अब सरकोजी के बदले होलोन्दे
आर्थिक संकट और उसमें पूंजीपति वर्ग द्वारा मजदूरों पर भयंकर हमले ने फ्रांस में राष्ट्रपति निकोला सरकोजी की बलि ले ली। रविवार को हुए राष्ट्रपति पद के चुनाव में उन्हें समाजवादी पार्टी के पिद्दी से उम्मीदवार होलोन्दे ने मात दे दी।
संकटग्रस्त यूरोप के बाकी देशों की तरह फ्रांस में भी पूंजीपति वर्ग ने पिछले चार सालों में मजदूर वर्ग का पहले से बदहाल जीवन और मुश्किल बना दिया है। इसमें निकोला सरकोजी की सरकार ने पूंजीपतियों की पूरी मदद की है।
2008 में आर्थिक संकट गहराने पर निकोला सरकोजी ने जोर-शोर से घोषणा की थी कि अर्थव्यवस्था का ऐंग्लो-सैक्शन माडल यानी बिर्टिश-अमेरिकी माडल फेल हो गया है। तब इससे यही निष्कर्ष निकाला गया था कि पिछले तीन दशकों की निजीकरण-उदारीकरण-वैष्वीकरण की नीतियों को नकारकर कल्याणकारी राज्य की ओर लौटने की बात कर रहे हैं।
परन्तु जल्दी ही यह स्पष्ट हो गया कि वे वास्तव में ऐसा कुछ नहीं करना चाहते।वित्त पूंजी के गुलाम ये ऐसा कर भी नहीं सकते थे। वित्त पूंजी पर लगाम लगाने तथा कल्याणकारी राज्य की ओर लौटने के बदले वे उल्टा किफायत कार्यक्रम लागू करने लगे जिसका मतलब था मजदूर वर्ग की बुरी हालत का और बदतर हो जाना।
यूरोप के बाकी देशों की तरह फ्रांस के मजदूर वर्ग और नौजवानों ने फ्रांसीसी सरकार के इन कदमों का बड़े पैमाने पर विरोध किया। पिछले चार साल एक के बाद एक आंदोलन-संघर्षों के काल रहे हैं। पिछले साल मई -जून से यह और भी तेज हो गया है।
मजदूर वर्ग के इस विरोध से कदम वापस खींचने के बदले निकोला सरकोजी ने उसी दिशा में कदम और आगे बढ़ाये। यही नहीं, उन्होंने जान-बूझकर धुर दक्षिणपंथी प्रवृत्तियो को शह दी। इन चुनावों के ठीक पहले और चुनावों के दौरान उनहोंने प्रवासी मजदूरों, खासकर अफ्रीकी मुस्लिम मजदूरों के खिलाफ खूब जहर उगला। लेकिन यह सब काम नहीं आया। सरकोजी को पराजय का मुंह देखना पड़ा।
जीत कर आने वाले होलोन्दे से भी मजदूर वर्ग को कुछ नहीं मिलने वाला। उन्होंने पहले ही घोषणा कर दी है कि वे नरम वामपंथी नीतियों पर चलेंगे। जब हालात यह हों कि बराक ओबामा को भी अमेरिका में समाजवादी घोषति किया जा रहा हो तब इन ‘नरम वामपंथ नीतियों का वास्तविक मतलब समझा जा सकता है। इसका वास्तविक मतलब है मजदूर वर्ग के लिए बहुत मामूली सी राहतें। जबकि वित्तीय पूंजी ने मजदूर वर्ग को नरक में धकेल रखा हो तब ये राहतें ऊंट के मुंह में जीरा भी नहीं साबित होंगी।
होलोन्दे और उनकी समाजवादी पार्टी के फ्रांस में सत्तारूढ़ होने से मजदूर वर्ग का कोई भला नहीं होगा। ठीक इसी कारण फ्रांस का मजदूर वर्ग अपना संघर्ष जारी रखेगा। केवल मजदूरों के और तीखे
संघर्ष ही होलोन्दे सरीखे पूंजीपतियों के नये कारिन्दे को पीछे हटाने तथा मजदूरों को और ज्यादा राहत देने के लिए मजबूर कर सकेंगे।
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