Wednesday, August 29, 2012

‘घोटाला-घोटाला‘ के पूंजीवादी खेल का सच

               पिछले हफते भर से केन्द्र में सरकार और विपक्ष दोनों ‘घोटाला-घोटाला’ का खेल खेल रहे हैं। सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी और उसके सहयोगी दल 1.86 लाख के कोयला घोटाले में विपक्षी भाजपा को ललकार रहे हैं कि हिम्मत है तो आओ, संसद में इस मसले पर बहस करो। वे एकदम आश्वस्त हैं कि स्वयं के मुंह पर भी कोयले की कालिख पुती भाजपा यह साहस नहीं कर सकती। दूसरी ओर भाजपाई इस कांग्रेसी चुनौती को दर किनार कर प्रधानमंत्री का इस्तीफा मांग रहे हैं। पर वे भी जानते हैं कि किसी समय कांग्रेसी भी इस्तीफा मांगने और संसद का बहिष्कार करने का नाटक कर चुके हैं। संक्षेप में यह कि दोनों ही बेहद बेशर्मी से एक-दूसरे की टांग खींच रहे हैं और फर्जी मैदान-ए-जंग में एक दूसरे को फर्जी तरीके से ललकार रहे हैं।

               इस बीच आजकल भ्रष्टाचार के खिलाफ एक और फर्जी अभियान चला रहे आधुनिक साचो-पांजा यानी अरविन्द केजरीवाल एण्ड कंपनी भी रविवार को अपना एक भव्य प्रदर्शन आयोजित कर चुके हैं। टी.वी. चैनलों ने इस बार भी उन्हें निराश नहीं किया। वे उनकी स्टंटबाजियों को दिन भर दिखाते रहे और उन्हें भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाने वाले जिहादी के रूप में स्थापित करते रहे।
              पर भ्रष्टाचार का मामला वास्तव में क्या है जिस पर ये सारे पूंजीवादी व्यवस्था के संचालक और रक्षक कानफोड़ू चुप्पी साधे हुए हैं? प्रचार है कि सरकार ने 2 जी स्पेक्ट्रम के आवंटन में तथा कोयला खदानों के आवंटन में क्रमशः 1.76 लाख करोड़ रुपये और 1.86 लाख करोड़ रुपये गंवाए। इसमे से ज्यादातर पूंजीपतियों की जेब में गये होंगे और छोटा सा हिस्सा (2या4 प्रतिशत) पूंजीवादी राजनेताओं व अफसरों की जेब में। यही घोटाला है। इसमें यह अंतर्निहित बात है कि यदि प्रतियोगिता के द्वारा सरकार यह राशि हासिल करती तो देश का भला होता। ऐसा न कर सरकार ने गलत किया है।
             लेकिन फर्ज कीजीए कि सरकारन ने यह सारी राशि हासिल कर ली होती तो ? तब इस राशि का सरकार क्या करती? क्या वह इसे मजदूरों पर या आत्महत्या करते किसानों पर खर्च करती ? क्या इससे वह सरकारी स्कूल और अस्पताल खोलती ? क्या इससे वह सार्वजनिक परिवहल व्यवस्था बेहतर बनाती ? नहीं सरकार यह सब नहीं करती। इन सबके मामले में सरकार  ने करीब बीस साल पहले ही बोल दिया था कि सरकार कोई धर्मशाला नहीं है। तब वर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह वित्तमंत्री थे और वर्तमान वित्तमंत्री पी.चिदंबर वाणिज्य मंत्री। तब से आज तक केन्द्र में कई सरकारें बदली हैं और सभी का वही मूलमंत्र रहा है- सरकार कोई धर्मशाला नहीं है।
             देश के ‘भूखो’ मरते लोगों के लिए सरकार कोई धर्मशाला नहीं है। लेकिन देश के पूंजीपतियों के लिए, धन्नासेठों के लिए यह पांच सितारा होटल जरूर है। सरकार देश के पूंजीपतियों पर कितना भी लुटाने के हमेशा तैयार है। पिछले पांच सालों मं सरकार ने आर्थिक संकट से उबरने के लिए प्रोत्साहन के नाम पर करीब पन्द्रह लाख करोड़ रुपये लुटाये हैं-करीब तीन लाख करोड़ करोड़ रुपये प्रतिवर्ष। यानी 2जी स्पेक्टरम और कोयला घोटाले के लगभग बराबर की राशि सरकार ने केवल एक साल में पूंजीपतियों पर लुटा दी। इस पर कोई भी हल्ला नहीं मचा रहा है हालांकि सरकार हर साल सालाना बजट में इसे घोषित करती है।
             सरकार जब तक एक ओर से पूंजीपतियों पर लुटाती है तो सारे चुप रहते हैं। लेकिन जब वह दूसरी ओर से लुटाती है सारे हल्ला मचाते हैं, जबकि अपनी बारी में वे भी वही करते हैं। स्पष्ट है कि यह देश की मजदूर-मेहनतकश जनता के साथ परले दरजे की धोखधड़ी है।
           मजदूर वर्ग के सचेत प्रतिनिधियों को इस धोखधड़ी का चैतरफा भंडाफोड़ करना होगा और समूची पूंजीवादी व्यवस्था को कटघरे में खड़ा करना होगा।

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