भारत के सभी ट्रेड यूनियन फेडरेशनों ने 28 फरवरी को एक दिनी देश व्यापी हड़ताल का आयोजन किया है। इनके अनुसार ऐसा पहली बार हो रहा है कि देश की सभी फेडरेशनें हड़ताल में शामिल हैं। यह हड़ताल सरकार की श्रम विरोधी नीतियों के खिलाफ है।
लेकिन इसे विडंबना ही कही जाएगी कि इस हड़ताल के दो सप्ताह पहले स्वयं इन फेडरेशनों की उपस्थिति में देश के प्रधानमंत्री ने, जो देशी-विदेशी पूंजीपतियों के बेशर्म चाकर हैं, इन्हें खुलेआम चुनौती दी। प्रधानमंत्री ने 44वें भारतीय श्रम सम्मेलन में बोलते हुए यह कहाः
“हमें समय-समय पर इसकी समीक्षा करनी चाहिए कि कहीं हमारे नियामक ढांचे में कुछ ऐसा तो नहीं है जिससे श्रम कल्याण में बिना किसी उल्लेखनीय योगदान के बेवजह रोजगार, उद्यम और उद्योग की वृद्धि प्रभावित हो रही है। सरकार सभी कामगारों की बेहतरी चाहती है और वह ऐसे प्रावधान बनाने पर विचार कर रही है जिससे अंश कालिक और पूर्णकालिक, दोनों तरह के काम को इन प्रावधानों की दृष्टि से एक ही तरह देखा जाएगा....भारत में श्रम संबंधी नीतियां रोजगारयाफ्ता श्रमिकों के हितों का जरूरत से ज्यादा ध्यान रखती हैं और ऐसी नीतियों के चलते रोजगार का विस्तार नहीं हो पाता...सरकार फैक्ट्री अधिनियम 1948 में संशोधन की प्रक्रिया में है...”
पूंजीपतियों के चाकर प्रधानमंत्री का कहना स्पष्ट है। वे मुट्ठी भर संगठित क्षेत्र के सुरक्षा प्राप्त मजदूरों को भी असंगठित क्षेत्र के असुरक्षित मजदूरों की श्रेणी में ढकेलना चाहते हैं। इससे मजदूरी को तिहाई या चौथाई स्तर तक गिराया जा सकता है। पूंजीपतियों का मुनाफा इससे बड़े स्तर पर बढ़ जाएगा। प्रधानमंत्री ने इसी बैठक में खुलेआम कहा कि उनकी महत्वकांक्षा है कि देश सालाना नौ फीसदी की दर से वृद्धि करे। यह नौ फीसदी की वृद्धि इसी तरह से हासिल की जा सकती है। विद्वान अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मजदूरों के बेतहाशा शोषण और ऊंची वृद्धि दर के वास्तविक संबंध को अच्छी तरह से समझते हैं।
प्रधानमंत्री की इस खुली चुनौती के बावजूद ट्रेड यूनियन फेडरेशनें इसका माकूल जवाब नहीं देंगी। वे केवल एक दिन की अनुष्ठानिक हड़ताल तक सीमित रहेंगी। यह इसलिए कि वे पूरी तरह से पूंजीपतियों की व्यवस्था में समाहित हैं। वे स्वयं शासक पूंजीवादी पार्टियों से संबंद्ध हैं। केवल मजदूरों के तीव्र असंतोष को क्षरित करने के लिए ही वे इस तरह के अनुष्ठान का आयोजन करती हैं। इसी श्रम सम्मेलन में भारतीय मजदूर संघ के अध्यक्ष ने कहा कि असंगठित क्षेत्र के मजदूर विस्फोट की तरफ बढ़ रहे हैं।
इन गद्दारों के बावजूद यह विस्फोट होकर रहेगा क्योंकि स्वयं पूंजीपति वर्ग ही मजदूरों को विस्फोट की ओर ढकेल रहा है। प्रधानमंत्री का बयान इसका प्रमाण है।
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