नाइजीरिया में वहां के मजदूर संगठनों द्वारा पेट्रोलियम पदार्थों के दामों में वृद्धि के खिलाफ चार दिनों की आम हड़ताल ने सरकार को मजबूर कर दिया कि वह दामों में बढ़ोत्तरी की वापसी के लिए वार्ता की मेज पर आये। 9 जनवरी से यह आम हड़ताल 12 तक चली और फिर यह फैसला किया गया कि यदि सरकार नहीं झुकती तो सोमवार (16 जनवरी) से आम हड़ताल फिर की जाये।
यह आम हड़ताल 1 जनवरी को सरकार द्वारा पेट्रोल के दामों में भारी वृद्धि के खिलाफ है। सरकार ने 65 नारिया प्रतिलीटर से यह 140-200 नारिया के बीच कर दी। यह भारी वृद्धि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के दबाव में की गई। भारत की तरह सरकार ने वहां भी भारी सब्सिडी को बहाना बनाया।
नाइजीरिया अफ्रीका में कच्चे तेल का सबसे बड़ा उत्पादक है। विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां यहां इस तेल का बेशुमार दोहन करती हैं। इसके लिए वे किसी भी अपराध से पीछे नहीं हटतीं। नाइजीरिया सरकार की आय का 80 प्रतिशत हिस्सा तेल से ही आता है। इतने बड़े तेल उत्पादक देश में सरकार की यह चाल!
नाइजीरिया भी दुनिया के बाकी देशों की तरह उदारीकरण की नीतियों की पूंजीवादी लूट का बेतहाशा शिकार है। यहां नवयुवकों में बेरोजगारी की दर 40 प्रतिशत है। सरकार इतने से भी संतुष्ट न होकर वहंा उदारीकरण की नीतियों को और ज्यादा धड़ल्ले से आगे बढ़ा रही है।
इस आम हड़ताल का आह्वान नाइजीरिया की दो प्रमुख यूनियन फेडरेशनों एन सी एल और टी यू सी ने किया था। उन्होंने एक अन्य संगठन लास्को के साथ मिलकर संयुक्त कार्यवाही मोर्चे का गठन किया था।
आम हड़ताल के दौरान लागोस, कानो और अबूज जैसे शहरों में न केवल दसियों हजार लोगों ने जुलूस निकाला बल्कि अरब विद्रोहियों की तर्ज पर वहां सार्वजनिक जगहों पर कब्जा करने का भी प्रयास किया। इसे मजदूर वर्ग के अलावा मध्यम वर्ग का भी व्यापक समर्थन हासिल हुआ। इसी वजह से सरकार को झुक कर वार्ता के लिए राजी होना पड़ा।
नाइजीरिया 17 करोड़ की आबादी वाला अफ्रीका का एक बड़ा देश है। अफ्रीकी महाद्वीप में दक्षिण अफ्रीका के बाद इसकी दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। वहां मजदूर वर्ग द्वारा आम हड़ताल समूचे अफ्रीका के मजदूर वर्ग को प्रेरित करेगी।
भारत का मजदूर वर्ग नाइजीरियाई मजदूरों के इस संघर्ष का पुरजोर समर्थन करता है और उनके साथ अपनी एकजुटता जाहिर करता है।
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