अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक ने जनवरी में जारी अपनी रिपोर्ट में इस बात को स्वीकार कर लिया है कि विश्व अर्थव्यवस्था की हालत उससे ज्यादा खराब है तथा उससे ज्यादा तेजी से खराब होती चली जा रही है जितना पहले उन्होंने आकलन किया था। विश्व बैंक के अनुसार 2012 में विकसित देशों में केवल 1.4 प्रतिशत की वृद्वि होने की संभावना है। पहले यह 2.7 प्रतिशत आंकी गई थी। यूरो क्षेत्र के लिए विश्व बैंक का आकलन अब -(0.3) का है जबकि पहले यह 1.8 प्रतिशत था। यानी महज कुछ महीनों में इसे अपना आकलन 2.1 प्रतिशन घटाना पड़ा है। समूचे विश्व के लिए यह आकलन 2.5 प्रतिशन है। विश्व व्यापार के लिए विश्व बैंक का आकलन 2010,2011,2012 के लिए क्रमशः 12.4,6.6, और 4.7 प्रतिशत का है।
इसी तरह अंतर्राष्ट्रीय मुद्र कोष ने अभी सितंबर में जारी अपनी रिपोर्ट में बड़ी तबदीली की है। इसने विकसित देशों के लिए 2012 में महज 1.2 प्रतिशत वृद्वि की भविष्यवाणी की है। यूरो क्षेत्र के लिए अपने पहले के आकलन को 1.6 प्रशित घटाकर इसने त्रणात्मक 0.5 प्रतिशत कर दिया है। ज्यादा गंभीर हालत इटली और स्पेन की है। जहां क्रमशः 2.2 और 1.7 प्रतिशत गिरावट होने के आसार हैं। इंगलैंड में भी महज 0.6 प्रतिशत वृद्वि की बात की गई है।
यहां यह महत्वपूर्ण है कि विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी सारी संस्थाए विश्व पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के बारे में खुशफहमी भरी तस्वीर पेश करने के लिए कुख्यात रही हैं। इसी कारण इन्हें महज कुछ महीनों में अपने आकलन को इतना ज्यादा बदलना पड़ा। लेकिन ये आकलन भी भविष्य में गलत साबित हो सकते हैं। क्यों कि विश्व अर्थव्यवस्था की हालत उससे भी ज्यादा तेजी से खराब हो रही है जितना ये साम्राज्यवादी संस्थाएं स्वीकार करना चाहती हैं।
इसी तरह अंतर्राष्ट्रीय मुद्र कोष ने अभी सितंबर में जारी अपनी रिपोर्ट में बड़ी तबदीली की है। इसने विकसित देशों के लिए 2012 में महज 1.2 प्रतिशत वृद्वि की भविष्यवाणी की है। यूरो क्षेत्र के लिए अपने पहले के आकलन को 1.6 प्रशित घटाकर इसने त्रणात्मक 0.5 प्रतिशत कर दिया है। ज्यादा गंभीर हालत इटली और स्पेन की है। जहां क्रमशः 2.2 और 1.7 प्रतिशत गिरावट होने के आसार हैं। इंगलैंड में भी महज 0.6 प्रतिशत वृद्वि की बात की गई है।
यहां यह महत्वपूर्ण है कि विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी सारी संस्थाए विश्व पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के बारे में खुशफहमी भरी तस्वीर पेश करने के लिए कुख्यात रही हैं। इसी कारण इन्हें महज कुछ महीनों में अपने आकलन को इतना ज्यादा बदलना पड़ा। लेकिन ये आकलन भी भविष्य में गलत साबित हो सकते हैं। क्यों कि विश्व अर्थव्यवस्था की हालत उससे भी ज्यादा तेजी से खराब हो रही है जितना ये साम्राज्यवादी संस्थाएं स्वीकार करना चाहती हैं।
इस बात को प्रकारांतर से स्विट्जर्लैंड के दावोस में विश्व पूंजीपतियों के सालाना जमावड़े के लिए इस साल तैयार रिपोर्ट में सवीकार किया गया है। इसमें कहा गया है कि विश्व अर्थव्यवस्था को आमूल चूल बदलने के लिए कुछ साल ही उपलब्ध हैं। यदि इन सालों में इसमें बदलाव नहीं किया जाता तो स्थिति संकटपूर्ण होगी। यानी यदि पूंजीपतियों - साम्राज्यवादियों ने अपनी विश्व पूंजीवादी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए कारगर कादम नहीं उठाया तो पूंजीवादी व्यवस्था के खात्में का संकट खड़ा हो जायेगा। आज उठ खड़े हो रहे संघर्ष एक प्रबल तूफान बनकर इस पूंजीवादी व्यवस्था को उखाड़ फेकेंगे।
लेकिन पूंजीवति वर्ग आज खुद ही इस कंकट में जो कुछ कर रहा है वह उस दिन को और नजदीक ला रहा है जब पूंजीवादी व्यवस्था के कब्र में ढकेला जा रहा होगा।
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