देश की सबसे पुरानी पूंजीवादी पार्टी ने अपनी शानदार परम्परा को कायम रखते हुए नेहरू खानदान की चौथी पीढ़ी की ताजपोशी के लिए एक और डग भर लिया है। अभी जयपुर में आयोजित चिंतन शिविर से जो महत्वपूर्ण नतीजा निकला वह यही कि राहुल को पार्टी का उपाध्यक्ष बना दिया जाये। पूंजीवादी हलकों में जितनी जोर से चर्चा नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की हो रही है, उतनी ही जोर से राहुल गांधी की भी। एक साथ इन दोनों महाशयों की चर्चा आज के भारतीय पूंजीपति वर्ग की स्थिति का ही प्रतिबिम्ब है।
वैसे राहुल बाबा आज भारतीय पूंजीवादी राजनीति की उस प्रवृत्ति की मुखर अभिव्यक्ति मात्र है जो राजनीतिक वंशावलियों में प्रकट हो रही है। संसद और विधान सभाओं में भारी मात्रा में ऐसे लोग विराजमान हैं जो पुत्र-पुत्री, भतीजा-भतीजी या अन्य नजदीकी रिश्तेदार हैं। कुछ क्षेत्रीय पार्टियां तो अपने संस्थापकों की परिवारिक पार्टियां ही हैं।
वैसे राहुल बाबा आज भारतीय पूंजीवादी राजनीति की उस प्रवृत्ति की मुखर अभिव्यक्ति मात्र है जो राजनीतिक वंशावलियों में प्रकट हो रही है। संसद और विधान सभाओं में भारी मात्रा में ऐसे लोग विराजमान हैं जो पुत्र-पुत्री, भतीजा-भतीजी या अन्य नजदीकी रिश्तेदार हैं। कुछ क्षेत्रीय पार्टियां तो अपने संस्थापकों की परिवारिक पार्टियां ही हैं।
यदि एक ओर चुनावी राजनीति का गणित इस प्रवृत्ति के पीछे काम करता है तो साथ ही यह भी है कि भारत का पूंजीपति वर्ग अपने शासन की स्थिरता के लिए इसे बढ़ावा देता है। जब उसका पूंजीवादी भारत इस कदर उथल-पुथल का शिकार हो तो कोई भी ऐसी चीज जो उसके शासन को स्थिरता प्रदान करती हो, उसका समर्थन हासिल करेगी। यदि पूंजीवादी राजनेताओं के वारिसों को राजनीति में आगे बढ़ाने से ऐसा होता हो तो अच्छा ही है। क्या यह सच नहीं है कि आज भी भारत का पूंजीपति वर्ग अपने सारे कारपोरेटीकरण के बावजूद पूंजीवादी घरानों के रूप में ही काम करता है? टाटा, बिड़ला, अंबानी इत्यादि घरानों के नाम बच्चे-बच्चे को पता हैं।
ठीक इसी स्थायित्व की खातिर भारत का पूंजीपति वर्ग हिन्दू फासीवाद को अपनाने के लिए तैयार है। नरेन्द्र मोदी की ताजपोशी की मुहीम इसी दिशा में है।
एक ओर राहुल बाबा और दूसरी ओर नरेन्द्र मोदी। एक ओर खानदानी शासक और दूसरी ओर हिन्दू फासीवाद। भारतीय पूंजीवादी जनतंत्र की आज यही हकीकत है। लेकिन इस हकीकत पर भारतीय पूंजीपति वर्ग शर्मिन्दा नहीं है। ठीक विपरीत वह इसे तत्परता से गले लगा रहा है। इस तरह राहुल बाबा के चारणों की जमात सठियाये कांग्रेसियों से लेकर सूट-बूट वाले पूंजीवादी घरानों तक फैली हुई है।
लानत है इन सब पर !
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