पांच प्रदेशों में विधानसभा चुनावों के परिणाम आ गये हैं। भारत की पूंजीवादी राजनीति के तमाशे का एक और चक्र पूरा हो गया है। खासकर राजनीति से परहेज करने वाले मध्यम वर्ग का मनोरंजन करने वाले पूंजीवादी प्रचार माध्यम अब इस तमाशे के बदले किसी अन्य तमाशे की तलाश करेंगे।
चुनावों के दौरान जाति-धर्म के हिसाब से हर समय जोड़-तोड़ लगाने वाले सारे ही पूंजीवादी खिलाड़ी अब यह जताने का प्रयास कर रहे हैं कि ‘जनता’ ने जाति-धर्म की छोड़कर विकास को चुना है। वे यह स्थापित करने का जी-तोड़ प्रयास कर रहे हैं कि पूंजीवाद में ‘जनता’ का विकास हो सकता है या पूंजीवादी विकास से ‘जनता’ का कुछ भला हो सकता है। वास्तविक जनता यानी मजदूर वर्ग तथा अन्य गरीब मेहनतकशों के शोषण पर खड़ी पूंजीवादी व्यवस्था के लिए इस तरह का झूठ स्थापित करना जरूरी है। इस बात को झुठलाना जरूरी है कि पूंजीवादी में विकास का मतलब ही है वास्तविक जनता का पूंजीपति वर्ग के मुकाबले और नीचे जाना, उसकी सापेक्षिक हालत खराब होना।
चुनावों के बाद फर्क इतना ही पड़ेगा कि अब उत्तर प्रदेश के मजदूर और गरीब किसानों की पीठ पर बसपा के बदले सपा के लूट-खसोट करने वाले सवार होंगे, उत्तराखण्ड में भाजपाइयों के बदले कांग्रेसी अब तांडव नृत्य करेंगे। पहले बसपा या भाजपा के नेता अपने चुनावी वादों पर थूकते थे, अब सपा या कांग्रेस के नेता यह करेंगे। पहले सपा या कांग्रेस के लोग बसपा या भाजपा की सरकार को जनता के नाम पर कोसते थे, अब बसपा या कांग्रेस के लोग यह करेंगे। यही है पूंजीवादी लोकतंत्र! इसी की महिमा के गुण समूचा पूंजीपति वर्ग गाता है।
इन चुनावों में समूचे पूंजीपति वर्ग ने सारा जोर लगा दिया कि उसके लोकतंत्र में लोक की खत्म हो रही आस्था को पुनस्र्थापित किया जाये। भांति- भांति के विज्ञापनों की बाढ़ आ गई। चुनावों में बढ़े हुए मतदान प्रतिशत को इसकी सफलता माना गया। और अब दो-तीन महीने की आपसी जूतम-पैजार के बाद सब गले मिल रहे हैं। कितना अच्छा खेल है यह!
इस खेल-तमाशे की दिक्कत यही है कि यह दिनों-दिन पुराना और बासी होता जा रहा है। इसके खिलाड़ी खुद ही इसे दिन-प्रतिदिन कलंकित कर रहे हैं। अन्ना हजारे एण्ड कम्पनी से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक इसे रोकने में लगे हुए हैं। पर टिटहरी ने कब टूटते आसमान को रोका है?
मजदूर वर्ग की मुक्ति इस समूचे तेत्र को जड़-मूल से उखाड़ कर फेंकने में हैं। यह तथ्य जितनी तेजी से मजदूर वर्ग आत्मसात करेगा उतनी तेजी से उसकी मुक्ति का दिन करीब आयेगा।
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