Saturday, December 1, 2012

उदारीकरण के लुटेरों की एक और चाल

             मनमोहन सिंह, चिदंबरम और आहलूवालिया की तिकड़ी नये साल से उदारीकरण की अपनी एक और योजना लागू करने जा रही है। यह है जनता को राहत कार्यक्रमों में सीधे नकद भुगतान की।
            इस योजना के तहत अब चाहे राशन का मामला हो या खाद-बिजली का, राहत की राशि नकद के तौर पर सीधे लोगों के बैंक खातों में डाल दी जायेगी। इसके बाद लोग इसका जो चाहे इस्तेमाल करें। 
          सरकार और उसके  समर्थकों के अनुसार इससे इन राहत योजनाओं में होने वाला बड़े पैमाने का भ्रष्टाचार रुकेगा तथा लोगों की हालत बेहतर होगी। इस सबके लिए आधार पहचान पत्र तथा इससे खुलने वाले बैंक खातों का इस्तेमाल किया जायेगा।
             इस योजना का वास्तविक मतलब क्या है, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि नकद भुगतान की योजना विश्व बैंक की योजना है और यह उदारीकरण की नीतियों का हिस्सा है। यह देखते हुए कि विश्व बैंक और उदारीकरण की नीतियां दोनों ही गरीब लोगों के विरोधी हैं, यह योजना किसी भी तरह गरीब जनता के फायदे की नहीं हो सकती। इसे जिन देशों में लागू किया गया है, वहां बुरे ही बुरे ही परिणाम हुए हैं।

            वास्तव में यह योजन भी जनता को राहत कार्यक्रमों में कटौती का ही हिस्सा है। जो मनमोहन सिंह सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद  सरकारी गोदामों में सड़ता हुआ अनाज भूखे मरते गरीब लोगों में बटवाने  से इंकार करते हैं, वे सपने में भी जनता के भले का कोई काम नहीं कर सकते।
            इस नकद भुगतान योजना का असली मकसद इससे लाभान्वित होने वाले लोगों की संख्या में कटौती करना, जनता की बुनियादी जरूरतों की पूर्ति के बदले उसे अन्य चीजों के उपभोग की ओर धकेलना, उसे नकद के वित्तीय जाल में लपेटना (तथाकथित समोवेशन) जिससे उसको वित्तीय उधार-बाढ़ी में फंसाया जा सके, इत्यादि हैं। इससे स्वाभाविक तौर पर देहातों के सूदखोरों, सूक्ष्म वित्तीय कंपनियों, शराब व्यापारियों से लेकर अन्य लुटेरों की चांदी हो जायेगी। घर में अनाज और खेत में खाद पहुंचे न पहुंचे इनके यहां नकद जरूर पहुंच जायेगा।
          मजदूर वर्ग के लिए यह बात दिन के उलाले की तरह स्पष्ट है कि जो सरकार पूंजीपतियों पर अपने बजट में पांच लाख करोड़ रुपया सालाना लुटाने के बाद भूखे मरते लोगों को अनाज मुहैय्या कराने के लिए कुछ हजार करोड़ रुपये नहीं, खर्च कर सकती, उसका हर एक कदम मजदूर वर्ग और गरीब जनता के लिए नुकसानदेह होगा। यह एक या दूसरे रूप में पूंजीपति वर्ग के फायदे का होगा। इसीलिए मजदूर वर्ग उसका दृढ़ता से विरोध करता है।   

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