एक जून को कुख्यात हत्यारे ब्रह्मेश्वर सिंह मुखिया की हत्या कर दी गई। यह कुख्यात हत्यारा उतने ही कुख्यात रणवीर सेना का प्रमुख था। अभी कुछ दिन पहले उसे भारतीय अदालत की कृपा से जेल से बाहर आने का मौका मिला था। अप्रैल में पटना उच्च न्यायालय ने बथानी टोला हत्याकाण्ड में जिसमें रणवीर सेना ने 21 दलितों की हत्या कर दी थी, सेशन कोर्ट के फैसले को पलटते हुए सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया था।
रणवीर सेना का गठन ब्रह्मेश्वर सिंह ने दलित मजदूरों और भूमिहीनों के उस संघर्ष के खिलाफ किया था जो वे विभिन्न नक्सलवादी संगठनों के नेतृत्व में चला रहे थे। यह संघर्ष इज्जत, जमीन और मजदूरी के लिए था और बड़े भूस्वामियों के खिलाफ केन्द्रित था। रणवीर सेना भूमिहार जाति के भूस्वामियों की सेना थी, जिसमें उन्होंने गरीब भूमिहारों को अपने भाड़े के हत्यारे के तौर पर संगठित किया था। इसके लिए उन्होंने जातिगत श्रेष्ठता की घृणित भावना का इस्तेमाल किया था। जिसे दलित मजदूरों के संघर्ष चुनौती दे रहे थे।
बिहार में इसके पहले कर्मी भूस्वामियों की भूमि सेना बन चुकी थी। इसी की तर्ज पर यादव भूस्वामियों ने लोरिक सेना, ब्राह्मण भूस्वामियों ने ब्रह्मर्षि सेना तथा क्षत्रिय भूस्वामियों ने कुंवर सेना बनाई। इन सबकी विशेषता यह थी कि इन्हें भूस्वामियों ने अपने पैसे से खड़ा किया था और इसमें अपनी जाति के गरीब लोगों का भाड़े के हत्यारे के तौर पर इस्तेमाल किया था। इन्हें प्रशासन का और प्रमुख पूंजीवादी पार्टियों का समर्थन हासिल था। कांग्रेस, भाजपा, राजद और जद (यू) सभी इसमें शामिल हैं।
रणवीर सेना ने 1996 में बथानी टोला और 1998 में लक्ष्मणपुर बाथे हत्याकाण्ड के साथ करीब बीस हत्याकाण्ड रचे जिसमें करीब 300 दलित मजदूरों और उनके बच्चों की हत्या की। लेकिन इसके बावजूद ब्रह्मेश्वर सिंह को उस तरह की कोई सजा नहीं मिली जिस तरह की किश्ता-भूमैया से लेकर ठीक इस समय उसी बिहार के दलित मजदूरों से आये लोगों को मिली है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि पटना उच्च न्यायालय द्वारा बथानी टोला के हत्यारों को बरी किया जाना वर्तमान बिहार सरकार के इशारे पर हुआ है।
इस समय बिहार में ठीक वही लोग सत्ता में बैठे हैं जो भूमि सेना रणवीर सेना, कुंवर सेना और ब्रह्मर्षि सेना के संरक्षक थे। बस लोरिक सेना वाले सत्ता से बाहर हैं। वर्तमान जद (यू) और भाजपा सरकार ने 2005 में सत्ता में आते ही एक काम यह किया था कि उसने रणवीर सेना के राजनीतिक पार्टियों से रिश्तों की जांच कर रहे न्यायमूर्ति अमित दास कमेटी को भंग कर दिया। उन्हें अपने आप को बचाना था। इसी सरकार ने बिहार में भूमि समस्या के लिए गठित बन्धोपाध्याय आयोग की रिपोर्ट को धूल फांकने के लिए फेंक दिया है क्योंकि यह रिपोर्ट भूमि वितरण की बात करती है।
हालात ये हैं कि इस सरकार के सदानन्द तिवारी जैसे लोग खुलेआम टी वी पर जातिगत पहचान की राजनीति की बात करते हैं। ऐसा करके ये एक ओर उत्पीडि़त जातियों में जातिगत उत्पीड़न से मुक्ति का भ्रम फैलाते हैं तो दूसरी ओर रणवीर सेना के समर्थकों को संदेश देते हैं कि अपनी जाति के पीछे लामबन्द हों । वे किसी भी कीमत पर इस सच्चाई को सामने नहीं आने देना चाहते कि बिहार में इस तरह के सारे हत्याकाण्डों के पीछे वास्तविक कारण दलित मजदूरों-भूमिहीनों तथा बड़े भूस्वामियों (सवर्णों ओर कुर्मी-यादव जैसी पिछड़ी जातियों के भूस्वामियों) के बीच संघर्ष था जिसे भूस्वामियों ने जातिगत संघर्ष का रूप दे दिया और अपनी जाति के गरीब लोगों को भाड़े के हत्यारे के तौर पर इस्तेमाल किया।
ब्रह्मेश्वर सिंह जैसा कुख्यात हत्यारा अब इस दुनिया में नहीं है। पर यह स्पष्ट है कि उसके जघन्य कारनामों के शिकार दलित मजदूरों और उनके बच्चों को इस घृणित व्यवस्था में न्याय नहीं मिलेगा। इस व्यवस्था में उनके लोग फांसी चढ़ते रहेंगे और ब्रह्मेश्वर जैसे लोग आजाद घूमते रहेंगे। ज्यादा जुगुप्सित बात यह है कि इन हत्यारों के संरक्षक नितीश कुमार और सुशील मोदी जैसे लोग स्वयं को अति पिछड़ों और अति दलितों का मसीहा बता रहे हैं। पर एक ब्रह्मेश्वर सिंह की हत्या इनके चेहरे से नकाब उतार देती है और वे इन हत्यारों के साथ खुलेआम जा खड़े होते हैं।
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