पांच प्रदेशों की विधान सभाओं के लिए 28 जनवरी से मतदान शुरू हो रहे हैं। ये विभिन्न चरणों में 3 मार्च तक चलेंगे। चुनाव परिणाम इसके बाद ही आयेंगे।
ठन चुनावों में खासकर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में, पूंजीवादी राजनीतिक पार्टियां अत्यन्त विभत्स और कुत्सित रूप में सामने आयी हैं। जब समाज में चारों ओर राजनीतिक शुचिता की बात हो रही हो,जब रातनेताओं का भ्रष्ट आचरण आम जनता में मुद्दा बना हुआ हो,तब इनका यह व्यवहार और भी घ्रणित हो जाता है। हालात वहां पहुंच रहे हैं जहां वे दिखावे कि लिए भी ईमानदारी और अच्छे आचरण उदाहरण नहीं पेश कर सकते।
परन्तु वे कर भी कैसे सकते हैं ? ‘बहन’ मायावती की बसपा सरकार ने पिछले पांच सालों में दलित-शोषित जनता के लिए ऐसा क्या किया जिससे वे उनके बीच जाकर अपन चेहरा दिखा सकें ? इनकी ही सरकार के काल में ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के चार सबसे बड़े अधिकारियों की हत्या हो चुकी है क्योंकि इसमें हुए घोटालो को छिपाना है। यह मिशन किसके लिए था ? गांव के गरीबों के लिए ! पांच साल तक लूटने-खाने के बाद मायावती अंत में कुछ लोगों को पार्टी से निकालकर अपने मुंह की कालिख को साफ करना चाहती हैं। पर यह किसे धोखा देगा ?
रही कांग्रेस और भाजपा जैसी पार्टियों की बात तो इनके पापों की फेहरिस्त इतनी लम्बी है कि वह प्रस्तुत करने के लिए एक पूरा छापाखाना कम पड़ जाये। मुलायम सिंह की सपा और अकालीदल जैसी पार्टियां इनसे पूरी होड़ कर रही हैं। भाकपा-माकपा जैसी पतित तथाकथित मजदूर पार्टियां भी इनके पीछे घिसट रही हैं। और इन सबके बीच भ्रष्टाचार को समाप्त करने का झंडा बुलंद किये हुए अन्ना हजारे एण्ड कंपनी कहां खड़ी है ? वह उत्तराखंड में भाजपा की बगलगीर हो रही है। वह भ्रष्ट भाजपा सरकार द्वारा पास किये गये लोकपाल बिल के गुण गा रही है और उम्मीद कर रही है कि भाजपा दोबार उत्तराखंड में जीत जाय जिससे वह कांग्रेस को हराने का श्रेय ले सके। ऊपरी तौर पर, भारतीय राजनीति के ये नये मदारी और जमूरे जनता से कह रहे हैं कि वह ईमानदार लोगों को चुने। वे यह जताना चाहते हैं कि पूंजीवाद में चुनाव बिना पैस के जीते जा सकते हैं और ऐसे जीतने वाले गरीब जनता की सेवा करेंगे। इन्हें जितने जूते पड़ें वही कम होगा।
भारत की भ्रष्ट-पतित चुनावी राजनीति स्वयं चुनावों के समय ही सबसे घृणित रूप में प्रस्तुत है। आपसी प्रतियोगिता में पूंजीवादी पार्टियां और उनके नेता एक-दूसरे को एवं खुद को पूरी तरह नंगा कर रहे हैं। वे इसके सिवा कुछ कर भी नहीं सकते।
ऐसे में क्रांतिकारी मजदूर संगठनों और वर्ग सचेत मजदूरों का यह काम बनता है कि वे इनका और इनको समस्त व्यवस्था का पूरी शिद्दत से भंडाफोड़ करें। वे पूंजीवादी जनतंत्र को पूरी तरह से बेनकाब करें। केवल ऐसा करके ही मजदूर वर्ग को और अन्य मेहनतकश जनता को मजदूर राज्य की स्थापना के लिए तैयार किया जा सकता है। चुनावों का राजनीतिक सरगर्मी भरा माहौल इसके लिए अच्छा समय है।
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