Friday, August 10, 2012

बाबा रामदेव रिटर्नस

      बाबा रामदेव एक बार फिर दिल्ली के रामलीला मैदान में हैं। पिछली बार वे बदहवासी में रामलीला मैदान से भाग खड़े हुये थे। तब उन्हें भारतीय राज्य ने अपने दमन तंत्र की हलकी सी झलक भर दिखाई थी। बाबा रामदेव जैसे डरपोक बहुरुपिये के लिए उतना ही काफी था।
      अब चैदह महीने बाद रामदेव एक बार फिर उसी मैदान में हैं। लेकिन इस बार बाबा रामदेव पहले से ही बहुत सावधान हैं। अपनी अनुभवहीनता के चलते उन्हें पिछली बार यह भ्रम हो गया था कि सरकार के साथ सौदेबाजी में वे कुछ हासिल कर सकते हैं। पुलिस के डंडों की हलकी सी फटकार से ही उनका यह भ्रम दूर हो गया। इस बार वे ऐसी कोई भी नौबत नहीं आने देना चाहते हैं। वे दुम हिलाते हुए ही रामलीला मैदान के मंच पर सवार हुए।

     उन्होंने सोनिया गांधी को माता सोनिया गांधी कहा। उन्होंने इंदिरा गांधी की प्रशंसा के गुण गाये। उन्होंने राहुल गांधी को भी सादर आमंत्रित किया। उन्होंने घोषित किया कि वे किसी भी व्यक्ति या राजनीतिक पार्टी के खिलाफ नहीं हैं। वे अनिश्चितकालीन या आमरण अनशन नहीं कर रहे हैं। वे अनशन भी नहीं कर रहे हैं! वे महज तीन दिन का सांकेतिक उपवास कर रहे हैं।
     बाबा रामदेव ने पिछली बार का अपना सबक बहुत अच्छी तरह सीखा है।
     तब फिर बाबा रामदेव दिल्ली में क्या कर रहे हैं ? रामलीला मैदान में अपने हजारों समर्थकों को जुटाने का उनका उद्देश्य क्या है ?
     बाबा रामदेव ने जब दुबारा रामलीला मैदान में आने की योजना बनाई तभी से यह स्पष्ट था कि वे भारतीय पूंजीवादी राजनीति के चुनावी अखाड़े में उतरना चाहते हैं। लेकिन ऐन वक्त पर अन्य धंधेबाजों यानी अन्ना एण्ड कम्पनी के गैर राजनीतिक चोले को त्यागकर चुनावी बाना धारण करने की वजह से उनकी योजना खटाई में पड़ गई।
     अपने पेट की अंतड़ियां नचाकर निम्न मध्यम वर्ग को चमत्कृत करने वाले बाबा रामदेव ने डेढ़ दशकों में अपना एक बड़ा व्यवसायिक साम्राज्य खड़ा कर लिया था। वह साम्राज्य उनकी अपनी स्वीकारोक्ति के अनुसार 1100 करोड़ रुपये का और आलोचकों के अनुसार दसियों हजार करोड़ रुपये का है। इसमें आयुर्वेदिक दवाओं के नाम पर लूट की भी महत्वपूर्ण भूमिका है।
     व्यवसायिक साम्राज्य के बाद बाबा रामदेव की महत्वकांक्षायें बहुत बढ़ गईं। लगातार कूपमंडूकों को चमत्कृत करते हुए यह परले दर्जे का कूपमंडूक धूर्त यह भ्रम पाल बैठा कि वह देश की राजनीति में सर्वोच्च शिखर पर पहुंच सकता है। तब उसने कूपमंडूकों को बेवकूफ बनाने के लिए मुद्दे उछालने शुरु किये और फिर पिछले जून में रामलीला मैदान में आ धमका । कूपमंडूकता और धूर्तता का अदभुत समन्वय मजमेबाजी और धंधे में तो काम आ सका है पर जब यह भारतीय राजनीति की जटिलता से टकराया तो बाबा रामदेव औरतों के कपड़ों में दिल्ली से भाग खड़े हुए। पर इसके बाद भी उनकी महत्वकांक्षा समाप्त नहीं हुई और वे एक बार फिर दिल्ली में बिराजे हैं।
      बाबा रामदेव छोटे शहरों और कस्बों के निम्न मध्यम वर्ग के बाबा हैं। मध्यम वर्ग के सभी हिस्सों में यह हिस्सा सबसे ज्याद कूपमंडूक, काइयां और डरपोक होता है। बाबा इसी के बल पर भारतीय राजनीति में अपनी किस्मत आजमाना चाहते हैं। ध्यान देने योग्य बात यह है कि इस निम्न मध्यम वर्ग के सवर्ण हिस्से का लम्बे समय से संघ परिवार की ओर झुकाव रहा है।
      ऐसे में अपने व्यवसाय में समेट कर कुछ हजार लोगों को लेकर दिल्ली के रामलीला मैदान में अपनी जनता के रूप में प्रदर्शित तो कर सकते हैं, पर इससे ज्याद कुछ नहीं। पूंजीवादी चुनावी राजनीति के चतुर खिलाड़ी चुनावी गणित को अच्छी तरह समझते हैं। इसलिए कुछ चुटकियां लेने के सिवा वे बाबा पर कोई ध्यान नहीं दे रहे है।
      यदि ध्यान आकर्षित करने के लिए बाबा पिछला सबक भूलकर फिर कुछ दुस्साहस करते हैं तो उन्हें उनका सबक फिर और जोरदार तरीके से याद कराया जायेगा। वैसा ज्यादा संभावना यही है कि बाबा कुछ दिनों में किसी बहाने से अपना बोरिया-बिस्तर समेटकर दिल्ली से चले जायेंगे।

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