Thursday, November 22, 2012

पूंजीवादी शासकों द्वारा एक कानूनी हत्या और उस पर जश्न

        अजमल कसाब फांसी चढ़ा दिया गया। भारत के शासकों द्वारा एक और हत्या सम्पन्न की गई।                              
       पूंजीपति वर्ग के लूट-हत्या के निजाम में एक प्यादे की जान लेकर भारत के शासकों ने प्रचार किया कि न्याय हो गया है। कसाब को उसके किये की सजा मिल चुकी है। 
     पर स्वयं भारत के पूंजीवादी शासकों के अनुसार 2008 में मुम्बई पर हमला पाकिस्तान में ऊपर से संचालित  था। उन संचालकों को क्या कोई सजा मिली? क्या उसकी कोई सम्भावना है? यह जगजाहिर तथ्य है कि भारत के पूंजीवादी शासक पाकिस्तान में आतंकवादी गतिविधियां करवाते हैं। क्या उन्हें फांसी चढ़ाया जायेगा? 
     सरकारों द्वारा किये जाने वाला थोक आतंकवाद तो पूंजीवादी शासकों की कार्रवाई है ही, मुम्बई हमले जैसा फुटकर आतंकवाद भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर शासक वर्गों के नाम जाता है। कुछ को सरकारें खुद प्रायोजित करती हैं, कुछ उनके कुकर्मों के कारण पैदा होते हैं। लेकिन समूचा शासक वर्ग और सरकारें तथाकथित न्याय से साफ बच निकलती हैं। कसाब जैसे प्यादों की हत्या और उस पर बेतरह शोरगुल असल में शासकों को इन्हीं सवालों से बचाने का काम करते हैं। 

    कसाब की भारत के पूंजीवादी शासकों और सरकार द्वारा हत्या कर दी गई। इस पर जश्न मनाया जा रहा है या मनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। परन्तु स्वयं भारत के भीतर उससे बड़े हत्यारे स्वछंद घूम रहे हैं। यही नहीं वे सत्तानशीन हैं। उनको फांसी क्यों नहीं चढ़ाया जाता? 
    आजादी के बाद देश का सबसे बड़ा नरसंहार है 1984 में सिखों का कत्लेआम। इसके लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से लेकर कांग्रेस के तमाम नेता जिम्मेदार हैं। दिल्ली में तो कितने बड़े नेताओं को हत्यारों का नेतृत्व करते देखा गया था। आज 28 साल बाद भी इनमें से एक भी फांसी नहीं चढ़ाया गया। 2002 में गुजरात की भाजपा सरकार ने मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में 2000 से ज्यादा मुसलमानों का कत्लेआम किया। इन्हें सजा मिलना तो दूर नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के सपने पाल रहे हैं। 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद शिव सेना ने खुलेआम मुंबई में दंगे किये और मुस्लिमानों को मारा। इस सबके नेता बाला साहेब ठाकरे का राजकीय सम्मान के साथ दाह संस्कार किया जाता है और उन दो लड़कियों को थाने पहुंचा दिया जाता है जो गुंडों द्वारा मुम्बई बंद कराने पर सवाल उठाती हैं। 
     यदि मानव हत्या के लिए फांसी पर चढ़ाया जाना जरूरी है तो न्याय का तकाजा है कि सबसे पहले इस तरह के लोगों केा फांसी पर चढ़ाया जाये। पर यदि पूंजीवाद में न्याय होता तो वह पूंजीवाद ही न होता। इसमें तो न्याय के नाम पर अजमल कसाब नाम के किन्हीं प्यादों की कानूनी हत्या की जाती रहेगी और सारी हत्याओं के सूत्रधार अपनी लूट-मार के लिए स्वतंत्र होंगे। बल्कि असली सूत्रधारों द्वारा लूट-मार यथावत जारी रहे इसीलिए जरूरी है कि कसाब जैसे प्यादों की कानूनी हत्या कर दी जाये। 

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