विश्व आर्थिक संकट का प्रभाव अब भारत पर इस हद तक पड़ने लगा है कि भारत सरकार चाह कर भी इसे नहीं छिपा पा रही है। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी को बयान देने पर मजबूर होना पड़ा कि हालात संगीन हैं हालांकि वे इसे ग्रीस संकट पर टाल रहे हैं।
2011-12 के पूरे साल औद्योगिक उत्पादन की दर बहुत नीची रही। मार्च में तो यह दर ऋणात्मक हो गई यानी इस साल मार्च में औद्योगिक उत्पादन पिछले साल मार्च के औद्योगिक उत्पादन के मुकाबले लुढ़क गया। भारत के निर्यात की वृद्धि दर भी बहुत घट गई है। इसी के साथ रुपया पहले के सारे रिकार्ड को तोड़ता हुआ डालर के मुकाबले 54 रुपये से भी नीचे चला गया। भारत सरकार ने पहले घोषणा की थी कि इस साल कुल वृद्धि दर 6.9 प्रतिशत रहेगी। अब प्रणव मुखर्जी वृद्धि दर इससे भी कम होने की बात कर रहे हैं।
यह अभी शुरुआत है। इस समय यूरोप में तीखी हलचल चल रही है। वहां सारे ही देशों से हालात खराब होने की खबरें आ रही हैं। ग्रीस में चुनाव के बाद सरकार न बन पाने की स्थिति में 17 जून को नये चुनावों की घोषणा कर दी गई। इससे ग्रीस के यूरो क्षेत्र से बाहर होने की संभावना बढ़ गई है। ग्रीस के यूरो क्षेत्र से बाहर जाने की अवस्था में समूचे यूरो क्षे़त्र और यूरोपीय संघ की अर्थव्यवस्थाओं पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। इस सबसे समूची दुनिया और भारत भी गहरे प्रभावित होगा।
वैश्वीकरण के दौर में समूची दुनिया के पूंजीपति वर्ग ने जो लूट-मार मचाई थी और स्वयं इस संकट के पिछले पांच सालों में भी उसने जो किया है उसके चलते एक ओर मजदूर मेहनतकश जनता की जिन्दगी बेतहाशा रसातल में गई है तो दूसरी ओर पूंजीपतियों की व्यवस्था भी भीषण खतरे में पड़ी है। भारत का पूंजीपति वर्ग जब-तब खुशफहमी पालता है कि वह इस संकट से गहरे प्रभावित होने से बच जायेगा। आने वाले दिन उसकी खुशफहमी के हवा हो जाने के दिन साबित होंगे।
No comments:
Post a Comment