्शन में भाग लिया। लंदन और रोम में बीसों लाख लोग सड़कों पर थे।
इस अभूतपूर्व विरोध के कारण ही फ्रांसीसी साम्राज्यवादियों और अन्य की इस हमले में अमेरीकियों का साथ देने की हिम्मत नहीं पड़ी। इसी कारण अमेरिकी साम्राज्यवादी लाख कोशिश कर भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में हमले का प्रस्ताव पास नहीं करा पाये। तब उन्होंने पूरी नंगई और हेकड़ी के साथ एकतरफा ही इराक पर हमला बोल दिया। जार्ज बुश के पिट्ठू टोनी ब्लेयर के नेतृत्व में ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने अमेरिकी साम्राज्यवादियों का साथ दिया।
अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने इराक पर कब्जा तो कर लिया पर इस प्रक्रिया में उन्होंने उसे तबाह कर दिया। तब से अब तक दस लाख से ज्यादा इराकी मारे गये हैं और चालीस लाख से ज्यादा शरणार्थी हो गये हैं। मौतों का सिलसिला अभी भी जारी है।
इस युद्ध में अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने तीन हजार अरब डालर से ज्यादा खर्च किये। उन्होंने अपने चार हजार से ज्यादा नागरिकों को मौत के मुंह में ढकेला है। बीसों हजार अन्य अपंग हो गये।
इराक पर आज भी अप्रत्यक्ष तौर पर अमेरिकी साम्राज्यवादियों का कब्जा है। इराक के तेल पर उनका कब्जा है। साथ ही इराक के पुनर्निर्माण के नाम पर वे वहां भयंकर लूट मचाये हुए हैं। बाकी साम्राज्यवादी भी इस लूट में भागीदारी के लिए हाथ-पाँव मार रहे हैं।
2001 में अफगानिस्तान पर हमले के समय ही अमेरिकी साम्राज्यवादियों की 7 देशों पर कब्जा करने की योजना थी। लेकिन इराक पर कब्जे के बाद वहां के प्रतिरोध युद्ध ने अमेरिकी साम्राज्यवादियों की हेकड़ी की सीमा बता दी। वे तुरन्त अन्य हमले नहीं कर सके। केवल आठ साल बाद ही अरब विद्रोह का फायदा उठाकर लीबिया पर हमला कर सके। अब वे सीरिया में भी यही प्रयास कर रहे हैं।
इराक पर अमेरिकी साम्राज्यवादियों द्वारा हमले तथा कब्जे के खिलाफ इराकी जनता ने तो जंग लड़ी ही साथ ही दुनिया भर की जनता ने भी इसका तीखा प्रतिरोध किया। स्वयं अमेरिकी जनता ने भी अपनी आवाज बुलंद की। इस सबने साम्राज्यवाद विरोध की तेज से तेजतर लहरों को पैदा किया। आज इसमें संदेह नहीं कि साम्राज्यवादी अपने मंसूबों में सारी दुनिया की जनता के प्रतिरोध का सामना कर रहे हैं। बीस साल पहले की उनकी हेकड़ीर आज ढीली पड़ चुकी है।
पर साम्राज्यवाद हार मानने वाला नहीं। आज विश्व आर्थिक संकट गहराने के साथ वह और खूंखार हो चला है वह पगला रहा है। ऐसे में इसके खिलाफ संघर्ष और ज्यादा व्यापक तथा तेज करने की जरूरत है।
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