Monday, December 24, 2012

यौन हिंसा के लिए पूंजीवादी व्यवस्था को कठघरे में खड़ा करो !

        पिछले सप्ताह भर से , दिल्ली में बलात्कार की घटना के बाद, पूंजीपति वर्ग के विभिन्न घटकों की ओर से केवल एक ही चीख-पुकार भरी आवाज सुनायी पड़ रही है: बलात्कार की घटनाओं को रोकने के लिए सख्त से सख्त कानून बनाओ और सख्त से सख्त सजा दो। केवल त्वरित और सख्त न्याय ही बलात्कार की घटनाओं पर रोक लगा सकता है। केवल वही स्त्रियों को यौन हिंसा से रोक सकता है। 
आज का पूंजीपति वर्ग पतित होकर वहां पहुंच गया है जहां वह हर सामाजिक समस्या का समाधान कानून-व्यवस्था में देखता है। आतंकवाद ? कानून-व्यवस्था सख्त करो ! भ्रष्टाचार ? कानून व्यवस्था सख्त करो ! बलात्कार ? कानून व्यवस्था सख्त करो ! पतित पूंजीवादी व्यवस्था का आज यही रामबाण है; यही हर्फे-आखिर है। खासकर भारत में हर मामले में ‘फांसी-फांसी' की आवाज सुनायी पड़ती है। मानो  इस देश में चारो ओर जल्लाद ही घूम रहे हों।

रही हमारे समाज में औरतों की वास्तविक स्थिति की बात, बलात्कार जिसका एक परिणाम है, तो पूंजीपति वर्ग अपने गिरेबान में झांकने  की हिम्मत नहीं कर सकता।  शासक वर्गो में तो स्वयं अपनी ही औरतों को शासन में बराबरी की हिस्सेदारी देने पर जूतम-पैजार मची हुयी है (संसद-विधान सभाओं में आरक्षण का बिल)। औरतों की बराबरी के कानूनी-संवैधानिक प्रावधान केवल किताबों की शोभा बढ़ा रहे हैं। औरतों को जो भी मुक्ति मिल रही है वह पूंजी की इस गति के द्वारा कि ‘एक की कमाई से पूरा नहीं पड़ता’ या फिर स्वयं उनके अपने व्यक्तिगत और सामूहिक संघर्ष के द्वारा।
इस बीच पूंजी द्वारा श्रम शक्ति के बाजार में खींची जा रही औरतें पुरूषों की तरह शोषित होने के साथ-साथ यौन उत्पीड़न की भी शिकार हो रही हैं। पूंजीपति और उनके लगुए-भगुए उनकी मजबूरी का इस्तेमाल कर उन्हें अपना शिकार बना रहे हैं। श्रम-शक्ति के बाजार में निकली औरतें परिवार वालों की खातिर यह सब बर्दाश्त कर रही हैं। 
रही-सही कसर आज की ‘इस्तेमाल करो और फेंको’ की उपभोक्तावादी संस्कृति पूरा कर दे रही है। इसमें प्रचार माध्यमों की पूरी ताकत से पुरूषों को उकसाया जा रहा है कि औरतों के शरीर को दबोचो, वह तुम्हारे उपभोग की वस्तु है। औरत या लड़की महज शरीर मात्र है और वह तुम्हारे उपभोग के लिए है। और जब इस घृणित कारोबार का वीभत्स परिणाम सामने आता है तो वही कारोबारी ‘फांसी-फांसी’ को कोलाहल शुरू कर देते हैं। 
बलात्कार और यौन हिंसा आज के पतित पूंजीवाद का हिस्सा है। यह कोई अपवाद या अतिरेक में बहाव नहीं है। इसीलिए इससे मुक्ति पूंजीवाद के खात्में की मांग करती है। मजदूर वर्ग को, खासकर महिला मजदूरों को यौन हिंसा के मामले में भी अपनी क्रांतिकारी पहलकदमी प्रदर्शित करनी होगी और यौन हिंसा के लिए समूचे पूंजीवाद को कठघरे में  खड़ा करना होगा।

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