भारत के महान जनतंत्र की रक्षा के लिए भारत के पूंजीपति वर्ग ने एक और शख्स को फांसी पर लटका दिया। जनतंत्र की रक्षा का यह कार्य इतना पवित्र था कि इसे अत्यंत गोपनीयता से किया गया तथा फांसी लटकाये जाने वाले व्यक्ति की पत्नी और पुत्र को भी सूचित नहीं किया गया। जनतंत्र के रक्षकों ने बड़ी बुद्धिमानी से काम लिया क्योंकि फांसी के समाचार के बाद दो दिनों से कश्मीर पूरी तरह बंद है और सारी दुनिया से उसका संबंध जनतंत्र के रक्षकों ने काट दिया है। आखिर तनतंत्र की रक्षा के लिए इस तरह की तानाशाहियां तो करनी ही पड़ती हैं।
अफजल गुरु के मामले में इस महान जनतंत्र के सर्वोच्च न्यायालय ने भी स्वीकार किया था कि संसद पर हमले में उसकी संलिप्पता असंदिग्ध रूप से प्रमाणित नहीं होती। लेकिन तब भी जनसमूह की भावनाओं का खयाल रखने के लिए उसे फांसी दी जानी चाहिए। यह हुआ कोई न्याय। न्याय की इसी परिभाषा के कारण आज हजारों लोगों को हत्यारा प्रधानमंत्री की कुर्सी का दावेदार बन रहा है और एक दूसरा शख्स गोपनीय तरीके से फांसी पर लटका दिया गया।
अफजल गुरु एक समर्पण किया हुआ आतंकवादी था। आत्मसमर्पण के बाद वह पुलिस और सुरक्षा बलों का आसान चारा था। पुलिस उसका अक्सर इस्तेमाल करती रहती थी। अंत में उसे महान भारतीय जनतंत्र की बलिवेदी पर चढ़ा दिया गया। इस तरह की बलि के बिना भारतीय जनतंत्र कैसे जिन्दा रह सकता है ?
13 दिसंबर 2001 को संसद पर हमले के तुरंत बाद से ही उस पर लगातार सवाल उठते रहे हैं। ये सवाल हमेशा उस दिशा में ले जाते थे जिसका निष्कर्ष यह होता था कि यह हमला किसी आतंकवादी का नहीं बल्कि भारतीय खुफिया एजेंसियों का ही काम था। उन्होंने ही आतंकवादियों के किसी समूह में दाखिल होकर इसे अंजाम दिया था। अगर इस घटना में अफजल गुरु किसी तरह शामिल था तो खुफिया एजेंसियों और सुरक्षा बलों के जरिये ही। समूची कार्यवाही का उद्देश्य अमेरिका के ट्विन टावर हमले के बाद के वातावरण का निर्माण करना था जिससे पाकिस्तान सरकार को दबाव में लिया जा सके। तत्कालिक राजग सरकार ने हजारों करोड़ रुपये, सैकड़ों सैनिकों तथा सैकड़ों नागरिकों की कीमत पर यह प्रयास किया भी जब उसने सीमा पर सेना की तैनाती कर दी और युद्ध का माहौल बनाया। पर अमेरिकी साम्राज्यवादियों के तब के पाकिस्तान के मामले में अपने समीकरण थे और उसकी डांट खाकर वाजपेयी सरकार को पीछे हटना पड़ा।
अब इतना कुछ हो जाने के बाद कम से कम एक जान की कुर्बानी तो बनती है। महत्वपूण बात यह है कि अफजल गुरु की जान लेने का काम राजग सरकार ने नहीं बल्कि संप्रग सरकार ने किया। सत्ता के लिए जूतम-पैजार करने वालों में ऐसे मामलों में इस कदर एकता है। इस एकता में मजदूर वर्ग के गद्दार माकपा वाले भी हैं। वे भी अपनी देश भक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं।
सारी दुनिया में मौत का ताण्डव करने वाले अमेरिकी साम्राज्यवादियों से लेकर भारत के छुटभैये पूंजीपति तक आज अपने जनतंत्र का यह बनैला चेहरा पेश कर रहे हैं। और यह इनके इस पतित पूंजीवादी जनतंत्र के प्रति मजदूर-मेहनतकश जनता में बेइंतहा घृणा पैदा कर रहा है।
afjal guru ko bhartiya shashko ne khule aam fansi par latka diya.adalaton ki karyawahi ka pura natak bhi pesh kiya gaya.is prakar ek hatya ko nyay ke naam par khule aam sweekar kiya gaya.iske alawa duniya ko bina bataye bhartiya senA aksar hi kashmiriyon ki hatyayen karti rehti hai bina kisi adalati karyawahi ka natak kiye hue.hum badhai dete hain hatyari bharat sarkar ko ki usne afjal guru ke mamle me nyay ka jhootha natak dikhane ki jehmat to uthai.
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