लीबिया की तरह सीरिया पर भी कब्जे के लिए साम्राज्यवादियों की चालें इस समय बहुत तेज हो गई हैं। इसके जिए वे खाड़ी के अपने पिट्ठू शोखों और तुर्की के महत्वकांक्षी पूंजीवादी शासकों का पूरा इस्तेमाल कर रहे हैं।
सीरिया में तानाशाह राष्ट्रपति बशीर असद के खिलाफ पिछले दस महीनों से विद्रोह चल रहा है। इसमें हजारों लोग मारे गये हैं। यह विद्रोह दूर-दराज के शहरों से आगे बढ़ते हुए अब राजधानी पहुंच रहा है जहां देश की एक महत्वपूर्ण आबादी रहती है।
परन्तु यह विद्रोह न केवल असद के लिए बल्कि साम्राज्यवादियों के लिए भी खतरनाक है। इस कारण वे और भी इस फिराक में हैं कि इस विद्रोह को भ्रष्ट कर इसे अपनी गिरफ्त में ले लिया जाय और इसी बहाने सीरिया पर कब्जा कर लिया जाय। लीबिया में वे ऐसा पहे ही कर चुके हैं।
क्षेत्रीय शक्ति की आकांक्षा पाले हुये तुर्की के पूंजीवादी शासक, जो नरम नरम इस्लाम को अपनाये हुये हैं, इसमें बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। सीरिया के आंतरिक विद्रोह को वे बाहरी हस्तक्षेप के लिए इस्तेमाल करने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं। वे कुछ भगोड़े सैनिकों ही नहीं,मुस्लिम ब्रदरहुड और सलांफी इस्लामी लोगों को अपने यहां सैनिक प्रशिक्षण और हथियार देकर सीरिया में भेज रहे हैं। इसमें अमेरिका,ब्रिटेन और फ्रांस जैसे साम्राज्यवादी पूरी तरह मद्द कर रहे हैं। कतर और सऊदी अरब के साम्राज्यवाद परस्त शेख भी इसमें लगे हुए हैं।
लीबिया की तरह सीरिया में भी वे अरब लीग के अपने इन्हीं पिट्ठुओं की आगे कर सीरिया पर हमले की पृष्ठभूमि तैयार कर रहे हैं। अरब लीग का एक पर्यवेक्षक दल,जो सीरिया गया था,वह इसी मकसद से संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद में एक रिपोर्ट पेश करेगा।
सीरिया पर कब्जा अमेरिकी साम्राज्यवादियों के लिए इसलिए भी जरूरी है कि इसके माध्यम से वे इरान को कमजोर कर सकते हैं और फिर इराक में अपनी स्थिति को सुधार सकते है। सीरिया पर कब्जा पूरे पश्चिम एशिया और अफ्रीका की उस पुनर्रचना का अंग है जिसके हित इराक पर 2003 हमला किया गया था और 2011 में लीबिया पर।
लीबिया के परिणाम के बाद रूसी साम्राज्यवादी औरचीनी पूंजीवादी शासक अपने हितो के मद्दे नजर अब ज्यादा सचेत हो गये हैं। वे सीरिया पर हमले की पश्चिमी साम्राज्यवादियों की योजना का ज्यादा मुखर विरोध कर रहे हैं जिससे वे ज्यादा बड़ी सौदेबाजी कर सकें। यदि सौदा नहीं पटा तब वे विरोध करना जारी रखेंगे। तब पश्चिमी साम्राज्यवादियों को और भी नंगे रूप में सीरिया पर हमले के लिए उतरना होगा।
लीबिया में हश्र के बाद सीरिया के विद्रोही भी ज्यादा सचेत हैं। उनमें से ज्यादातर बाहरी हस्तक्षेप का विरोध करते है। तब भी साम्राज्यवादियों को सीरिया के भीतर कुछ गद्दार ढूंढ़ लेने मं दिक्कत नहीं होगी। ऐसे गद्दार हर देशे में, हर समय मिल जाते हैं। सीरिया के विद्रोहियों को असद के खिलाफ संघर्ष करते हुए इन गद्दारों और इनके बाहरी मालिकों के खिलाफ भी संघर्ष करना होगा। इन्हें बाहरी हस्तक्षेप और हमले का हर हालत में विरोध करना होगा। अन्यथा परिणाम अफगानिस्तान,इराक और लीबिया जैसा ही होगा।
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