Friday, November 9, 2012

बराक ओबामा जीते नहीं, मित रोमनी हारा

            बराक ओबामा ने अमेरिका के राष्ट्रपति पद के चुनावों में अपने से भी ज्यादा घृणित उम्मीदवार मित रोमनी को मात दे दी। मित रोमनी की एकमात्र विशेषता यह थी कि वे अमेरिकी साम्राज्यवादियों की घृणित करतूतों को लुका-छुपा कर करने को तैयार नहीं थे। वे इसे खुलेआम करना चाहते थे। इसीलिए अमेरिकी मतदाता उन्हें स्वीकर कर नहीं पाये। 
         बराक ओबामा ने पिछले 4 साल में अमेरिकी जनता को कितना छला होगा कि वह जार्ज बुश और उसकी पार्टी की पुरानी करतूतों को भुलाकर मित रोमनी को वोट देने को तैयार को तैयार हो गयी। इन चुनावों में रोमनी को ओबामा से महज 1 प्रतिशत ही कम मत मिले। 

         वास्तव में पिछले चार सालों में बराक ओबामा ने इस तरह से साबित किया कि वे जार्ज बुश के छोटे भाई हैं। उन्होंने अफगानिस्तान पर हमला तेज किया, लीबिया पर हमला किया तथा सीरिया पर हमला करने का पूरा प्रयास किया। उन्होंने ईरान पर हमले की धमकी दी।
         देश के भीतर उन्होंने सट्टेबाज पूंजीपतियों को और ज्यादा लूटने की पूरी छूट दी। आर्थिक संकट का सारा बोझ मजदूर और मध्यम वर्ग पर डाला जबकि सट्टेबाजों का मुनाफा बढ़ाया। अमेरिकी मजदूर वर्ग की हालत जार्ज बुश के जमाने से भी पतली हो गई।  
         ऐसे में स्वाभाविक ही था कि बराक ओबामा चुनाव हार जाते। शुरुआत में ऐसा लग भी रहा था। लेकिन रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार जब आगे आकर जनता को बताने लगे कि वे क्या-क्या गुल खिलायेंगे तो जनता चिहुंककर पीछे हट गयी। बराक ओबामा जीते नहीं बल्कि जनता ने मित रोमनी को नकार दिया। इस प्रक्रिया में ‘बाई डिफाल्ट’ बराक ओबामा चुनाव जीत गये। वे अगले चार साल और व्हाइट हाउस में विराजमान रहेंगे। जनता की जिन्दगी पहले की तरह रसातल में जाती रहेगी। 
         बराक ओबामा की जीत का यही निहितार्थ है। 

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