भारत के पूंजीपति वर्ग की बूख इतनी बढ़ गई है कि वह अपने लिए थोड़े बहुत से संतुष्ट नहीं होता। उसे सारा का सारा चाहिए। शुक्रवार को शेयर बाजार की गिरावट से पूंजीपति वर्ग ने अपना रूख स्पष्ट कर दिया।
पूंजीपति वर्ग यह उम्मीद कर रहा था कि केंद्र की संप्रग सरकार प्रदेश विधान सभाओं के चुनावों के दबाव से मुक्त होकर धड़ल्ले से पूंजीपति वर्ग के पक्ष में फैसले करेगी। खासकर 2012-13 का आम बजट उसके मनोनुकूल होगा। “आर्थिक सुधारों” का एक नया चक्र सरकार शुरु करेगी।
लेकिन जब केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने शुक्रवार, 16 मार्च को बजट पेश किया तो वे इतने आगे बढ़ने को तैयार नहीं हुए। और जव वे इतने आगे नहीं गए तो पूंजीपति वर्ग ने अपनी निराशा व्यक्त कर दी। उनके अनुसार वित्त मंत्री ने लोकरंजकता का परिचय दिया और कठोर कदम नहीं उठाए।
लेकिन क्या प्रणव मुखर्जी ने वास्तव में लोक के लिए यानी आम आदमी के लिए कुछ किया? स्पष्टतः ही नहीं। उन्होंने सब्सिडी में कटौती की बात की। उन्होंने अप्रत्यक्ष कर बढ़ाए। उन्होंने वे कदम उठाए जिनके चलते भविष्य में मंहगाई बढ़ेगी। उन्होंने 30 करोड़ रुपए का विनिवेश करने की घोषणा की। ये सारे कदम आम आदमी के विरोध में तथा खास आदमियों के पक्ष में हैं।
यही नहीं बजट से ठीक एक दिन पहले सरकार ने ईपीएफ पर मिलने वाले ब्याज की दरों में 1.25 प्रतिशत की कटौती कर उसे 9.5 प्रतिशत से घटाकर 8.25 प्रतिशत कर दिया है। यह देखते हुए कि मंहगाई की आम दर सारे साल लगभग 8-10 प्रतिशत रही है यह ब्याज दर एक तरीके से कर्मचारियों-मजदूरों के साथ डकैती है।
वित्त मंत्री ने चर्चा के दौरान बताया कि उन्होंने इस बजट सत्र के दौरान कुछ विधेयकों को पास कराने के लिए सभी दलों से बात कर ली है। यानी तथाकथित आर्थिक सुधार बजट के आगे-पीछे जारी हैं।
दुनिया भर में आज निजीकरण-उदारीकरण-वैश्वीकरण के तीव्र विरोध के माहौल में भी केंद्रीय सरकार के वित्त मंत्री का यह बजट उन्हीं नीतियों के एकदम अनुकूल है। इसके बावजूद पूंजीपति वर्ग निराश हुआ है क्योंकि वह बहुत ज्यादा उम्मीद कर रहा था। पूंजीपति जब 50 प्रतिशत मुनाफे की उम्मीद करता है और उसे 30 प्रतिशत मुनाफा ही मिलता है तो वह इसे 20 प्रतिशत का घाटा मानता है। बजट के संदर्भ में समूचा पूंजीपति वर्ग इसी व्यवहार का परिचय दे रहा है।
जैसा कि वित्त मंत्री ने रेखांकित किया देश के बाहर आर्थिक हालत खराब हैं तथा और ज्यादा खराब होते जा रहे हैं। इसके परिणाम भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी दीख रहे हैं। लेकिन साथ ही पूरी दुनिया में यह देखा जा रहा है कि पूंजीपति वर्ग इस संकट के समय पीछे हटने, दीवालिया साबित हो चुकी अपनी नीतियों को वापस लेने के बदले और आगे बढ़ रहा है। वह संकट का सारा बोझ मजदूर वर्ग पर डालने के लिए मजदूर वर्ग पर तीखे हमले कर रहा है, मजदूर वर्ग के हालात को और ज्यादा खराब बना रहा है। भारत का पूंजीपति वर्ग भी इसी पर चल रहा है। वह तो और भी इस गुमान में है कि देश की तेज वृद्धि दर (2011-12 में 6.9 प्रतिशत) उसे ऐसा करने का पूरा आधार प्रदान करती है। वह दुगुने जोश से अपनी पीठ थपथपाते हुए इस दिशा में बढ़ रहा है।
हेकड़ीबाज पूंजीपति वर्ग यही करेगा। उसे मजदूरों की एक दिन की अनुष्ठानिक आम हड़ताल ऐसा करने से नहीं रोक पाएगी। इसे रोकने का केवल एक तरीका है- देश के पैमाने पर मजदूर वर्ग का उठ खड़ा होना। जब तक ऐसा नहीं होता तब तक पूंजीपति वर्ग के ये चाकर इसी तरह पूंजीपतियों की सेवा करते हुए आम आदमी की बात करते रहेंगे।
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