Wednesday, February 27, 2013

इटली चुनावों में किफायत कदमों के हिमायतियों का नकार

     पिछले साल ग्रीस में हुए चुनावों की तरह अभी इटली में हुए चुनावों में आर्थिक संकट से निपटने के लिए किफायत कदमों की हिमायती पार्टियों को मतदाताओं के गुस्से का शिकार होना पड़ा। दोनों  प्रमुख पार्टी गठबंधनों को झटका देते  हुए एक नयी पार्टी 25 प्रतिशत मत पाने में कामयाब हो गई। पांच सितारा आंदोलन नामक इस पार्टी का गठन एक हास्य अभिनेता ने किया है और इसका एकमात्र चुनावी मुद्दा किफायत के कदमों तथा राजनीतिक पार्टियों का विरोध था।

            पिछले पांच सालों के आर्थिक  संकट के दौरान शासक वर्ग के हमलों से त्रस्त लोगों को राजनीतिक पार्टियों को निशाना बनाया जाना अच्छा लगा। ये पूंजीवादी  पार्टियां ही साम्राज्यवादी पूंजीपतियों के मुनाफे की खातिर किफायत कदम लागू कर रही हैं जिनका मतलब है मजदूर वर्ग की हालत को और पतली करना। इसके लिए इटली की सरकार पर यूरोपीय संघयूरो क्षेत्रयूरोपीय केन्द्रीय बैंक तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का काफी दबाव रहा है। स्थिति यहां तक पहुंची थी कि 2011 के अंत में ग्रीस की तरह इटली में भी चुनी हुई सरकार को हटाकर मारियो मोन्टी नामक एक बैंकर के नेतृत्व में एक तथाकथित टेक्नोक्रेटिक सरकार बनायी गई थी। इरादा यह था कि यह ‘टेक्नोक्रेटिक’ सरकार बिना जनदबाव को अनुभव किये साम्राज्यवादी पूंजीपतियों द्वारा इच्छित किफायत कदम लागू करेगी। और उसने किया भी। मारियो मोन्टी इस हद तक आगे बढ़ गये कि उन्होंने इन चुनावों में भाग्य आजमाने की कोशिश की। अब उनके होश ठिकोने  गये होंगे।
 साम्राज्यवादी पूंजीपतियों द्वारा लादे गये किफायती कदमों के प्रति मजदूर वर्ग का गुस्सा इतना ज्यादा है कि  बर्सुलोनी जैसे बदनाम व्यक्ति ने भी इन चुनावों में किफायत कदमों का विरोध किया हालांकि उसे इसका कोई फायदा नहीं मिला। 
       अन्य देशों की तरह इटली का मजदूर वर्ग तथा युवा सड़कों पर उतर कर साम्राज्यवादियों के खिलाफ जबर्दस्त विरोध प्रदर्शन करता रहा है। इसी ने साम्राज्यवादियों को मजबूर किया कि वे अपने जनतंत्र का उल्लंघन करें तथा मारियो मोन्टी जैसे व्यक्ति को गद्दी पर बैठायें। अब यह विरोध प्रदर्शन चुनावों के नतीजे में भी तीखे तरीके से अभिव्यक्त हुआ है। 
        लेकिन ग्रीस की तरह इटली में भी मजदूर वर्ग के इस विरोध प्रदर्शन का रुख अभी क्रांतिकारी विकल्प की ओर नहीं है। अभी ज्यादातर गुस्से के  इजहार तथा पूंजीवादी राजनीतिक पार्टियों और उनकी चुनावी व्यवस्था के प्रति नकार में अभिव्यक्त हो रहा है। सचेत मजदूरों तथा मजदूर क्रांतिकारियों का कार्यभार यही बनता है कि वे इस विरोध को समूची पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ मोड़ें तथा इसे क्रांतिकारी संगठन में गोलबंद करें। 

No comments:

Post a Comment