Friday, July 13, 2012

भारतीय अर्थव्यवस्था की पतली हालत

    भारतीय अर्थव्यवस्था की सेहत कितनी निराशाजनक है इसे योजना आयोग के अध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया के शब्द बयान करते हैं। मई 2012 के औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े आने के बाद उन्होंने कहा कि अच्छी खबर यह है कि बुरी खबर नहीं आ रही है। उनकी यह टिप्पणी औद्योगिक उत्पादन में मई में 2.4 प्रतिशत वृद्धि दर पर थी। अप्रैल 2012 में औद्योगिक उत्पादन 0.9 प्रतिशत गिर गया था। यह गौरतलब है कि अहलूवालिया के अनुसार अर्थव्यवस्था में सुधार अक्टूबर से दिखेगा। यानी अगले चार महीनों तक हालात खराब रहेंगे।

    औद्योगिक उत्पादन की इस बुरी स्थिति का सीधा परिणाम मजदूरों पर पड़ रहा है। कंपनियां बड़े पैमाने पर छंटनी कर रही हैं। कुछ कंपनियां छुट्टी कर रही हैं तो कुछ लाकआउट। खासकर आटो क्षेत्र की कंपनियों ने पिछले महीनों में भारी छंटनी की है और यह अभी भी जारी है।
    इस छंटनी का मजदूरों के लिए एक ही मतलब है- भुखमरी की अवस्था में जाना। ठेके पर काम करने वाले ये मजदूर महीने के अंत में वैसे ही मोहताज हो जाते हैं। अब यह छंटनी उन्हें सूखी रोटी से भी वंचित कर देगी।
    छंटनीशुदा खबरों को कुछ राहत प्रदान करने के बदले भारत की सरकार वही करने में लगी है हुई है जो इस आर्थिक संकट के दौरान यूरोप और अमेरिका की सरकारें कर रही हैं। यह है मजदूरों से छीनकर पूंजीपतियों को देना। मजदूरों के जीवन स्तर को और बुरी स्थिति में डालकर पूंजीपतियों का मुनाफा बढ़ाना। इस समय सरकार जिन आर्थिक सुधारों की बात कर रही है उनका यही मतलब है। अन्यथा यह समझना मुश्किल है कि जिन आर्थिक सुधारों से भारतीय अर्थव्यवस्था की हालत और खराब होनी है उसके लिए भारत की सरकार इतनी जी-तोड़ कोशिश क्यों कर रही है।
    भारत सरकार की इन कोशिशों को नाकामयाब करने तथा छंटनी-तालाबंदी की वीभिषिका से बचने का केवल एक उपाय है-मजदूरों का सामूहिक संघर्ष। अभी मजदूर जो अलग-थलग संघर्ष में उतर रहे हैं उन्हें एकजुट करना होगा। साथ ही उन्हें वैश्विक पैमाने के मजदूरों के संघर्ष से खुद को जोड़ना होगा।

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