Saturday, June 16, 2012

रायसना हिल के लिए जूतम-पैजार

        भारत के पूंजीपति वर्ग की शासन व्यवस्था के सर्वोच्च लेकिन एकदम सजावटी पद के लिए यानी राष्ट्रपति पद के लिए भी पूंजीवादी पार्टियों में पर्याप्त जूतम-पैजार होती है। एक समय तो इंदिरा गांधी ने अपनी ही पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार के खिलाफ अपना उम्मीदवार खड़ा किया था और अंतरात्मा की आवाज सुनने का आह्वान कर उसे जितवाया।
           इस बार भी पूंजीवादी पार्टियों के बीच कोई सौहार्दपूर्ण वातावरण हो ऐसा नहीं है। बल्कि सारी पार्टियों ने पिछले दिनों इस मामले में पर्याप्त जोड़-तोड़ की है और अपना बदसूरत चेहरा दिखाया है। सबसे शानदार नजारा तो तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने पेश किया। इन्होंने अपना उम्मीदवार खड़ा करने की आड़ में संप्रग से सौदेबाजी करने की कोशिश की। अंततः मुलायम सिंह ने अपना सौदा पटा कर ममता बनर्जी को अपना थूका चाटने के लिए छोड़ दिया।

           कांग्रेस पार्टी ने अपनी ओर से प्रणव मुखर्जी का नाम इस पद के लिए 15 तारीख को प्रस्तावति किया और अब तक उसे पर्याप्त समर्थन मिल चुका है। एक तरह से अब यह तय है कि प्रणव मुखर्जी प्रतीभा पाटिल के बाद रायसना हिल की शोभा बनेंगे।
           पता नहीं प्रणव मुखर्जी इसे किस रूप में ले रहे होंगे। दिल ही दिल में उनकी भी तमन्ना प्रधानमंत्री बनने की थी। अब यह तमन्ना लिए हुए ही वे इस दुनिया से कूच कर जायेंगे ।
             लेकिन इस समय भारत के पूंजीपतियों की ज्यादा दिलचस्पी रायसना हिल के भावी बाशिन्दे के बदले वित्त मंत्रालय की कुर्सी में है। देश की गति में इस कुर्सी की ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका है।
           सारे ही पूंजीपति इस कोशिश में हैं कि इस कुर्सी पर कोई ऐसा व्यक्ति बैठे जो अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक तथा अमेरिकी साम्राज्यवादियों का दुलारा हो। इसीलिए मोंटेक सिंह अहलूवालिया और सी. रंगराजन जैसों का नाम सामने आ रहा है। इस समय जबकि भारत के पूंजीपति और साम्राज्यवादी चीख-चीख कर भारत सरकार से मांग कर रहे हैं कि उसे पूंजीपतियों के हितों के लिए नये कदम उठाने चाहियें तब कोई ऐसा व्यक्ति ही उनके लिए सबसे उपयुक्त होगा। देखना है कि कौन व्यक्ति मजदूर वर्ग की गर्दन को और ज्यादा मरोड़ने के लिए इस कुर्सी पर बैठता है।

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