Friday, September 14, 2012

दक्षिण अफ्रीका के संघर्षरत खदान मजदूरों को इंकलाबी सलाम

           दक्षिण अफ्रीका में प्लैटिनम की खानों में मजदूरों के संघर्ष ने अब आम संघर्ष का रूप धारण कर लिया है। 16 अगस्त को लोमिन के 34 मजदूरों की मारिकाना खदान में हत्या करके पूंजीपति वर्ग ने सोचा था कि वह मजदूरों को कुचल देगा। परन्तु इसके ठीक उल्टा हुआ। इतनी शहादत देकर मजदूरों का हौंसला और बुलन्द हो गया। वे झुकने को तैयार नहीं हैं।
          इन मजदूरों के संघर्ष का विस्तार अब प्लैटिनम की खदानों की एक अन्य मालिक कम्पनी अमप्लास्ट तक हो चुका है। इसके मजदूर भी अब 1500 डालर मासिक तनख्वाह की मांग कर रहे हैं। इसी के साथ सोने की खानों के मजदूर भी एक-एक कर हड़ताल पर जा रहे हैं। कुल मिलाकर एक खदान के थोड़े से मजदूरों का वेतनवृद्धि के लिए शुरु हुआ आंदोलन आम मजदूर संघर्ष का रूप लेता जा रहा है।
          इस संघर्ष ने दक्षिण अफ्रीका में अठारह साल पहले श्वेत शासन समाप्त होने के बाद कायम हुए निजाम के असली चरित्र को उजागर कर दिया है। यह शासन किस तरह का है इसका पता इस बात से लगता है कि देश की सबसे बड़ी खदान मजदूर यूनियन के मुखिया का उपरोक्त लोमिन वाली खदान में हिस्सा है। यानी यूनियन का मुखिया स्वयं पूंजीपति है। यदि वह मजदूरों पर गोली नहीं चलवायेगा तो क्या करेगा?
         अठारह साल पहले श्वेत शासन समाप्त होने के बाद अश्वेत पूंजीपति वर्ग सत्ता में आया और उसने इन सालों में खूब लूट-मार की है। यही नहीं, वह इस लूट-मार को और आगे ले जाना चाहता है। दूसरी और श्वेत शासन के जमाने से अश्वेत मजदूरों की बदहाली और बढ़ी है। बेरोजगारी में भारी वृद्धि हुई है। वर्तमान राष्ट्रपति जैकब जूमा ने इसी का इस्तेमाल कर नेल्सन मंडेला के उत्तराधिकारी म्बेकी को सत्ता से बाहर किया था।
        लेकिन अब उन्हीं के शासन ने मजदूरों के इस हत्याकांड को अंजाम दिया।
        दक्षिण अफ्रीका में मजदूरों का वीरतापूर्ण संघर्ष दुनिया भर में फूट रहे मजदूर संघर्षों की एक कड़ी है। यह वैश्वीकृत-उदारीकृत पूंजीवाद के खिलाफ दुनिया के पैमाने पर फूट रहे विद्रोहों और संघर्षों का हिस्सा है।
          भारत का मजदूर वर्ग समूची दुनिया के मजदूर वर्ग का हिस्सा होने के नाते दक्षिण अफ्रीका के मजदूर संघर्ष को क्रांतिकारी सलाम भेजता है। और अपने यहां भी संघर्ष को तीव्र से तीव्र करने के लिए संकल्प लेता है। 

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