इस्राइल के जियनवादी शासक इरान पर हमला करने के लिए इस हद तक है कि अमेरिकी साम्राज्यवादियों को भी अप्रत्यक्ष रूप में इसे स्वीकार करना पड़ रहा है। कहने की बात नहीं कि इसे पीछे से अमेरिकी साम्राज्यवादी ही बढ़ावा दे रहे हैं।
दिल्ली में एक इस्राइली राजनायिक की पत्नी पर हमले को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। इसके लिए इस्राइल के प्रधानमंत्री ने तुरंत इरान को दोषी ठहरा दिया। उन्हें किसी जांच की आवश्यकता भी महसूस नहीं हुई। उनके लिए निष्कर्ष पहले से ही स्पष्ट था।
इरान के द्वारा आतंकवादी कार्रवाई के लिए किसी अदने राजनायिक की पत्नी को लक्ष्य बनाया जाएगा, यह अपने आप में रोचक बात लगती है। वस्तुतः आज के हालात में इस तरह की हरकत इस्राइल की खुफिया एजेंसी मोसाद की हरकत ज्यादा हो सकती है।
पिछले कुछ महीनों से इरान पर हमले की कवायदें बहुत तेज हो गई हैं। एक ओर पश्चिमी साम्राज्यवादी सीरिया में विद्रोह का फायदा उठाकर उसके इरान समर्थक असद शासन को उखाड़ फेंकना चाहते हैं। दूसरी ओर वे इरान के खिलाफ माहौल बनाना चाहते हैं जिससे अनुकूल परिस्थितयों में उस पर हमला किया जा सके।
इरान पर हमला केवल उसके परमाणु कार्यक्रमों के लिए नहीं है। इस्राइल के परमाणु बमों के जवाब में अरब क्षेत्र में किसी और देश को परमाणु बम न बनाने देना केवल इसका एक लक्ष्य है। पूरे अरब क्षेत्र में भू-राजनीतिक समीकरणों को पश्चिमी साम्राज्यवादियों, खासकर अमरीकी साम्राज्यवादियों के हिसाब से बदल देना इसका मुख्य लक्ष्य है। इराक-अफगानिस्तान की स्थितियों को देखते हुए यह और भी जरूरी हो गया है। अमरीकी साम्राज्यवादियों को लगता है कि इन देशों में वे हालात को तभी अपने मनोकूल ढाल सकते हैं। अमेरिकी साम्राज्यवादियों की अपनी घृणित करतूतों से इरान खाड़ी क्षेत्र में और मजबूत होकर उभरा है, खासकर इराक में सद्दाम हुसैन के प्रतिद्वंदी शासन के खात्मे से।
भारत में क्षेत्रीय महत्वकांक्षाओं वाले पूंजीवादी शासकों ने भी इरान के खिलाफ पश्चिमी साम्राज्यवादियों की इन साजिशों को अपना समर्थन दिया है। इन्होंने अमेरिकी साम्राज्यवादियों के साथ तथाकथित रणनीतिक संश्रय के तहत अंतरराष्ट्रीय उर्जा एजेंसी में इरान-पाकिस्तान-भारत गैस पाइपलाइन से अपना हाथ पीछे खींचा है। यहां तक कि इरान से आयातित तेल के भुगतान के मामले में पश्चिमी साम्राज्यवादियों द्वारा अड़ंगा लगाए जाने का भी इन्होंने तीखा जवाब नहीं दिया है। भारतीय शासकों ने पूरी बेशर्मी से कहा है कि वे अपने पड़ोस में एक अन्य परमाणु शक्ति को नहीं देखना चाहते।
लेकिन इसी के साथ भारत के पूंजीवादी शासकों के हित ही इस बात की मांग करते हैं कि वे पश्चिमी साम्राज्यवादियों की हर बात न मानें। इसी कारण अभी संपन्न भारत-यूरोपीय संघ शिखर वार्ता में माहौल सर्द रहा। यूरोपीय संघ के कर्ता-धर्ता इरान मसले पर बिलकुल उनके कहे अनुसार न चलने के लिए भारतीय शासकों से नाराज थे। भारत में इस्राइली राजनयिक की पत्नी पर यह हमला भारतीय शासकों को दबाव में लेने की साजिश भी हो सकती है।
आज के सरगर्म दौर में पश्चिमी एशिया और उत्तरी अफ्रीका में साम्राज्यवादियों की कुटिल चालें बहुत तेज हो गई हैं। चीनी पूंजीवादी शासकों और रूसी साम्राज्यवादियों सहित पश्चिमी साम्राज्यवादियों ने इस पर नजरें गड़ा दी हैं। वे अपने शक्ति संतुलन को इस क्षेत्र में आजमा रहे हैं। और अपने अनुकूल बदलने का प्रयास कर रहे हैं।
भारत के मजदूर वर्ग को साम्राज्यवादियों की इन चालों का पर्दाफाश करना चाहिए। इसके लिए उसे इरान के कठमुल्ला पूंजीवादी शासकों का समर्थन करने की जरूरत नहीं। वह इरान के मजदूर वर्ग और मेहनतकश जनता के साथ है जिनकी क्रांति को 1979 में इरानी कठमुल्लों ने हड़प लिया था।
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