देश की सभी ट्रेड यूनियन फेडरेशनों और उनसे जुड़ी यूनियनों ने सरकार की श्रम विरोधी नीतियों का विरोध करने का अपना अनुष्ठान पूरा कर लिया है। अब वे साल भर के लिए चैन से सो सकते हैं। उन्होंने अपने साथ जुड़े मजदूरों को मीठी गोली दे दी है।
इस हड़ताल के दो सप्ताह पहले देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 44वें श्रम सम्मेलन में बोलते हुए देश के मजदूरों को खुली चुनौती दी है। उन्होंने कहा कि देश के संगठित क्षेत्र के अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति वाले मजदूरों को भी सरकार असंगठित क्षेत्र के मजदूरों जैसी स्थिति में धकेलने का प्रयास करेगी।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की इस चुनौती को स्वीकार पूरे देश को ठप कर देने और संसद-विधानसभाओं को घेर लेने के बदले, पूरी सरकार को पंगु बना देने के बदले इन ट्रेड यूनियन फेडरेशनों ने क्या किया? देश की ज्यादातर फैक्टरियां चलती रहीं, रेल व बसें चलती रहीं। कुछ सरकारी दफ्तर और बैंक ही बंद रहे, जिसमें काम अगले दिन भी निपटाया जा सकता है। विरोध प्रदर्शन का दिखावा पूरा हो गया।
लेकिन इन ट्रेड यूनियन फेडरेशनों से इससे बेहतर की उम्मीद भी नहीं की जानी चाहिए। इनमें से लगभग सभी उन्हीं पार्टियों से जुड़ी हुयी हैं जो इन मजदूर विरोधी नीतियों को लागू कर रही हैं। इस तरह ये एक ओर मजदूरों को निचोड़ने में पूंजीपतियों की हर तरह की मदद कर रहे हैं तो दूसरी ओर मजदूरों को भ्रम में डालने के लिए इस तरह के अनुष्ठान का आयोजन कर रहे हैं।
पूरी दूनिया में मजदूर संघर्षों की उठती लहर यह दिखा रही है कि इनकी यह चाल ज्यादा दिन नहीं चलने वाली। भारत के वर्ग सचेत मजदूरों को इनका भंडाफोड़ कर मजदूरों को क्रांतिकारी संघर्षों के लिए तैयार करने में दुगुने जोश से लग जाना होगा।
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